लखनऊ: सरकारी अस्पतालों में दवाओं का संकट है। हालात यह है कि मरीजों को उल्टी-दस्त व पेट दर्द आदि की दवाएं भी नहीं मिल रही हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के लिए भी मरीजों को भटकना पड़ रहा है।
सरकारी अस्पतालों में मरीजों को एक रुपये के ओपीडी के पर्चे पर मुफ्त दवा उपलब्ध कराने के निर्देश हैं। पर, सरकारी अस्पतालों में दवाओं की किल्लत से मरीजों को मायूस लौटना पड़ रहा है। काउंटर पर आधी-अधूरी दवाएं मरीजों को मिल रही हैं। सिविल, लोहिया, बलरामपुर, टीबी संयुक्त चिकित्सालय व सीएमओ के अधीन अस्पतालों में डायक्लोफैनिक, एमॉक्सी, डॉक्सी और महिलाओं के इलाज में इस्तेमाल होने वाली डूबाजेस्ट्स समेत दूसरी जरूरी दवाएं नहीं मिल पा रही हैं।
बच्चों को नहीं मिल रहा सिरप:
बलरामपुर अस्पताल में तो बच्चों के लिए सिरप तक नहीं मिल रही हैं। सेप्ट्रॉन, कफ सिरप, पैरासीटामॉल व त्वचा रोगों में इस्तेमाल होने वाले ट्यूब तक मरीजों को नहीं मिल रहे हैं। शुगर और ब्लड प्रेशर तक की दवाओं का संकट मरीजों को झेलना पड़ रहा है। यही हाल लोहिया अस्पताल का भी है।
कंपनी की मनमानी से अफसर पस्त:
ठेका हथियाने के लिए कंपनियां दवाओं की कम कीमतें टेंडर में दर्ज करती हैं। टेंडर मिलने के बाद कंपनियां इतनी सस्ती दर पर दवाएं आपूर्ति नहीं कर पाती हैं। नतीजतन अस्पताल के अधिकारी लगातार दवाओं की मांग कंपनी से करती हैं लेकिन नतीजा सिफर रहता है। अफसर कंपनियों की मनमानी से पस्त हैं।