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जीबी पंत इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालयन एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित पुस्तक विमोचन करते हुएः मुख्यमंत्री

उत्तराखंड
देहरादून: हिमालयी क्षेत्रों के सतत विकास के लिए कट एंड पेस्ट की अवधारणा से बाहर निकल कर यहां की परिस्थितियों के अनुरूप प्रेक्टीकल माॅडल विकसित करना होगा। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ गांवों से शुरूआत की जा सकती है। एक स्थानीय होटल में जीबी पंत इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालयन एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट द्वारा आयोजित ‘‘हिमालयी सतत विकास हेतु बहु-हितधारकों की कार्यशाला’’ में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि शहरीकरण आर्थिक विकास की प्रक्रिया है। इसके साईड इफैक्ट को कम करके शहरों को स्तरीय जीवन योग्य बनाने के लिए आवश्यक प्राविधानों को पूरा करना होगा।

मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि समयचक्र के अनुसार जलवायु परिवर्तन आता है। परंतु पिछले कुछ समय में प्रकृति की विषमताओं में तेजी आई है। लोगों को इसके लिए कैसे तैयार किया जा सकता है, बड़ी चुनौति है। शहरीकरण, सड़कें आदि सभ्यता के विकास के साथ जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए पहाड़ों में सड़कें आवश्यकता हैं परंतु इससे हुए मलबे का सही निस्तारण भी उतना ही आवश्यक है। विकास के सामाजिक लागत-लाभ का विश्लेषण किया जाना चाहिए परंतु किसी भी एक्सट्रीम निर्णय से भी बचा जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि सतत विकास की प्रक्रिया के हितधारकों में मनुष्य, जीव-जंतु व वनस्पति सभी शामिल हैं। सतत विकास का माॅडल वही है जो कि स्तरीय जीवन देता हो, और पीढि़यों तक उसका लाभ मिले। परंतु इसके लिए कट एंड पेस्ट की थ्योरी से बाहर निकलना होगा। प्रेक्टीकल एप्रोच अपनानी चाहिए। हर गांव में विकास की अपनी क्षमता होती है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी की सहायता से इसमें वृद्धि की जा सकती है।
प्रो0डीआर पुरोहित ने कहा कि जलवायु परिवर्तन हमेशा से होता रहा है। इसमें कमी-बेशी होती रहती है। जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन के लिए वैज्ञानिक, पर्यावरणविदों के साथ ही प्रशासनिक तंत्र को भी शामिल किया जाना चाहिए। परंतु जलवायु परिवर्तन को बड़े खतरे की तरह भी नहीं लिया जाना चाहिए। इसमें डराने जैसी बातें नहीं होनी चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अधिक से अधिक वैज्ञानिक विधियों का उपयोग किया जा सकता है।
कार्यशाला के बारे में जानकारी देते हुए संस्था के निदेशक डा.पीपी ध्यानी ने बताया कि कार्यशाला में ‘‘क्लाईमेट चेंज एंड डिजास्टर रिस्क रिडक्शन’’, ‘‘टूरिज्म एंड क्लाईमेट चेंज’’ व ‘‘एनवायरमेंटल गवर्नेंस फार इफेक्टीव क्लाईमेट चेंज एडेप्शन’’ विषयों पर चर्चा की जा रही है।

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