26 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

राष्ट्रपति ने कहा विश्वविद्यालय स्वतंत्र संवाद और अभिव्यक्ति का स्थल होने चाहिए

देश-विदेश

नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने नालंदा के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह को संबोधित किया और इसके नए परिसर की आधारशिला रखी।

इस अवसर पर, अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय में वह इस आशा के साथ उपस्थित हैं कि यह विश्वविद्यालय सही मायने में प्राचीन समय के नालंदा विश्वविद्यालय की स्थिति को हासिल करेगा। प्राचीन नालंदा में अपनायी जाने वाली कई पद्धतियां नवीन नालंदा में अनुकरण के योग्य है। प्राचीन नालंदा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान था जहां विशेष रूप से अंतर-एशियाई संबंधों का विस्तार हुआ था। चीनी भिक्षु ह्वेन त्सांग, यिझिंग और हुईशाओ एवं अन्य आगन्तुकों ने नालंदा में निवास, अध्ययन और पढ़ाया भी। एक अवधि के बाद तिब्बत के विद्वान भी बौद्ध धर्म और ज्ञान के अन्य स्वरूपों का अध्ययन करने के लिए नालंदा आएं। इसके अलावा श्रीलंका के साथ-साथ अन्य देशों के भिक्षु भी संस्थान पर धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों की विविधता का अध्ययन करने के लिए नालंदा आए। राष्ट्रपति ने कहा कि यह सिर्फ एक दिशा में नहीं था नालंदा के भिक्षुओं ने अपने इस ज्ञान का प्रसार संपूर्ण विश्व में किया और भारत में ह्वेन त्सांग की यात्रा से पूर्व यह चीन पहुंच गया था।

राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा को उच्च स्तर की बौद्धिक परिचर्चा और विचार-विमर्श के लिए जाना जाता है। उन्होंने कहा कि यह मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति ही नहीं अपितु एक विचार और एक संस्कृति को परिलक्षित करता है। नालंदा ने मित्रता, सहयोग, विचार-विमर्श और तर्क का संदेश दिया। चर्चा और बहस हमारे लोकाचार और जीवन का हिस्सा है।

राष्ट्रपति ने कहा हालांकि अध्ययन के मुख्य विषय बौद्धग्रंथ थे लेकिन वेदों और अन्य क्षेत्रों के अध्ययन को भी यहां पर महत्वपूर्ण रूप से महत्व दिया गया। उन्होंने कहा कि आधुनिक नालंदा के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वह इस महान परंपरा को अपने परिसर में नए जीवन और शक्ति के साथ आगे बढ़ाता रहे। विश्वविद्यालयों को स्वतंत्र संवाद और अभिव्यक्ति का स्थल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालों में असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और घृणा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए और इसे विभिन्न विचारों, दर्शनों का ध्वजवाहक होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा सभ्यताओं और आधुनिक भारत का एक मिलन स्थल रहा है और इसे निरंतर बने रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी ज्ञान झरोखों को बंद नहीं करना चाहिए और हमें बाहर से आने वाली झोकों से इन्हें बुझना नहीं चाहिए। हमें समूची दुनिया से स्वतंत्र प्रवाह के रूप में ज्ञान को अंदर आने देना चाहिए और इससे स्वयं को समृद्ध बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें संकीर्ण मानसिकता को छोड़कर स्वतंत्र विचारों और सकारात्मक परिचर्चा को अपनाना चाहिए।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More