नई दिल्ली: भू-अनुसंधान विद्वानों नेएक वेबिनार के जरिए चौथे राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक (एनजीआरएसएम) में प्राकृतिक संसाधनों, जल प्रबंधन,भूकंप,मॉनसून,जलवायु परिवर्तन,प्राकृतिक आपदा,नदी प्रणालियों जैसे कई क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ‘समाज के लिए भू-विज्ञान’विषय पर चर्चा की। इस बैठक का आयोजन भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)के तहत स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी), देहरादून ने किया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)के सचिव प्रो. आशुतोष शर्माइस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और कार्यक्रम के संरक्षक भी थे। कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में प्रो. आशुतोष शर्मा ने जल स्रोतों का पता लगाने, सिविल इंजीनियरों के लिए भू-विज्ञान,फसल और पानी के संबंध में जलवायु परिवर्तन का अध्ययन, खेतों में विभिन्न प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल, कृषि एवं सतत विकास में सौर ऊर्जा के उपयोग जैसे भू-अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं के बारे में बात की।
पिछले सप्ताह आयोजित इस दो दिवसीय वेबिनार में देश भर के प्रतिष्ठित वक्ताओं से 20 आमंत्रित वार्ताएं शामिल की गईं।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी)के संचालन निकाय के अध्यक्ष प्रो. अशोक साहनी ने युवा विद्वानों को समाज के हित में अनुसंधान करने के लिए प्रेरित किया। डब्ल्यूआईएचजी के निदेशक डॉ. कलाचंदसैनऔर संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने मौजूदा रुझानों और भू-विज्ञान अनुसंधान की सामाजिक प्रासंगिकता पर प्रस्तुतियां दीं।
डब्ल्यूआईएचजी के नियमित आयोजन के रूप में राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक (एनजीआरएसएम)की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई। इसका उद्देश्य युवा शोधार्थियों और छात्रों को अपने अनुसंधान कार्यों को साझा करने, समकक्ष लोगों की उस पर राय जानने और इस आधार पर अपने कार्यों को पहले से और बेहतर बनाने के लिए एक उचित मंच प्रदान करते हुए अनुसंधान में उनकी रूचि को और प्रगाढ़ करने के लिए प्रोत्साहित करना है।यह कार्यक्रम उन्हें प्रख्यात भू-वैज्ञानिकों के साथ बातचीत कर उनका अनुभव हासिल करने और भू-विज्ञान अनुसंधान क्षेत्र केनवीनतम रुझानों को समझने का अवसर भी प्रदान करता है।
इस वर्षवैश्विक कोविड-19महामारी के कारणचौथे राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक (एनजीआरएसएम) का आयोजन वेबिनार के माध्यम से किया गया जो डब्ल्यूआईएचजी की और से ऐसा पहला कार्यक्रम था। इस आयोजन में भारत के लगभग 82 विभिन्न विश्वविद्यालयों,संस्थानों और अन्य संगठनों के कुल 657विद्वानों ने भाग लिया।