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ऊर्जा क्षेत्र के समग्र विकास के लिए प्रदेश एवं केन्द्र सरकार सम्मिलित रूप से जिम्मेदार: मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि ऊर्जा क्षेत्र के समग्र विकास के लिए प्रदेश एवं केन्द्र सरकार सम्मिलित रूप से जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और प्रदेश सरकार के बीच ऊर्जा क्षेत्र के एकीकृत नियोजन के लिए आवश्यक तालमेल जरूरी है। राज्य सरकार बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए पूरी गम्भीरता के साथ हर सम्भव प्रयास कर रही है।

मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में ऊर्जा राज्य मंत्री श्री शैलेन्द्र यादव ‘ललई‘ आज गोवा में राज्यों के ऊर्जा मंत्री के सम्मेलन में शिरकत कर रहे थे। उन्होंने सम्मेलन में मुख्यमंत्री की ओर से वक्तव्य दिया। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के पास ऊर्जा विभाग भी है।
सम्मेलन के अवसर पर श्री शैलेन्द्र यादव ‘ललई‘ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में जितना काम हुआ, समाजवादी सरकार ने उसको दो-गुना किया तथा पारेषण और वितरण में भी राज्य सरकार ने 60 वर्ष की उपलब्धियों को मात्र 4 वर्षाें में लगभग 30 से 40 प्रतिशत बढ़ाया। उन्होंने कहा कि आजादी से लेकर वर्ष 2012 तक जहां उत्तर प्रदेश की स्थापित क्षमता 8500 मेगावाट थी, वह अब लगभग 15,000 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। अक्टूबर 2016 तक यह क्षमता 17,000 मेगावाट पर पहुंच जाएगी। इस प्रकार पिछले 4 वर्षांें में प्रदेश में उतनी ही उत्पादन क्षमता जोड़ी गई है, जितनी आजादी के बाद 65 वर्षाें में जोड़ी गई थी। इसके अतिरिक्त 8500 मेगावाट बिजली को बिना किसी बाधा के उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा सके इसके लिए लगभग 22,000 करोड़ रुपये का निवेश करके 765 के0वी0 क्षमता के चार, 400 केवी क्षमता के सत्तरह, 220 के0वी0 क्षमता के 37 तथा 132 के0वी0 क्षमता के 74 नए उपकेन्द्रों एवं संबंधित लाइनों का निर्माण अक्टूबर 2016 तक पूर्ण कर लिया जाएगा।
तहसील को वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में विकसित करने हेतु उन्हें अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक विद्युत आपूर्ति किया जाना आवश्यक होगा। इसके लिए राज्य सरकार ने 201 तहसीलों में 33/11 के0वी0 क्षमता के नए उपकेन्द्र बनाने का निर्णय लिया तथा 800 करोड़ रुपए की धनराशि राज्य के बजट से उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लि0 को उपलब्ध करायी। इनमें से 173 उपकेन्द्रों का निर्माण पूर्ण करके उन्हें ऊर्जीकृत किया जा चुका है। तहसीलों के जो उपकेन्द्र ऊर्जीकृत हो गए हैं वहां विद्युत आपूर्ति 2 घण्टे बढ़ा दी गई है। गत तीन वर्षाें में 33/11 के0वी0 क्षमता के 556 नए उपकेन्द्रों का निर्माण तथा लगभग 850 उपकेन्दों की क्षमतावृद्धि का कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है।
राज्य द्वारा अविद्युतीकृत ग्रामों के विद्युतीकरण करने में विशेष उपलब्धि हासिल की गयी। प्रदेश की प्रगति जहां 83.5 प्रतिशत प्रगति रही है, वहीं इसके बाद जो दूसरे नम्बर पर बिहार प्रदेश था, उसकी मात्र 63.8 प्रतिशत प्रगति रही एवं अन्य सभी राज्यों की प्रगति 50 प्रतिशत से भी कम रही। वर्ष 2016-17 में 1,40,000 मजरों के विद्युतीकरण को पूर्ण किया जाना सुनिश्चित किया जाएगा जिसमें से लगभग 1,00,000 मजरे/ग्रामों का विद्युतीकरण अक्टूबर 2016 तक किया जाना प्रस्तावित है।
उज्ज्वल डिस्काम विकास योजना (उदय) के संदर्भ में विद्युत वितरण निगमों पर 30 सितम्बर, 2015 को बकाया 53,935 करोड़ रुपए के ऋणों के सापेक्ष राज्य सरकार द्वारा 75 प्रतिशत अंशपूजी के रूप में 39,134 करोड़ रुपए के ऋण 15 वर्षीय बंधपत्र जारी करते हुए अधिग्रहीत कर लिया गया है। अवशेष लगभग 14,000 करोड़ रुपए के ऋण विद्युत वितरण निगमों द्वारा वहन किए जा रहे हैं।
विद्युत वितरण निगमों के पास अवशेष लगभग 14,000 करोड़ में से 11,000 करोड़ रुपए के लिए बंधपत्र निर्गत किए जाने हैं परन्तु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इन ऋणों को एन0पी0ए0 की श्रेणी में रखे जाने के कारण बैंकों द्वारा इसमें रुचि नहीं दिखाई जा रही है। इसका तुरन्त समाधान अति आवश्यक है जिससे कि विद्युत वितरण निगम अपने ब्याज एवं पुर्नभुगतान व्यय को कम कर सके।
कोल इण्डिया द्वारा मार्च, 2016 में कोयले के मूल्य में लगभग 170 रुपए प्रति मीट्रिक टन की वृद्धि की गयी एवं अतिरिक्त कोल राॅयल्टी तथा क्लीन एनर्जी सेस के माध्यम से भी क्रमशः 24 रुपए प्रति मीट्रिक टन तथा 200 रुपए प्रति मीट्रिक टन की वृद्धि हुई है। कोयले की उपलब्धता एवं उसकी लागत का सीधा सम्बन्ध बिजली की लागत से है। निश्चय ही उपरोक्त वृद्धियों के कारण उत्पादित ऊर्जा के मूल्य में वृद्धि होगी।
उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण कम्पनियां भारी वित्तीय घाटे में हैं तथा उत्तर प्रदेश में विद्युत उत्पादन की लागत कम करने के लिए अतिरिक्त कोयले की उचित मूल्य पर व्यवस्था करना नितांत आवश्यक है। एक विशेष पैकेज के रूप में प्रदेश में वर्ष 2009 के बाद प्रारम्भ हुई परियोजनाओं के लिए कोयले का लिंकेज 65 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया जाए। साथ ही, निजी उत्पादन केन्द्रों यथा रोजा, बजाज, लैन्को, जयप्रकाश के लिए 100 प्रतिशत लिंकेज स्वीकृत किया जाना भी आवश्यक होगा, जिससे बिजली की लागत कम होगी तथा वितरण कम्पनियों की हानियों को शीघ्रता से समाप्त करना सम्भव होगा।
ऊर्जा राज्य मंत्री ने कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं कुछ अन्य राज्यों ने निजी क्षेत्र के साथ परियोजनाएं स्थापित करने के समझौते किए थे, किन्तु इन राज्यों में आवश्यकता से अधिक बिजली उपलब्ध होने के कारण वे अपने अंश की बिजली इन परियोजनाओं से क्रय नहीं कर रहे हैं। यह सरप्लस बिजली वे उत्तर प्रदेश जैसे आवश्यकता वाले राज्यों को बेच सकते हैं, किन्तु इस सम्बन्ध में नीति विषयक निर्देश विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी करने होंगे। उन्होंने अनुरोध किया कि यह निर्देश शीघ्र जारी कर दिए जाएं।
पिछले सम्मेलन का हवाला देते हुए ऊर्जा राज्य मंत्री ने कहा कि विन्ध्यांचल परियोजना उत्तर प्रदेश में ही स्थापित है तथा इस परियोजना की सरप्लस बिजली उत्तर प्रदेश क्रय करने को इच्छुक है तथा इस सम्बन्ध में विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार को अनुरोध भी किया जा चुका है। चूंकि इस परियोजना से उत्पादित विद्युत सस्ती है, अतः यदि इस परियोजना की सरप्लस बिजली उत्तर प्रदेश को आवंटित कर दी जाए तो उत्तर प्रदेश में विद्युत आपूर्ति बढ़ायी जा सकती है तथा इससे विद्युत की औसत लागत भी कम होगी।
कुछ समय पूर्व केन्द्र सरकार यह निर्णय लिया गया है कि उत्तर प्रदेश में स्थापित एनटीपीसी की सिंगरौली परियोजना की बिजली सोलर पावर के साथ बन्डलिंग करके बेची जाएगी। वर्तमान में सिंगरौली पावर स्टेशन की बिजली लगभग 1.50 रुपए प्रति यूनिट की दर पर मिलती है। बन्डलिंग के पश्चात बिजली की यह दर लगभग 3.50 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी। इससे उत्तर प्रदेश की औसत विद्युत क्रय लागत में भारी वृद्धि होगी। उत्तर प्रदेश की विद्युत वितरण कम्पनियों की वर्तमान वित्तीय स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार के इस निर्णय पर पुर्नविचार की आवश्यकता है।
ऊर्जा राज्य मंत्री ने बताया कि विद्युत उपभोक्ताओं को निर्वाध 24 घण्टे विद्युत आपूर्ति प्रदान किए जाने हेतु सभी यथा सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु केन्द्र सरकार द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के अंतर्गत प्रस्तावित योजनाओं की स्वीकृति न मिलने के कारण एक व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। प्रदेश की वितरण कम्पनियों द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के अंतर्गत लगभग 19000 करोड़ रुपए की योजनाएं प्रस्तावित की गयी थीं, जिसके विरूद्ध मात्र 6946 करोड़ रुपए मूल्य की योजनाएं आर.ई.सी. द्वारा स्वीकृत की गयी हंै। इस प्रकार से इस योजना के अंतर्गत लगभग 11827 करोड़ रुपए की 63 प्रतिशत की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई है।
इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के 33/11 के0वी0 उपकेन्द्रों से निकलने वाले पोषक के विभक्तीकरण हेतु प्रदेश सरकार द्वारा 7084 करोड़ रुपए की एक महत्वाकांक्षी योजना प्रेषित की गई थी, जिसमें से केन्द्र सरकार द्वारा मात्र 3258 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की जा चुकी है, जिससे प्रदेश के 07 शहरों के ग्रामों में 11 के0वी0 पोषकों के विभक्तीकरण का कार्य पूर्ण रूप से तथा 31 जनपदों में आंशिक रूप से प्रारम्भ किया जा रहा है। शेष कार्य के लिए केन्द्र सरकार से 3827 करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध कराए जाने पर सभी जिलों में यह कार्य पूर्ण रूप से हो सकेगा।
ऊर्जा राज्य मंत्री ने कहा कि अविद्युतीकृत उपभोक्ताओं के विद्युतीकरण करने हेतु 4123 करोड़ रुपए योजना प्रस्तुत की गई थी, जिससे लगभग 02 करोड़ उपभोक्ता विद्युतीकृत किए जा सकते थे, जिसके विरूद्ध 92 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत हुई है। यदि केन्द्र सरकार द्वारा यह धनराशि उपलब्ध करा दी जाती है तो प्रदेश के सभी उपभोक्ताओं को संयोजन देकर विद्युतीकृत किया जा सकेगा।

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