खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में “आज़ादी का अमृत महोत्सव”का आइकॉनिक सप्ताह मना रहा है।
समारोह के तहत सर्करा प्रभाग, डीएफपीडी, भारत सरकार ने आज यहां ‘गन्ना खेती में अपनाए जाने वाले सर्वोत्तम पद्धतियों’ पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया और किसानों, स्वयं सहायता समूहों के साथ बातचीत की। वर्चुअल कार्यक्रम मेंदेश के सभी प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों के किसानों के साथ-साथ स्वयं सहायता समूहों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।
बातचीत के दौरान, संयुक्त सचिव (सर्करा) श्री सुबोध कुमार सिंह ने किसानों को बताया कि उपज में सुधार से गन्ने की खेती की लागत में कमी आने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने चीनी मिलों को बेहतर नकदी प्रवाह के लिए अधिक इथेनॉल का उत्पादन करने का सुझाव दिया, जिससे स्थायी उद्योग सुनिश्चित हो सके। उन्होंने ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने चीनी क्षेत्र को आत्मनिर्भर और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा की गई पहलों का संक्षेप में उल्लेख किया। किसानों के बकाया को कम करने के लिए केंद्र कैसे अथक प्रयास कर रहा है, इसके बारे में भी उन्होंने बताया गया ।
इसके अलावा, विभिन्न राज्यों के प्रगतिशील किसानों, चीनी मिलों ने अधिक उपज देने वाली किस्मों के उपयोग, ड्रिप सिंचाई और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार आदि जैसे अपने सर्वोत्तम तरीकों को साझा किया, जिससे प्रति हेक्टेयर 150 टन गन्ने की पैदावार हुई, जो औसत उपज का लगभग दोगुना है। प्रसिद्ध गन्ना उत्पादक डॉ. बख्शी राम ने गन्ने के विभिन्न प्रकार के वितरण और सीओ 0238 में लाल सड़न (रेड रॉट) के लिए चिंता न करने का सुझाव दिया, एक ऐसी किस्म जिसने उत्तर भारतीय कारखानों में चीनी के उत्पादन में 2% की वृद्धि की है। गन्ने की खेती के विशेषज्ञ डॉ. ए डी पाठक ने गन्ने की खेती में मशीनीकरण और उत्पादन की कम लागत पर गन्ने की उपज और रिकवरी में सुधार के लिए सर्वोत्तम सिंचाई पद्धतियों का सुझाव दिया। गन्ने की अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीज उत्पादन के महत्व पर अधिक सुझाव दिए गए, जिसपर प्रमुखता से चर्चा हुई। एनएसआई, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने सुझाव दिया कि गन्ने की कटाई और गन्ने की पेराई के एकीकरण के सुधारात्मक तरीकों से प्रति इकाई भूमि से अधिक चीनी का उत्पादन होता है।
विभाग के सर्करा प्रभाग ने दोपहर में ‘चीनी/इथेनॉल क्षेत्र में चुनौतियां और अवसर’ पर एक वेबिनार का आयोजन किया। कार्यक्रम की शुरुआत संयुक्त सचिव (सर्करा) श्री सुबोध कुमार सिंह के मुख्य भाषण से हुई। इसके बाद श्री अरविंद चुड़ासमा द्वारा “वैश्विक शर्करा और इथेनॉल परिदृश्य”पर बात की गई, डॉ बी बी गुंजाल ने “इथेनॉल उद्योग में पर्यावरण के मुद्दे”पर बात की, श्री महेश कुलकर्णी ने “इथेनॉल उद्योग में हालिया तकनीकी विकास”पर बात की, श्री जयप्रकाश आर. सालुंके दांडेगांवकर ने ‘सहकारी चीनी क्षेत्र में चुनौतियां’ पर चचर्चा की और श्री एन. रामनाथन ने ‘गन्ना किसानों और चीनी उद्योग के हितों को संतुलित करने’ पर बात की।
संयुक्त सचिव (सर्करा) ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि भारतीय चीनी क्षेत्र एक चक्रीय चीनी उद्योग से संरचनात्मक रूप से अधिशेष उद्योग और एक नियमित निर्यातक के रूप में एक लंबा सफर तय कर चुका है। उन्होंने एमएसपी, बफर स्टॉक और एमआरएम पर कई सरकारी पहलों के बारे में बताया, जिसमें इथेनॉल उत्पादन आदि के लिए कई फीड स्टॉक की अनुमति दी गई है और उन्होंने इस क्षेत्र को स्थायी बनाने के लिए खेत से कारखाने तक मूल्य श्रृंखला में सुधार का आह्वान किया।
सहकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की चीनी मिलों ने दोनों कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लिया और सामग्री की सराहना की। उन्होंने भविष्य में भी इस तरह के आयोजन करने की सलाह दी। किसानों को अपनी पहल को साझा करने में बहुत खुशी हुई और उन्होंने गन्ने के बकाया का समय पर भुगतान सुनिश्चित करने तथा चीनी उद्योग को गन्ना विकास में सहायता करने के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की।