नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह पूछा है कि क्या अदालत की देखरेख में उत्तराखंड विधानसभा में फ्लोर टेस्ट संभव है? शीर्ष अदालत ने सरकार को इस पर विचार करने के लिए कहा। बुधवार को जो सुनवाई होगी, उसमें केंद्र से इस मामले पर अपना रुख साफ करने को कहा जाएगा।
उत्तराखंड में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लागू है और सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की उस याचिका पर विस्तृत सुनवाई के लिए तैयार हो गया है, जिसमें नैनीताल हाईकोर्ट की ओर से राष्ट्रपति शासन हटाने के फैसले को चुनौती दी गई है।न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को इस संबंध में केंद्र सरकार का निर्देश लाने के लिए कहा है। अटॉर्नी जनरल को बुधवार को सरकार के रुख से अवगत कराने के लिए कहा गया है।
पीठ ने केंद्र सरकार को वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रामेश्वर प्रसाद मामले में दिए गए फैसले के आलोक में अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। उस मामले में फ्लोर टेस्ट को आखिरी हल बताया गया था। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें उसने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने को कहा था। गत 27 अप्रैल को सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन जारी रखने का आदेश दिया था। साथ ही शीर्ष अदालत ने फ्लोर टेस्ट पर लगी रोक भी बरकरार रखी थी।
पिछली सुनवाई ने पीठ ने इस मसले पर विस्तृत सुनवाई करने का निर्णय लेते हुए सात प्रश्न उठाए थे। शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना एक दुर्लभ कार्रवाई है। अगर सरकार अल्पमत में हो तो फ्लोर टेस्ट ही अंतिम समाधान है। पीठ ने कहा था कि अगर हम राष्ट्रपति शासन को सही भी ठहराते हैं तो फ्लोर टेस्ट तो होगा ही।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने इस मामले पर तीन, चार और पांच मई को सुनवाई करने का निर्णय लिया था। मंगलवार को दोपहर बाद ढाई बजे इस मामले पर सुनवाई होनी थी लेकिन न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह चूंकि एनईईटी मामले की सुनवाई कर रही पीठ का भी हिस्सा हैं लिहाजा मंगलवार को होने वाली सुनवाई टालनी पड़ी। मंगलवार सुबह साढ़े दस बजे ही पीठ ने दोनों पक्षों को बुलाकर यह जानकारी दी।