नई दिल्ली: राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) और गोवा विश्वविद्यालय (जीयू) ने गैर विषैले, कम लागत वाले और पर्यावरण अनुकूल तरीके से साइक्रोटॉलरेंट अंटार्कटिक बैक्टीरिया का उपयोग करके गोल्ड नैनोपार्टिकल्स यानी सोने के नैनोकणों (जीएनपी) को सफलतापूर्वक संश्लेषित किया है। एक अध्ययन के माध्यम से एनसीपीओआर और जीयू ने स्थापित किया है कि 20-30-एनएम-आकार के गोलीय-आकार वाले जीएनपी को एक नियंत्रित वातावरण में संश्लेषित किया जा सकता है। इन जीएनपी का उपयोग समग्र चिकित्सीय एजेंट नैदानिक परीक्षणों के रूप में किया जा सकता है, विशेष रूप से कैंसर-रोधी, विषाणु-रोधी, मधुमेह-रोधी और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं में।
एनसीपीओआर-जीए के इस अध्ययन में सल्फेट घटाने वाले बैक्टीरिया (एसआरबी) पर जीएनपी के जीनोटॉक्सिक प्रभाव का पता चला। जीएनपी ने सल्फेट घटाने वाले बैक्टीरिया (एसआरबी) की वृद्धि को रोकते हुए और जीवाणु कोशिका के डीएनए की आनुवंशिक जानकारी को नुकसान पहुंचाते हुए इसके सल्फाइड उत्पादन को रोककर पर्याप्त जीवाणुरोधी गुण प्रदर्शित किए हैं। जीनोटॉक्सिसिटी एक रासायनिक एजेंट की सामग्री का वर्णन करती है जो डीएनए की आनुवंशिक जानकारी को नुकसान पहुंचाने में सक्षम है और इस प्रकार कोशिका के उत्परिवर्तन का कारण बनता है जिससे कैंसर हो सकता है।
नैनोपार्टिकल्स (एनपी) यानी नैनोकणों में बायोमेडिकल, ऑप्टिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की कई संभावित एप्लीकेशन हैं। बायोमेडिकल एप्लीकेशनों के लिए मेटालिक एनपी का कुशलतापूर्वक उपयोग किया गया है और उनमें से जीएनपी, बायोमेडिकल यानी जैव चिकित्सा अनुसंधान में प्रभावी पाए जाते हैं।
ये नैनोटेक्नोलॉजी और नैनोपार्टिकल (एनपी) क्या हैं? नैनोटेक्नोलॉजी एक ऐसी तकनीक है जो 1 एनएम (नैनोमीटर) से लेकर 100 एनएम (1 एनएम मतलब 10-9 मीटर) के आकार की सीमा पर नियंत्रित बदलाव के माध्यम से नई और अभिनव सामग्री बनाती है। और एनपी वो मटीरियल हैं जो 100 नैनोमीटर से कम से कम एक आयाम छोटे हैं। एनपी में सतह-से-वॉल्यूम का ऊंचा अनुपात होता है और वे डिफ्यूजन यानी फैलाव के लिए जबरदस्त चालन बल प्रदान कर सकते हैं, खासकर ऊंचे तापमानों पर। द्रवीकरण के बिना हीटिंग के माध्यम से ठोस या झरझरे द्रव्यमान में सिंटरिंग यानी जमाव होना दरअसल बड़े कणों की तुलना में कम समय के दायरे पर कम तापमान पर घटित हो सकता है। जीएनपी को थोक सोने (1064° सेल्सियस) की तुलना में बहुत कम तापमान (300° सेल्सियस) पर पिघलाया जाता है। ऐसा पाया गया है कि एनपी रोज़मर्रा के अलग अलग उत्पादों को कई इच्छित गुण प्रदान करते हैं। मसलन, जीएनपी में पारंपरिक थोक सोने की तुलना में अधिक सौर विकिरण अवशोषित करने की क्षमता पाई जाती है, जो उन्हें फोटोवोल्टिक सेल निर्माण उद्योग में उपयोग के लिए बेहतर दावेदार बनाती है।
जीएनपी में बहुत विशेष ऑप्टिकल यानी प्रकाश संबंधी गुण भी हैं। उदाहरण के लिए, 100 एनएम से ऊपर के कण पानी में नीला या बैंगनी रंग दिखाते हैं, जबकि 100 एनएम सोने के कोलोइडल कणों में ये रंग वाइन रेड हो जाता है। इस प्रकार चिकित्सीय इमेजिंग में इनका उपयोग कर सकते हैं। जीएनपी में अद्वितीय भौतिक रासायनिक गुण भी हैं। उनकी जैव-रासायनिकता, उच्च सतह क्षेत्र, स्थिरता और नॉनटॉक्सीसिटी उन्हें चिकित्सीय उपयोग में विभिन्न एप्लीकेशन के लिए उपयुक्त बनाती है जिसमें बीमारियों का पता लगाना और निदान करना, बायो-लेबलिंग और लक्षित दवा वितरण जैसी चीजें शामिल हैं। नैनो-वाहकों के रूप में जीएनपी पेप्टाइड्स, प्रोटीन, प्लास्मिड डीएनए, छोटे दखल देने वाले आरएनए और कीमोथेरेप्यूटिक एजेंटों से बनी विभिन्न दवाओं को स्थानांतरित करने में सक्षम हैं ताकि मानव शरीर की रोगग्रस्त कोशिकाओं को लक्ष्य किया जा सके।
जीएनपी को इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में भी उपयोगी पाया जाता है। वैज्ञानिकों ने ‘नॉमफेट’ – एनओएमएफईटी (नैनोपार्टिकल ऑर्गेनिक मैमोरी फील्ड-इफेक्ट ट्रांज़िस्टर) नाम से जाना जाने वाला एक ट्रांज़िस्टर बनाया है। इसके लिए कमरे के तापमान उत्प्रेरक के रूप में एक छिद्रित मैंगनीज़ ऑक्साइड में जीएनपी एम्बेड किया गया ताकि हवा में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक को तोड़ा जा सके और कार्बनिक अणुओं के साथ जीएनपी को संयोजित किया जा सके। नॉमफेट न्यूरॉन से न्यूरॉन की ओर जाने वाले सिग्नल की गति और शक्ति की भिन्नता या प्लास्टिसिटी के रूप में पहचाने जाने वाले मानव सूत्रयुग्मन (ह्यूमन सिनेप्स) के फीचर की नकल कर सकते हैं। ये अभिनव ट्रांजिस्टर अब कुछ खास प्रकार की मानव संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के बेहतर मनोरंजन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, जैसे कि पहचानना और इमेज प्रोसेसिंग और वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में उनका इस्तेमाल भी प्रदान कर सकते हैं।
एनसीपीओआर और जीई ने साइक्रोटॉलरेंट अंटार्कटिक बैक्टीरिया का उपयोग करके जीएनपी में सोने के आयन को कम करने के लिए पर्यावरणीय रूप से स्वीकार्य हरित रसायन प्रक्रियाओं का सहारा लिया है। इसके अलावा उन्हें एजेंटों को स्थिर करने या घटाने के रूप में सिंथेटिक रासायनिक योजकों का उपयोग नहीं करना पड़ा। साइक्रोटॉलरेंट अंटार्कटिक बैक्टीरिया के अपने विशेष लाभ हैं, जैसे एक अच्छी फैलाव क्षमता वाले सोने के नैनोकणों (जीएनपी) में आयन को कम करने के लिए हल्की प्रतिक्रिया स्थिति।
एनसीपीओआर के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन सेल के डॉ. कीर्ति रंजन दास के नेतृत्व वाले अनुसंधान दल में एनसीपीओआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनूप कुमार तिवारी और गोवा विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की प्रो. सविता केरकर शामिल थे। उनका शोध पत्र हाल ही में जर्नल ऑफ प्रिपेरेटिव बायोकैमिस्ट्री एंड बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।