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माइग्रेन की बीमारी से बचने के लिए समय से उपचार करायें

उत्तर प्रदेश
लखनऊ: माइग्रेन साधारणतः सिर व गर्दन में हल्के दर्द के साथ शुरू होता है और बढ़ते-बढ़ते सिर के एक हिस्से में पहुंच जाता है। माइग्रेन दो प्रकार का होता है एक क्लासिकल माइग्रेन और दूसरा नाॅन क्लासिकल माइग्रेन। जब माइग्रेन का दर्द ‘आरा‘ (दृष्टि संबंधी गड़बड़ी) से शुरू होता है तब इसे क्लासिकल माइग्रेन कहते है। जब माइग्रेन का दर्द बिना ‘आरा‘ और दूसरे लक्षणों के साथ शुरू होता है, तब इसे नाॅन क्लासिकल माइग्रेन कहते हैं।

माइग्रेन के प्रमुख लक्षणों में जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी से घबराहट, शोर या खुशबू से चिढ़न होना, गर्दन या कंधे में दर्द या उन्हें मोड़ने  में दर्द होना, दृष्टि संबंधी  समस्याएं, पेट में गड़बड़ी, उबासी लेने में दबाव, मुँह का सूखना व कंपकपी उठना आदि शामिल हैं।
वैसे तो माइग्रेन के वास्तविक कारणों का पता नहीं है। अक्सर देखा गया है कि माइग्रेन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांरित होता है। 50 प्रतिशत मामलों में यह देखा गया है कि जो व्यक्ति माइग्रेन से पीड़ित हैं, उसके परिवार में यहां तक कि रिश्तेदारों में भी इसकी आशंका बढ़ जाती है। मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे उत्तेजना और गहरा अवसाद या न्यूराॅटिक डिसआर्डर जैसे पक्षाघात और मिरगी, माइग्रेन के खतरे को  बढ़ा देता है। कुछ खाने-पीने की चीजें भी माइग्रेन के खतरे को बढ़ा देती हैं। वातावरण में बदलाव जैसे तापमान में बढ़ोत्तरी, वायुदाब आदि कमी भी माइग्रेन की समस्या बढ़ा देती है।
चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन का कोई स्थाई उपचार उपलब्ध नहीं है, पर कई दवाइयों से इसकी तीव्रता कम की जा सकती है। माइग्रेन का उपचार  माइग्रेन मैनेजमेंट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें प्रिवेंटिव ड्रग्स, माइग्रेन सर्जरी, पोषक तत्वों का सेवन, जीवनशैली और इसके ट्रिगर से  बचाव शामिल हैं।
चिकित्सकों के अनुसार दवाओं के बुरे प्रभावों को ध्यान में रखकर मरीजों को दवाएं दी जानी चाहिए। पहले दवाओं को  कम मात्रा में शुरू करके धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ाया जाना चाहिए। इससे दवाओं के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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