नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि नागरिकों के मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन पर आधारित हैं, क्योंकि अधिकार और कर्तव्य दोनों एक-दूसरे से निकलते हैं। आज संसद के केन्द्रीय कक्ष में भारतीय संविधान को अपनाने की 70वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में उन्होंने नागरिकों द्वारा राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि देश निर्माण अकेले सरकार का दायित्व नहीं है। श्री नायडू ने कहा कि जीवन, स्वतंत्रता, समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मौलिक अधिकारों को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है, लेकिन नागरिकों द्वारा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लेने का भी समय है। उन्होंने कहा कि कर्तव्यों और जिम्मेदारियों दोनों से पात्रता आती है। उन्होंने कहा कि यदि प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य का पालन करता है, तो अधिकारों का उपयोग करने के लिए उचित माहौल बनेगा। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि भारत को शक्तिशाली बनाने के लिए अपना कर्तव्य निभाएं।
श्री नायडू ने कहा कि भारत के संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य सूचीबद्ध हैं। श्री नायडू ने देश की संप्रभुता, एकता और अखण्डता; सद्भाव प्रोत्साहन, महिला सम्मान की रक्षा तथा संवर्धन, पर्यावरण संरक्षण, समृद्ध विरासत तथा संस्कृति संरक्षण, भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए नागरिकों से जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मजबूत नागरिक भाव, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, हिंसा का परित्याग तथा उत्कृष्टता के लिए प्रयास की जिम्मेदारी नागरिकों को लेनी चाहिए।
मौलिक कर्तव्यों के बारे में नागरिकों में जागरूकता के लिए उपराष्ट्रपति ने तीन सूत्री कार्य योजना का सुझाव दिया। इसमें पाठ्यक्रम में उचित स्तर पर मौलिक कर्तव्यों को शामिल करना, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थानों पर कर्तव्यों का प्रदर्शन करना तथा उचित अभियानों के माध्यम से युवाओं तक पहुंचना शामिल है।
श्री नायडू ने संसद और विधानमंडलों सहित सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गुणवत्ता और उत्कृष्टता को लक्ष्य बनाने को कहा।
श्री नायडू ने भारत के संविधान के मूल तथा विकास की चर्चा करते हुए कहा कि संविधान में अंतर्निहित गतिशीलता ने देश को लोकतंत्र तथा सामाजिक-आर्थिक विकास की मजबूती की दिशा में आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि पिछले 70 वर्षों का भारतीय लोकतंत्र का अनुभव आपातकाल के काले धब्बे को छोड़कर सकारात्मक रहा है।
उन्होंने कहा कि यह हमारे देश की दृढ़ता, संसदीय लोकतंत्र का मजबूत ढांचा, मजबूत निर्वाचन प्रणाली और संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से असहमति व्यक्त करने की क्षमता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि देश गणराज्य के केन्द्र में जनता को रखकर न केवल सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में उभरा है, बल्कि जीवंत, बहुल संस्कृति, संसदीय प्रणाली के रूप में मजबूत हुआ है, जिसमें संविधान प्रत्येक समाज के अधिकारों की रक्षा करता है।
उपराष्ट्रपति ने डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की चिंताओं की चर्चा करते हुए राजनीतिक दलों से पंथ से ऊपर देश को रखने का आग्रह किया, ताकि कठिनाई से प्राप्त स्वतंत्रता खतरे में न आए।