लखनऊ: इस सप्ताह वर्षा के दृष्टिगत कीट व रोग दिखाई देने पर ही कीटनाशी अथवा रोगनाशी का प्रयोग दिनांक 16 मार्च के बाद ही आसमान साफ होने पर करें। रबी में वर्षा से हुए नुकसान की भरपाई के लिये जायद फसलों की बुआई प्राथमिकता पर करें। जिन कृषकों ने के.सी.सी. के द्वारा अपनी फसलों का पोषण किया है और बीमा का प्रीमियम अदा किया है ऐसे बीमित किसानों को दैवीय आपदा से फसल के नुकसान की क्षतिपूर्ति नियमानुसार प्रदान की जायेगी।
उ0प्र0 कृषि अनुसन्धान परिषद में फसल सतर्कता समूह की 26वीं बैठक में किसानों को दी गई सलाह के अनुसार गेहूॅं की फसल में वर्षा के दृष्टिगत टाॅप ड्रेसिंग न करें। गेहूॅं में अनावृत्त कंडुवा से रोगग्रस्त बाली दिखाई देने पर उसे पालीथिन में डालकर काट लें तथा जमीन में गाड़ दंे। गेहूॅं की बोई गई प्रजाति की शुद्धता बनाये रखने के लिये रोगिंग (अवांछित पौधों को निकाल दें) करें। गेरूई तथा पत्ती धब्बा रोग के लक्षण दिखाई देने पर नियंत्रण हेतु आसमान साफ रहने पर थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 700 ग्रा. अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा मैंकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. प्रति हे. की दर से लगभग 750 ली. पानी में घोलकर मौसम साफ होने पर छिड़काव करें। गेरूई के नियंत्रण हेतु प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. की 500 मिली./हे. लगभग 750 ली. पानी में घोलकर मौसम साफ होने पर छिड़काव करें। गेहंू की खड़ी फसल में चूहों द्वारा क्षति पहुंचाये जाने की दशा में रोकथाम हेतु ग्राम स्तर पर जिंक फास्फाइड अथवा बेरियम कार्बोनेट में बने जहरीले चारे का प्रयोग करें।
बैठक में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए विभिन्न फसलों तिलहन, दलहन, जायद की फसलों, गन्ना, सब्जियों, फलों, आदि के उत्पादन, संरक्षण से सम्बन्धित सलाह दी। इसके अतिरिक्त उन्होंने पशुओ, मत्स्य वानिकी आदि से सम्बन्धित व्यापक वैज्ञानिक सुझाव दिये गये।