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फलों को प्राकृतिक रूप से पकाने के लिए फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर का करें प्रयोग: पारस नाथ यादव

उत्तर प्रदेश
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री श्री पारस नाथ यादव ने जानकारी दी कि प्रदेश सरकार उद्यान विभाग के तहत राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजनान्तर्गत राज्य औद्यानिक मिशन से फ्रूट राइपिनिंग इकाईयों की स्थापना के लिए प्रोत्साहन योजना संचालित की है। योजनान्तर्गत लाभार्थी को परियोजना लागत का 35 प्रतिशत अधिकतम 105 लाख रूपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। उन्होंने बताया कि फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर की स्थापना के लिए परियोजना लागत एक लाख रूपये प्रति मी0टन निर्धारित है तथा कोई भी लाभार्थी अधिकतम 300 मी0टन क्षमता का फ्रूट राइपिनिंग इकाई स्थापित कर सकता है। प्रति चैम्बर की क्षमता 05 मी0टन से 25 मी0टन तक होती हैं।

उद्यान मंत्री ने बताया कि फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर की स्थापना को प्रोत्साहित करने से सामान्य जनमानस को कार्बाइड रहित फल प्राप्त होगें इसके साथ स्थानीय कृषकों को भी उनके उपज का उचित मूल्य प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर में फल समान रूप से पकते हैं तथा फल के समस्त मौलिक गुण यथावत रहते है। ऐसे उत्पाद का बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त होता है। इसके साथ व्यवसायिक दृष्टि से सूदूर स्थानों से कच्चा माल प्राप्त कर प्रयोग में लाया जा सकता है। पके हुए फलों की आपूर्ति अन्यत्र स्थानों को कर रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराये जा सकते है तथा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि राज्य औद्यानिक मिशन से मुजफ्फरनगर, आगरा, लखनऊ, इलाहाबाद, हाथरस, गोरखपुर, जनपद में फ्रूट राइपिनिंग इकाईयां स्थापित हो चुकी हैं। इसके साथ फैजाबाद, वाराणसी, बाराबंकी जनपद में नवीन फ्रूट राइपिनिंग इकाईयां स्थापित की जा रही है।
उद्यान मंत्री ने बताया कि बाजार में स्थानीय तकनीकों के आधार पर केला, आम, पपीता को कार्बाइड के माध्यम से पकाया जाता है। जबकि फलों को पकाने में कार्बाइड का प्रयोग काफी समय से निषेध है। कार्बाइड से पकाये फल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। उन्होंने कहां कि लोगों को कार्बाइड रहित उच्च गुणवत्तायुक्त फलों को उपलब्ध कराने के लिए अधिक से अधिक फ्रूट राइपिनिंग इकाईयां स्थापित करना नितान्त आवश्यक है।
ज्ञातब्य हो कि फलों में प्राकृतिक रूप से एथिलीन नामक तत्व पाया जाता है जो फलों को पकाने का कार्य करता है। जिससे फल पेड़ पर ही पकते है। प्रकृति की इसी देन का उपयोग फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर में किया जाता है। जैसे कि फलोें को पूर्ण परिपक्वता की स्थिति में किन्तु पकने से पूर्व पेड़ों से तोड़कर इन फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर में रखा जाता हैं। फ्रूट राइपिनिंग चैम्बर में तापक्रम एवं एथिलीन गैस को निश्चित मात्रा में नियंत्रित कर कक्ष को बन्द कर दिया जाता है। तीन से पाॅच दिनों के मध्य फल पककर तैयार हो जाते है। जिन्हे कक्ष खोलकर उपयोग में लाया जाता है। इस प्रकार पकाकर उपलब्ध कराये गये फल काफी उपयोगी होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होते है।

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