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महोत्सव के माध्यम से लोक परम्परा, लोक गाथाएं, लोक गायन, लोक कलाकारों को एक मंच प्राप्त होता: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि महोत्सव के पीछे अपनी परम्परा के साथ जुडने का उद्देश्य होता है। हम सभी को अपनी परम्पराओं से विस्मृत नहीं होना चाहिए। संस्कृति के अभाव में कोई राष्ट्र लम्बे समय तक अपनी जीवन गाथा को आगे नहीं बढ़ा सकता। लोक गाथा, लोक परम्परा राष्ट्र की संजीवनी होती है। महोत्सव के माध्यम से लोक परम्परा, लोक गाथाएं, लोक गायन, लोक कलाकारों को एक मंच प्राप्त होता है। वे अपनी प्रतिभा से लोक परम्पराओं की जानकारी वर्तमान पीढ़ी को दे सकें, उनको आगे बढ़ा सकें, यही महोत्सव के पीछे का उद्देश्य है।
मुख्यमंत्री जी आज जनपद गोरखपुर में गोरखपुर महोत्सव-2025 के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 12 जनवरी को वैश्विक मंच पर भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक छवि, भारत की आध्यात्मिक विरासत, सनातन धर्म की वैदिक परम्पराओं को स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानन्द की पावन जयन्ती भी है। साथ ही, गोरखपुर महोत्सव से हम सभी को जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। इस अवसर पर उन्होंने खेल, विज्ञान, चिकित्सा, कला तथा कृषि के क्षेत्र में विशेष पहचान बनाने वाले पांच महानुभावों को गोरखपुर रत्न से सम्मानित किया। उन्होंने पुस्तक मेला, स्वामी विवेकानन्द, विकास तथा विज्ञान प्रदर्शनियों का अवलोकन किया एवं विज्ञान प्रदर्शनी के विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया। मुख्यमंत्री जी ने गोरखपुर महोत्सव की स्मारिका अभ्युदय का विमोचन किया। मुख्यमंत्री जी को गोरखपुर महोत्सव समिति द्वारा स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वेदों की परम्परा गद्य और पद्य में है। भारत का गायन वेदों की परम्परा में है। सामवेद में गायन भी है और गायन की यह परम्परा हजारों वर्षों की विरासत का हिस्सा है। गायन, वादन, नृत्य इन सभी विधाओं को समाहित करने के साथ ही, महोत्सव का उद्देश्य स्थानीय नौजवानों, कलाकारों, कलाकृतियों, किसानों और उद्यमियों तथा समाज के लिए योगदान करना, उनको प्रोत्साहित करना, उनको मंच उपलब्ध कराना, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है। यह सभी कार्यक्रम एक साथ चले और उस कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए गोरखपुर महोत्सव वर्ष 2018 से लगातार विगत 07 वर्षां की तरह इस बार भी सफलता की नई ऊँचाई तक पहुंचा है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गोरखपुर नाम से ही पता लग जाता है कि यह महायोगी भगवान गोरखनाथ की पावन साधना स्थली है। गोरखपुर भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परम्परा की एक महत्वपूर्ण भूमि है। साथ ही, वर्ष 1923 से गीताप्रेस के माध्यम से भारत के धार्मिक साहित्य का एक प्रमुख केन्द्र भी है। गोरखपुर के पास ही कुशीनगर में भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली तथा संत कबीरदास की निर्वाण स्थली मगहर भी है। गोरखपुर के आस-पास भारत की प्राचीन विरासत के अनेक प्रतीक स्थल है। कथा सम्राट के रूप में विख्यात मुंशी प्रेमचन्द्र ने गोरखपुर को अपनी कर्म स्थली बनाया था। फिराक गोरखपुरी ने अपनी जन्मभूमि गोरखपुर को गौरवान्वित किया। वैश्विक मंच पर भारत की आध्यात्मिक विरासत का प्रसार करने वाले स्वामी योगानंद परमहंस ने इसी गोरखपुर में जन्म लिया था। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत की चूले हिलाने वाले शहीद बन्धु सिंह की जन्म और कर्म भूमि यही गोरखपुर है। इसी जनपद में पं0 राम प्रसाद बिस्मिल को देश की आजादी के आन्दोलन में काकोरी ट्रेन एक्शन के लिए फांसी की सजा दी गयी थी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गोरखपुर ने एक छोटे शहर के रूप में विकास की अपनी यात्रा प्रारम्भ की, जो आज पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजबूत महानगर के रूप में उभर कर विकास के नित नये प्रतिमान स्थापित कर रहा है। सरकार विकास कराती है, उस विकास की यात्रा के साथ सहभागी बनना हम सबका दायित्व बनता है। उसी सहभागिता के क्रम को आगे बढ़ाते हुए गोरखपुर गौरवरत्न से इस बार 05 अलग-अलग क्षेत्र में चुने हुए महानुभावों को विभूषित किया गया है, जिन्होंने गोरखपुर को प्रदेश, देश और दुनिया में  सम्मान दिलाने का काम किया है। विगत 03 दिवस के कार्यक्रम के साथ जुड़ करके सभी कलाकार, महानुभाव भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक बने हैं। गोरखपुर महोत्सव को सफलता की ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए अपना योगदान किया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इस महोत्सव में पहली बार नेशनल बुक ट्रस्ट ने युवाओं के लिए एक बुक फेयर का भी आयोजन किया है। उन्होंने कहा कि पुस्तकों को मित्रों को भेंट करें। अपने बच्चों के जन्म दिवस पर उनकी रुचि के अनुसार पुस्तकें भेंट करे, जो उनके मानसिक विकास में योगदान करेंगी। पढ़ने-लिखने की परम्परा कम हो रही है। हम सबको पुस्तक मेलों के माध्यम से पुस्तकें खरीदकर, इनके पठन-पाठन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक 45 दिन का दिव्य एवं भव्य महाकुम्भ प्रारम्भ हो रहा है। इस आयोजन में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आएंगे। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी इस महाआयोजन की साक्षी बनेगी। इसमें भारत की परम्परा, संस्कृति एवं अध्यात्म का संगम होगा। महाकुम्भ में पहली बार आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कॉरिडोर भी बने है। प्रयागराज में अक्षयवट कॉरिडोर, सरस्वती कूप कॉरिडोर, पातालपुरी कॉरिडोर, बड़े हनुमान जी मन्दिर कॉरिडोर, महर्षि भारद्वाज ऋषि मन्दिर कॉरिडोर और भगवान श्रीराम और निषादराज के मिलन के स्थल श्रृंग्वेरपुर कॉरिडोर बनाये गये हैं। नागवासुकी घाट और मन्दिरों का सुंदरीकरण का कार्य के साथ ही द्वादश ज्योर्तिलिंग देखने का अवसर प्राप्त होगा।
मुख्यमंत्री जी ने महाकुम्भ की सभी को अग्रिम बधाई देते हुए कहा कि इस प्रयागराज महाकुम्भ में जरूर जाएं। इससे अपनी परम्परा, संस्कृति और धरोहर से सभी को जुड़ने का मौका मिलेगा। इस महाकुम्भ का आयोजन 10 हजार एकड़ क्षेत्रफल में होने जा रहा है। कल प्रयागराज में 25 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया है और आज प्रयागराज में 35 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है।
कार्यक्रम को सांसद श्री रवि किशन ने भी सम्बोधित किया।
इस अवसर पर ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्रीमती विजय लक्ष्मी गौतम, जनप्रतिनिधिगण एवं मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री अवनीश कुमार अवस्थी सहित शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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