नई दिल्ली: वित्त आयोग ने 21 अगस्त 2018 को पुणे के यशदा में प्रख्यात अर्थवेत्ताओं के साथ दूसरा विचार-विमर्श किया। डॉ. विजय केलकर सहित 16 प्रख्यात अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने इस बैठक में भाग लिया और आयोग के साथ अपने विचारों को साझा किया।
आयोग के अध्यक्ष श्री एन. के. सिंह ने योजना आयोग के विघटन के बाद बदले हुये आर्थिक हालातों पर जोर दिया जिसकी वजह से संसाधनों के आवंटन के परंपरागत तरीके में परिवर्तन हुआ है और जिसके परिणाम स्वरूप योजनागत और गैर-योजनागत राशि का अंतर समाप्त हो गया है।
बैठक में व्यापक चर्चा की गयी है और जिन विषयों पर चर्चा की गयी वे निम्नवत हैं:
आयोग द्वारा संपूर्ण देश में राज्यों के भीतर स्थित असमानताओं को संज्ञान में लिये जाने की आवश्यकता।
नगरीय स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं को संसाधनों के लिये अधिक धन के प्रवाह को सशक्त बनाये जाने की आवश्यकता।
संतुलित सामाजिक-आर्थिक विकास को प्राप्त करने के लिये सुव्यवस्थित ढंग से नगरीकरण को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता।
राज्यों की अलग-अलग वर्तमान स्थितियों को देखते हुये कर्ज/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात और राजकोषीय घाटे के विशेष संदर्भ में संशोधित वित्तीय जवाबदेही बजट प्रबंधन अधिनियम में दिये गये वित्तीय सुदृढ़ता के मार्ग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता।
जनसंख्या के ताजे आंकड़ों का संसाधनों के वितरण के लिये उपयोगी रहने का विषय।
आयोग के लिये कार्यकुशलता और न्याय संगतता में संतुलन साधने की आवश्यकता।
संसाधनों के बंटवारे का कोई भी तरीका और राज्यों की कर संग्रह करने की क्षमता निष्पक्षता, न्याय और एकरूपता पर आधारित होनी चाहिये।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर एक समग्र दृष्टि डालने की आवश्यकता ताकि विभिन्न योजनाओं के लिये संसाधनों के वितरण में सामंजस्य स्थापित हो सके।
अध्यक्ष महोदय ने चर्चा के समापन के समय इस बात पर बल दिया कि अगले कुछ महीनों में विशेषज्ञों के साथ लगातार संवाद से आयोग को राजस्व के बंटवारे के लंबवत और ऊर्ध्ववत दोनों ही तरीकों के लिये किसी भी अस्थायी निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले अपने दृष्टिकोण को स्वरूप देने में तो सहायता मिलेगी ही साथ-साथ स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के लिये भी अपने ऐसे दृष्टिकोण को विकसित करने में मदद मिलेगी जो की जमीनी वास्तविकता पर आधारित हो और साथ ही लाभार्थियों को वास्तव में अपेक्षित संसाधन मुहैया करा सके।
यह अर्थवेत्ताओं के साथ दूसरा ऐसा विचार-विमर्थ था। अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के साथ पहली बैठक नई दिल्ली में मई में आयोजित की गयी थी जिसमें संदर्भ के मानकों से संबंधित विभिन्न विषयों पर बातचीत की गयी थी।