लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि प्राकृतिक खेती से पैदावार को दोगुना किया जा सकता है। यह खेती ‘जीरो’ लागत होती है। प्राकृतिक खेती में रसायन का प्रयोग भी नहीं होता। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों आदि के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त होने की कगार पर पहुंच गयी है। जिस प्रकार व्यक्ति के बीमार होने पर उसका इलाज कराए जाने की जरूरत होती है, उसी प्रकार धरती माता के भी उपचार की आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती को अपनाकर धरती की उर्वरा शक्ति पुनस्र्थापित की जा सकती है। ऐसा न करने पर पूरी मानवता के बीमार पड़ने का खतरा पैदा हो गया है।
मुख्यमंत्री जी आज चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कैलाश सभागार में ‘नमामि गंगे’ योजना के अन्तर्गत ‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती’ विषय आयोजित एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा प्रारम्भ की गयी ‘नमामि गंगे’ परियोजना एक अत्यन्त वृहद कार्यक्रम है। इसके अन्तर्गत आज यहां आयोजित कृषक प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्देश्य कृषि में रसायनों का प्रयोग समाप्त कर, कृषि लागत को ‘जीरो’ कर किसानों की आय को दोगुना करना है। यह कार्यशाला गंगा जी के किनारे स्थित ग्राम पंचायतों के किसानों के ‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती’ में प्रशिक्षण के लिए आयोजित की गयी है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रथम चरण में गंगा जी के किनारे स्थित 1038 ग्राम पंचायतों में इसे लागू किया जाएगा। इसके लिए कार्य योजना तैयार हो चुकी है। गंगा जी के दोनों किनारों पर 5-5 किलोमीटर तक ‘प्राकृतिक खेती’ की जाएगी। इससे गंगा जी को रासायनिक प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। अभी खेतों में प्रयुक्त होने वाला रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक आदि वर्षा के जल के साथ इन तटीय खेतों से निकलकर गंगा जी में मिलता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के उत्पादों के प्रमाणीकरण का कार्य मंडल स्तर पर मंडी विभाग द्वारा किया जाएगा। प्राकृतिक खेती को अपनाकर उत्तर प्रदेश पूरे देश व दुनिया को नई राह दिखा सकता है। ऐसा होने से लोगों को केमिकल मुक्त खाद्यान्न प्राप्त हो सकेगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 27 से 31 जनवरी, 2020 तक ’गंगा यात्रा’ के दौरान अभियान चलाकर गंगा जी के किनारे स्थित गांवों में किसानों को प्राकृतिक खेती, ’जीवामृत’, ’घनजीवामृत’ को तैयार करने व प्रयोग करने की विधि बताई जाए। उन्होंने कहा कि निराश्रित गो आश्रय स्थलों से यदि कोई किसान एक गाय लेता है, तो राज्य सरकार द्वारा उसे प्रति माह 900 रुपए प्रदान किए जाएंगे। एक एकड़ से 30 एकड़ तक भूमि में प्राकृतिक खेती करने के लिए न्यूनतम एक गाय की आवश्यकता होती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 03 वर्ष पूर्व कानपुर में गंगा जी के प्रदूषण की स्थिति भयावह थी। मात्र एक नाले से 14 करोड़ लीटर सीवर का पानी गंगा जी में गिरता था। इसे आज पूर्णतः बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अत्यधिक वर्षा होने पर वर्षा का जल उसी नाले से वहीं गिरेगा, जहाँ पहले गिरता था। वर्षा जल का उत्प्रवाह क्षणिक या कुछ समय के लिए होता है। नमामि गंगे योजना के माध्यम से नियमित रूप से गिरने वाले सीवर को रोका गया है।
गुजरात प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि वह हरियाणा प्रदेश में गुरुकुल के माध्यम से 200 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 300 गाय पाली हंै। प्राकृतिक खेती से मात्र 250 रुपए प्रति एकड़ की लागत में 32 कुंतल प्रति एकड़ धान की उपज प्राप्त की गई। जबकि रासायनिक खेती में 12,000 रुपए प्रति एकड़ की लागत से अधिकतम 25 कुंतल प्रति एकड़ धान का उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि जब रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू हुआ, तब प्रति एकड़ 10-20 किलो यूरिया का प्रयोग हो रहा था। आज यह मात्रा दोगुनी से अधिक हो चुकी है, जबकि उत्पादन गिरा है। इसका तात्पर्य है कि जमीन की कार्बन क्षमता खत्म हो रही है। रसायनों के उपयोग से जमीन, जल, वायु, नदी व मानव बीमार हो चुके हैं। रासायनिक खेती का विकल्प मात्र प्राकृतिक खेती ही है।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि एक देसी गाय के एक दिन के गोबर व मूत्र से जीवामृत खाद बनायी जा सकती है। यह रसायन का विकल्प है। उन्होंने बताया कि शुद्ध देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ मित्र जीवाणु होते हैं। दूध न देने वाली अन्ना गाय के एक ग्राम गोबर में 500 करोड़ मित्र जीवाणु होते हंै। यह किसी जर्सी गाय में संभव नहीं है। उन्हांेंने बताया कि प्लास्टिक के एक टब में 180 लीटर पानी में गाय के एक दिन का गोबर व मूत्र, लगभग 02 किलो किसी भी दाल का बेसन, किसी बड़े वृक्ष के नीचे की 02 किलो मिट्टी को टब में डाल कर क्लॉक वाइज डंडे से टब के अंदर घुमाने से एक पेस्ट तैयार होगा, जिसमंे खरबों की संख्या में मित्र जीवाणु पैदा हो जायेंगे। इसका प्रयोग करने से बिना केमिकल के खाद्यान्न पैदा किया जा सकता है। मात्र एक गाय 30 एकड़ कृषि योग्य खेती के लिए पर्याप्त है।
आचार्य देवव्रत ने बताया कि बीजामृत, जीवामृत व घनजीवामृत के प्रयोग से देशी केचुए जो कि 15-20 फीट जमीन के नीचे जा चुके हंै, वापस खेतों में आ जाएंगे। उन्होंने बताया कि गुरुकुल की 80 एकड़ पूर्ण बंजर भूमि को उन्होंने एक ही फसल में जीवंत बनाया है। आज आंध्र प्रदेश के 05 लाख, हिमाचल प्रदेश के 50 हजार, गुजरात के 02 लाख किसान गौ आधारित प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री जी की पहल पर वह इस कार्यशाला में सम्मिलित हुए हैं।
कार्यक्रम के दौरान आचार्य देवव्रत द्वारा इस विषय पर सरल भाषा में लिखी गयी किताब का वितरण किसानों में किया गया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को प्रयागराज कुम्भ-2019 की काॅफी टेबल बुक भी भेंट की।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भारत सरकार के कृषि व किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्राकृतिक खेती को ‘जीरो’ बजट खेती कहा जाता है, क्योंकि इसकी लागत नगण्य है। उन्होंने बताया कि हरियाणा व पंजाब के किसान स्वयं रासायनिक खाद के प्रयोग से उत्पादित अनाज का उपयोग नहीं करना चाहते। अभी समय है, हम सभी प्राकृतिक खेती को अपना कर देश का भविष्य बेहतर कर सकते हंै।