नैनीताल: उत्तराखंड पहाडों का सुरम्य और स्वच्छ वातावरण अब रहने लायक नहीं रहा। कारण है जिन बीमारियों को यहां सपने में भी नहीं सोचा जा सकता था, ऐसी दर्जनों संक्रामक बीमारियां यहां तेजी से अपने पैर पसार रहीं है। पहाड़ों की आवोहवा में तेजी से फैल रही इन बीमारियों के कीटाणुओं से न केवल सूबे के स्वास्थ्य विभाग बल्कि केंद्र के स्वास्थ्य मंत्रालय के माथे में बल डाल दिया है। वर्ष 2007 के बाद से अबतक कालाजार के कुल 15 मरीज मिले जबकि वर्ष 2011 के बाद से अब तक चिकनगुनिया के कुल सात मरीज मिले।
वहीं वर्ष 2006 से अबतक प्रदेश में जापानी दीमागी बुखार के 59 मरीज चिन्हित किए गए। इसके आलावा 2010 तक डेंगू से चार हजार से अधिक मरीज मिले। राजकीय मेडिकल कॉलेज के मेडिसन विभाग के अध्यक्ष सीएमएस रावत के मुताबिक इन बीमारियों के कीटाणु, विषाणु और परजीवी मिलने के पीछे सबसे बडा कारण डीफारेस्टेशन के साथ साथ अनियंत्रित और अव्यविस्थति विकास है।
जहरीली और प्रदूषित हो रहीं पहाड़ की हवा में इन बीमारियों के कीटाणु तेजी से अपने कॉलोनी विकसित कर रहे है और आए दिन लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। पहाड़ों में तेजी से मिल रहे इन बीमारियों के मरीजो के आंकड़ों से न केवल उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे की नींद उड़ा दी है बल्कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक को हिला दिया है। लिहाजा इन बीमारियों के बचाव और रोकथाम के लिए मेडिकल कॉलेज में एक तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर चिकित्सकों को अलर्ट किया जा रहा है।
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