लखनऊ की रवायतें और संस्कृति देश के किसी शहर से अनूठी हैं। लखनऊ देश का ऐसा बिरला शहर है जहां हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बौद्ध, जैन समेत सभी संप्रदायों के धर्मस्थल हैं। मुट्ठी भर नवाबों के गुणगान, नवाब-कवाब के सौ साल का इतिहास ही लखनऊ नहीं है, बल्कि यह तो भगवान राम के अनुज लक्ष्मण द्वारा बसाया शहर है।
यहां लक्ष्मण टीला है जो ऋषि कौणाशिनी का आश्रम है। इसमें शिवलिंग का अभिषेक लक्ष्मण जी ने किया था जो आज कोणेश्वर मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। छाछी कुआं में हनुमान जी का सबसे पुराना मंदिर, जहां रामचरित मानस के रचयिता तुलसी दास जी रूके थे। ऐसा शहर जहां कभी हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर संप्रदायवाद नहीं हुआ और न ही कभी पिछड़ा-दलित के नाम जातिवाद…। यह कामगारों का शहर रहा है। इसीलिए जहां कंघियां बनती थीं तो कंघी वाली गली, जहां जानवरों की सींग पर काम होता था, वह सींग वाली गली, जहां सड़कों पर पानी डालने वाले भिस्ती रहते थे तो वह मशालची टोला, जरी का काम जहां होता था वह जरी वाली गली…लखनऊ के बारे में ऐसी जानकारियां जिसके बारे में अभी तक न किसी ने सुना और न ही लिखा, उन्हें अपनी पुस्तक ‘अनकहा लखनऊ’ में शब्दों में पिरोया है लखनऊ के सांसद रहे लाल जी टंडन ने…। वह कहते हैं उनकी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ को असल लखनऊ की पूरी संजीदा तस्वीर कहें तो गलत न होगा।
उन्हें लखनऊ के इन्साइक्लोपिडिया कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। लाल जी लखनऊ के सर्वमान्य नेता हैं। अस्सी साल की उम्र से ज्यादा पार कर चुके श्री टंडन ने नवाब-कवाब की पहचान से अलग हटकर लखनऊ को जाना तो उन्हें लगा कि वाकई में लखनऊ के बारे में अब तक जो लिखा गया वह नवाबों का 96 साल वाला ही इतिहास है। तो क्या इससे पहले लखनऊ था ही नहीं? उससे पहले के लखनऊ के मर्म और उसकी खासियतें उनके दिलोदिमाग में हरदम हलचल करती रहतीं। उनकी यह याददाश्त आहिस्ता -आहिस्ता किस्सागोई की आदत में तब्दील होती गई। लोग इसे पसंद करते और फिर टंडन जी ने इसे किताब की शक्ल देने की ठान ली।