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चुनाव लोकतंत्र का महापर्व है

उत्तर प्रदेश

15 अगस्त 1947 को जब भारत ब्रितानवी हुकूमत की दासता से आजाद हुआ था तब किसने कल्पना की होगी कि संसदीय लोकतंत्र अपनाकर देश-दुनिया की सबसे बड़ी चुनाव प्रक्रिया वाला राष्ट्र बन जाएगा। 16वीं लोकसभा के चुनाव के लिए करीब 81 करोड़ मतदाताओं का निबंधन समूची दुनिया को सुखद आश्चर्य में डालने वाला है। लगभग हर आम चुनाव के समय भारतीय नागरिक विश्व में सबसे बड़े मतदाता समूह और चुनावी ढांचे वाले देश के रूप में चिन्हित किए जाते हैं। चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र की चाहे जितनी खामियां निकाली जाएं, लेकिन जब अतीत मे लौटकर विचार करें तो इसे अविश्वसनीय उपलब्धि कहा जा सकता है।

                वास्तव में आजादी के बाद भारत का पहला आम चुनाव इसी रोमांचक के सामूहिक मनोविज्ञान में संपन्न हुआ था। पहले आम चुनाव में लोकसभा की 497 तथा राज्य विधानसभाओं की 3,283 सीटों के लिए भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं का पंजीयन हुआ था। इनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने, जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे, अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करके पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया था। 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक यानी करीब चार महीने चली उस चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा किया। यह अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा और अनपढ़ बनाया गया कंगाल देश जरूर था, लेकिन इसके बावजूद इसने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़़ा कर दिया।

      अपनी जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों और लंबे इतिहास के बोझ तले दबे भारत में लोकतंत्र की स्थापना अपने आप में एक दुर्लभ उपलब्धि है। भारतीय संविधान के शिल्पकारों ने इसके निर्माण में साहस का परिचय देते हुए उन मुद्दों को छुआ, जिन तक पहुँचने में दुनिया के दूसरे लोकतंत्रों को कई साल लग गए थे। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ने देश में सामाजिक न्याय की पहल करते हुए एक समतावादी लोकतंत्र की धुरी तैयार की। विभाजन के दंश और व्यापक निरक्षरता को झेलते हुए देश के सभी नागरिकों को मतदान करने और सरकार चुनने का अधिकार मिला। 70 साल पुराने लोकतंत्र में आज इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिये मतदान प्रक्रिया पूरी होती है।

                लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली है जो नागरिकों को वोट देने और अपनी पसंद की सरकार का चुनाव करने की अनुमति देती है। भारत 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था। आज यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है। भारतीय लोकतंत्र अपने नागरिकों को जाति, रंग, पंथ, धर्म और लिंग आदि पर ध्यान न देकर अपनी पसंद से वोट देने का अधिकार देता है। इसके पांच लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं – संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र और लोकतांत्रिक गणराज्य। विभिन्न राजनीतिक दल राज्य के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर चुनाव के लिए खड़े होते हैं। चुनाव से पहले वे अपने पिछले कार्यकाल में पूरे किए गए कार्यों के बारे में प्रचार करते हैं तथा लोगों के साथ उनकी भविष्य की योजना भी साझा करते हैं।

                संविधान के मुताबिक 18 वर्ष से अधिक आयु के हर भारतीय नागरिक को वोट देने का अधिकार है। सरकार भी मतदान के लिए अधिक से अधिक लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। लोगों को वोट देने से पहले चुनाव के लिए खड़े उम्मीदवारों के बारे में सब कुछ जानना चाहिए और अच्छे प्रशासन के लिए सबसे योग्य व्यक्ति को वोट देना चाहिए। भारत एक सफल लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है। हालांकि अभी भी कुछ कमियां हैं जिन पर काम करने की आवश्यकता है। सरकार को सही मायने में लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिए गरीबी, निरक्षरता, सांप्रदायिकता, लिंग भेदभाव और जातिवाद को समाप्त करने पर काम करना चाहिए। लोकतंत्र को सरकार का सबसे अच्छा रूप कहा जाता है। यह देश के प्रत्येक नागरिक को वोट देने और उनकी जाति, रंग, पंथ, धर्म या लिंग के बावजूद अपनी इच्छा से अपने नेताओं का चयन करने की अनुमति देता है। सरकार देश के आम लोगों द्वारा चुनी जाती है और यह कहना गलत नहीं होगा कि यह उनकी बुद्धि और जागरूकता है जिससे वे सरकार की सफलता या विफलता निर्धारित

करते हैं।

                कई देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह संप्रभु, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणराज्य सहित पांच लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर चलता है। 1947 में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया गया था। न केवल सबसे बड़ा अपितु भारतीय लोकतंत्र को सबसे सफल लोकतंत्रों में से एक माना जाता है। भारतीय लोकतंत्र का एक संघीय रूप है जिसके अंतर्गत केंद्र में एक सरकार जो संसद के प्रति उत्तरदायी है तथा राज्य के लिए अलग-अलग सरकारें हैं जो उनकी विधानसभाओं के लिए समान रूप से जवाबदेह हैं।

                भारत के कई राज्यों में नियमित अंतराल पर चुनाव आयोजित किए जाते हैं। इन चुनावों में कई पार्टियां केंद्र तथा राज्यों में जीतकर सरकार बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। अक्सर लोगों को सबसे योग्य उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन फिर भी जाति भारतीय राजनीति में भी एक बड़ा कारक है चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में।

                चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अभियान चलाया जाता है ताकि लोगों के विकास के लिए उनके भविष्य के एजेंडे पर लाभ के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों पर जोर दिया जा सके। भारत में लोकतंत्र का मतलब केवल वोट देने का अधिकार ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता को भी सुनिश्चित करने का है। हालांकि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को विश्वव्यापी प्रशंसा प्राप्त हुई है पर अभी भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनके लिए सुधार की आवश्यकता है ताकि लोकतंत्र को सही मायनों में परिभाषित किया जा सके। सरकार को लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए निरक्षरता, गरीबी, सांप्रदायिकता, जातिवाद के साथ-साथ लिंग भेदभाव को खत्म करने के लिए भी काम करना चाहिए।

                इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम एक लोकतांत्रिक देश के स्वतंत्र नागरिक है। लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत जितने अधिकार नागरिकों को मिलते हैं, उनमें सबसे बड़ा अधिकार है वोट देने का अधिकार। इस अधिकार को पाकर हम मतदाता कहलाते हैं। वही मतदाता जिसके पास यह ताकत है कि वो सरकार बना सकता है, सरकार गिरा सकता है और तो और स्वयं सरकार बन भी सकता हैं। बिना कर्तव्य निभाए अधिकारों की बात नहीं की जा सकती, किसी भी सरकार से सवाल का अधिकार ही तब है जब हम अपने कर्तव्य का पालन करते हैं हम ऐसे नेता को चुनें जो आम आदमी के हित में कार्य करे। शत प्रतिशत मतदान से ही लोकतंत्र को हम सही दिशा दे पाएगे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए और मजबूत लोकतंत्र के लिए मतदान करना आवश्यक है शत प्रतिशत मतदान, लोकतंत्र की जान है।

       इस बात को आम जन समझ लेगा तो लोकतंत्र में सरकारें निष्ठा और सेवा की भावनाएं समझकर ही जन्म लेंगी। लेकिन डाला गया हर मत आशा और विश्वास का प्रतीक होता है जिसे हम उम्मीदवारी में व्यक्त करते हैं जिसके बारे में हम मानते हैं कि वह एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है। लोकतंत्र में अपना मत न डालना अपनी जिम्मेदारी से भागना हो सकता है। मतदान केवल एक अधिकार नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। मतदान एक आध्यात्मिक कृत्य है क्योंकि उन व्यक्तियों पर अपनी राय व्यक्त करने के विकल्प का उपयोग करके, जिनको शासन की शक्तियों को ग्रहण करना चाहिए, आप अच्छे विश्वास में ऐसे व्यक्ति को आपके और दूसरों के जीवन को बदलने की शक्ति से संपन्न कर रहे हैं। इस मायने में, मतदान करने के लिए आपका निर्णय और मतदान का वास्तविक कृत्य आध्यात्मिक रूप से प्रेरित है क्योंकि मतदान करके जो प्राप्त करने का आपका मंतव्य है, वह है शासन के मामलों में उच्च मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद करना। ये मामले अलग-अलग तरीकों से हर किसी के जीवन को छूते हैं – सामाजिक, आर्थिक या पर्यावरणीय।

                लोकतंत्र का अंतिम औचित्य इस बात में है कि यह नागरिकों के मन में कुछ विशेष प्रवृत्तियां उत्पन्न करता है। इसमें मन स्वतंत्रतापूर्वक विचार करता है, व्यक्ति सार्वजानिक कार्यों के बारे में सोचता है, उनमें रूचि लेता है, परस्पर चर्चा करता है, उसमें दूसरों के प्रति सहिष्णुता उत्पन्न होती है तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व उत्पन्न होता है। कार्य करने के स्वतंत्रता के कारण यह व्यक्ति के चरित्र के अनेक गुणों का विकास करता है।

                सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतंत्र जनता की जनता द्वारा जनता के लिये सरकार होती है। शासन की उत्कृष्टता की कसौटी शासन व्यवस्था, आर्थिक समृद्धि या न्याय नहीं है अपितु वह चरित्र है जिसे यह अपने नागरिकों में उत्पन्न करता है। अंततोगत्वा वही शासन उत्कृष्ट है जो अपनी जनता में नैतिकता की सुदृढ़ भावना, ईमानदारी, उद्योग, आत्मनिर्भरता और साहस के गुण पैदा करता है। वोट देने का अधिकार नागरिकों में विशेष गरिमा उत्पन्न करता है इससे उसमें गौरव और स्वाभिमान जागृत होता है। मतदान एकमात्र ऐसा साधन है जिससे देश की जनता स्वयं अपने देश का विकास निर्धारित कर सकती है। हर व्यक्ति को मतदान जरूर करना चाहिए क्योंकि हर एक मत कीमती है। एक मत भी देश के लिए गलत सरकार को चुनने से रोक सकता है। मतदान से ही सरकार को पता चलता है कि देश कि जनता उनसे संतुष्ट है या नहीं मतदाता को निडर होकर मतदान करना चाहिए। मतदाता चुनाव में एक महानायक होता है।

प्रदीप कुमार सिंह

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