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भारत से टीबी का खात्मा विश्व के लिए गहरे प्रभाव का कारक होगा: डॉ हर्षवर्धन

देश-विदेशसेहत

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने आज आयोजित एक कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से क्षय रोग तकनीकी परामर्श नेटवर्क को संबोधित किया, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन के टीबी के लिए राष्ट्रीय अधिकारी, देशभर के परामर्शदाता शामिल थे। कार्यक्रम में डॉक्टर हर्षवर्धन के साथ डब्ल्यूएचओ-एसईएआरओ की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह और भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ रोड्रिको ओफ्रिन भी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर डॉ हर्षवर्धन ने भारत से 2025 तक टीबी को जड़ से खत्म करने के प्रयास में डब्ल्यूएचओ की निरंतर सहायता के लिए उसे धन्यवाद और शुभकामना दीं। उन्होंने आईसीएमआर और इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन द्वारा हाल ही में किए गए राष्ट्रीय रोग प्रमाणन में भी सहायता के लिए डबल्यूएचओ को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि अब हमने अपने एक केंद्र शासित क्षेत्र लक्षद्वीप और जम्मू कश्मीर के एक जिले बड़गाम को टीबी मुक्त घोषित कर दिया है।

डॉ हर्षवर्धन ने इस पर विस्तार से चर्चा की कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य संबंधी सभी मामलों में व्यवस्था मूलक बदलाव का निरंतर स्त्रोतरहा है चाहे वह तकनीकी मदद की बात हो या शोध, नीति तैयार करने, निगरानी और मूल्यांकन, क्षमता निर्माण, लोक स्वास्थ्य संचार हो या फिर ज्ञान का प्रसार हो, डब्ल्यूएचओ ने हमारी सदैव सहायता की है और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति तैयार करने से लेकर आयुष्मान भारत,और स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की व्यवस्था को और सुदृढ़ करने तथा डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन सदैव हमारे साथ खड़ा रहा। इस संदर्भ में उन्होंने अपने उस दौर को भी याद किया जब वह दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री थे जिसमें डब्ल्यूएचओ ने पोलियो उन्मूलन में बेहद सक्रिय सहयोग दिया। 2009 से पहले विश्व के कुल पोलियो के मामलों की 60% संख्या भारत में थी लेकिन 2011 के बाद भारत पोलियो मुक्त हो गया। उन्होंने कोविड संकट में भी डब्ल्यूएचओ द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सहायता पर चर्चा की।

उन्होंने राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम एनटीईपी के अंतर्गत परामर्श तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि इसने देश में टीबी के जो अज्ञात मामले थे,उसमें इस तंत्र ने महत्वपूर्ण मदद की जिसकी बदौलतउन मरीजों के सफल इलाज के लक्ष्य को हासिल किया जा सका। उन्होंने कहा कि यह उत्साहजनक है और यह दर्शाता है कि अब हम टीबी मरीजों को अपने सार्वजनिक और निजी दोनों स्वस्थ क्षेत्रों के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने में सक्षम हैं और अपने एक्टिव केस फाइंडिंग एसीएफ अभियान के माध्यम से समुदायों तक आसानी से पहुंच सकते हैं और टीबी मरीजों को मुफ्त इलाज उपलब्ध करा सकते हैं। निदान और त्वरित इलाज टीबी के जड़ से खात्मे के महत्वपूर्ण आयाम हैं। ऐसे में परामर्श तंत्र को अब दो चीजों पर मुख्यतः ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसमें टीबी के मामलों की शुरुआती अवस्था में ही पहचान और नए मामलों में कमी लाने का प्रयास शामिल हैं।

डॉक्टर हर्षवर्धन ने जमीनी स्तर पर एक ऐसे मॉडल को शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया जिसका विस्तार किया जा सके और जिसे अन्य स्थानों पर लागू किया जा सके। उन्होंने कहा कि टीबी जन आंदोलन की सफलता सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि इससे जुड़ी गतिविधियां जमीनी स्तर पर जनसंख्या तक कितना पहुंच पाती हैं। उन्होंने कहा कि कदम राज्यों की स्थिति के अनुसार उठाए जाने चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे क्षेत्रों के अनुरूप कार्य किए जाने चाहिए जहां पहुंच आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि दो राज्य राज एक जैसे नहीं है और हमें अपनी गतिविधियों को भौगोलिक आवश्यकता के अनुरूप ही तैयार करना चाहिए जो बहुआयामी प्रभाव पैदा कर सकें और जिनके द्वारा होने वाले बदलाव आकलन योग्य हों। डॉक्टर हर्षवर्धन ने यह भी कहा कि डब्ल्यूएचओ बीते 70 वर्षों से अन्य मंत्रालयों, ग्राम पंचायतों तथा चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ साझेदारी से निरंतर सहयोग कर रहा है जिसके चलते सहयोग की व्यवस्था आज मजबूत हुई है।

अपने संबोधन के आखिर में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत से टीबी का उन्मूलन न सिर्फ भारत के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह समूचे विश्व के लिए गहरे प्रभाव वाला होगा और छोटे देशों को भी इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए इससे निश्चित रूप से प्रेरणा मिलेगी।

उन्होंने भारत से टीबी को खत्म करने की भारत की लड़ाई में ग्रामीण स्तर से लेकर जिला, राज्य, अस्पतालों और शोध कार्य तथा नीतियों के क्रियान्वयन में अलग-अलग स्तरों पर कार्य कर रहे हर एक व्यक्ति के प्रति आभार प्रकट किया और सभी से आग्रह किया कि टीबी जन आंदोलन को सफल बनाने के लिए अपना पूर्ण सहयोग जारी रखें।

इस अवसर पर डॉक्टर पूनम खेत्रपाल ने कहा कि टीबी को खत्म करने के लिए भारत की राजनीतिक प्रतिबद्धता इस बात से ही परिलक्षित होती है कि सरकार ने 2016 से 18 के बीच टीबी के लिए आवंटित बजट को 105 मिलियन डॉलर से बढ़ाकर 458 मिलियन डॉलर कर दिया। उन्होंने रेखांकित किया कि यह आवंटन यह सुनिश्चित करता है कि डब्ल्यूएचओ ट्यूबरक्लोसिस कंसलटेंट नेटवर्क के अपने अभियान को जारी रखने के लिए अन्य किसी दानदाता पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं है।

इस अवसर पर स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ सुनील कुमार और मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।

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