कहा जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है। उसी प्रकार भारत एक त्यौहार प्रधान देश भी है। यहां ऐसा कोई दिन नहीं होगा जब त्यौहार न हो। यही हमारे देश की खासियत है। विभिन्न संस्कृतियों से बना यह देश विभिन्न प्रकार के त्यौहार से लोगों को हर्षोल्लास का मौका देता रहता है। नया साल आ चुका है। 2020 में हम प्रवेश कर चुके हैं। तो नए साल में 20 जनवरी 2020 सोमवार को षटतिला एकादशी आ रही है। बता दें कि यह दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का दिन है।
इस दिन व्रत भी रखा जाता है। यह व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। काले तिल से विष्णु जी की पूजन करें तो भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसका महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इसे करने से बहुत से पाप नष्ट हो जाते हैं। तो आइये जानते हैं आप कैसे इस पूजा को संपन्न कर सकते हैं। हम आपको पूरा पूजन विधि बताएंगे। एक बार दालभ्य ऋषि और पुलत्सय ऋषि के बीच बातचीत चल रही थी।
तो दालभ्य ऋषि ने पुलत्सय ऋषि से एक सवाल पूछा। हे ऋषि, पृथ्वी लोक में मनुष्य इत्यादि महान पाप करते हैं, फिर भी उनको नरक नहीं मिलता, क्यों? मनुष्य ऐसा कौन सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके बारे में आप कहें।
पुलत्सय ऋषि बोले- हे ऋषिवर! आपने तो मुझसे बहुत ही गंभी सवाल किए हैं। इस गुप्त बात को तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र भी नहीं जानते हैं। परंतु मैं आपको यह गुप्त बात जरूर बताउंगा।
पुलत्सय ऋषि ने कहा कि माघ मास के समय हर मनुष्य को स्नान करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में करना चाहिए। किसी भी प्रकार के काम,क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से मुक्त रहना चाहिए। और इस माह में भगवान का स्मरण करना चाहिए। तो आइये जानते हैं कैसे करते हैं षटतिला एकादशी की पूजा।
इस दिन हवन का खास महत्व है। हवन करने के लिए पहले से तिल, गोबर और कपास के कंडे बना लेने चाहिए। और हवन इन्हीं कंडों से 108 बार करना चाहिए।
अगर इस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले कार्य करने चाहिए। इस दिन सर्वप्रथम स्नान करके देवों के देव श्रीहरि भगवान का पूजन कर एकादशी व्रत धारण कर लेना चाहिए। बता दें कि अगर इस दिन रात्रि में जागरण करते हैं तो यह बहुत ही लाभकारी माना जाता है। जागरण के बाद अगली सुबह खीचड़ी बनाएं और उसका भोग लगा लें। भोग लगाने से पहले भगवान की धूप दीप नैवेद्य आदि से पूजन जरूर करें।
इसके बाद पेठा, नारियल, सीताफल और सुपारी का अर्घ्य देना चाहिए। और अर्घ्य देकर भगवान की स्तुति करनी चाहिए। स्तुति इस प्रकार करें- हे भगवान!
आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य!
हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें।
इसके बाद पानी से भरा एक घड़ा किसी ब्राह्मण को दान करें। इसके अलावा ब्राह्मण को श्यामा गाय और तिल पात्र देना भी शुभ माना जाता है।
इस प्रकार कहा जाता है कि मनुष्य जितने तिल का दान करता है उतने हजार वर्ष स्वर्ग में रहता है। इस दिन तिल का स्नान और भोजन भी कराना शुभ है। इसे षटतिला एकादशी इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन तिल का प्रयोग 6 प्रकार से होता है। जैसे तिल स्नान, तिल उबटन, तिल हवन, तिल का भोजन और तिल का दान, तिल का तर्पण।