नई दिल्ली: प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि अनुच्छेद 370 के समर्थकों ने जम्मू और कश्मीर का सबसे अधिक शोषण किया। अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद कश्मीरियत की ‘पहचान’ के लिए खतरे के बारे में उन्होंने कहा कि सामान्य धारणा के विपरीत, धारा 370 के बहाने राज्य का सबसे अधिक शोषण किया गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और गृह मंत्री श्री अमित शाह की रणनीति के तहत यह एक ऐतिहासिक निर्णय है। वह जीआईए की एक रिपोर्ट की प्रस्तुत किए जाने के अवसर पर बोल रहे थे। समूह के बौद्धिक और शिक्षाविदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने के बाद जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के बारे में ‘ग्राउंड जीरो से एक रिपोर्ट’ प्रस्तुत की। 2015 में स्थापित, जीआईए पेशेवर महिलाओं और उद्यमियों, मीडियाकर्मियों और सामाजिक-न्याय और राष्ट्र-निर्माण के लिए प्रतिबद्ध शिक्षाविदों का एक समूह है।
प्रतिनिधिमंडल ने तीन टीमों में जम्मू और कश्मीर की स्थिति का क्षेत्र में अध्ययन करने के बाद उसके निष्कर्षों के बारे में डॉ. जितेन्द्र सिंह को जानकारी दी। उन्होंने अपने सुझाव और सिफारिशें भी दीं। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में धर्म, वर्गों और विभिन्न व्यावसायिक पृष्ठभूमि के आम लोगों ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के सरकार के फैसले के बारे में खुशी जाहिर की है। टीम ने जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ भी बातचीत की और उनके विचारों पर गौर किया।
इस अवसर पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अचानक लागू प्रतिबंधों के बाद उत्पन्न स्थिति के बारे में कुछ वर्गों द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचना के विपरीत पिछले कुछ वर्षों में यह वर्ष सबसे शांतिपूर्ण त्योहारों का मौसम रहा है। उन्होंने कहा कि ईद, स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण त्योहार कई वर्षों के बाद शांतिपूर्ण तरीके से मनाए गए। उन्होंने कहा कि कुछ निहित स्वार्थों ने जम्मू और कश्मीर के लोगों की पहचान को खतरे के संबंध में इन भ्रामक धारणाओं को जन्म दिया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या तमिलनाडु, गुजरात और बंगाल में लोगों की पहचान को बचाने के लिए अनुच्छेद 370 की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय एक क्रांतिकारी कदम है और इस तरह की पहल की कल्पना करना भी मुश्किल है। इस फैसले का फल भविष्य में धीरे-धीरे महसूस किया जाएगा।
डॉ. सिंह ने केंद्र सरकार के कल के फैसले का उल्लेख किया कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन और लाभ मिलेंगे। उन्होंने कहा कि बच्चों के शिक्षा भत्ते, छात्रावास भत्ता, परिवहन भत्ता, एलटीसी, निर्धारित चिकित्सा भत्ते जैसे वार्षिक भत्तों पर हर वर्ष लगभग 4,800 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। उन्होंने कहा कि अब देश के अन्य हिस्सों में मिलने वाले लाभों की तरह जम्मू-कश्मीर के सरकारी कर्मचारी भी लाभ उठा सकते हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 31 अक्टूबर के बाद महिला-कल्याण संबंधी कई प्रावधान भी लागू किए जाएंगे। उन्होंने अनुच्छेद 35ए के समाप्त होने के बाद दहेज निषेध कानून को लागू करने, बाल विवाह पर रोक लगाने संबंधी कानून और अन्य उदाहरणों को उद्धृत किया। ये केंद्रीय कानून संघ शासित जम्मू और कश्मीर तथा संघ शासित लद्दाख के लिए लागू किए जाएंगे।
उद्योग के बारे में डॉ. सिंह ने कहा कि अब जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास में कोई बाधा नहीं है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के विकास से युवा पलायन पर भी अंकुश लगेगा, क्योंकि उनके लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे, जिनसे वे पहले वंचित थे। उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में पूर्वोत्तर के विकास का मॉडल दोहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर की तर्ज पर सेब, स्ट्रॉबेरी और अन्य फलों के लिए फूड प्रोसेसिंग पार्क खोले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू, कश्मीर के अन्य उत्पाद जैसे पश्मीना, केसर में भी बड़ी व्यावसायिक संभावनाएं हैं, जिन्हें जम्मू कश्मीर के लोगों की आर्थिक भलाई के लिए बाहर निकालने की आवश्यकता है। उग्रवाद के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद जम्मू-कश्मीर में अंतिम चरण में है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने जीआईए टीम के सदस्यों को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी और कहा कि यह एक जिम्मेदार पहल है क्योंकि इसके अधिकांश सदस्य अपने-अपने क्षेत्रों में बौद्धिक समुदाय से हैं। उन्होंने कहा कि उनकी रिपोर्ट इन दिनों उठाए जा रहे कई सवालों के जवाब देती है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट केवल जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर आधारित नहीं है, बल्कि लंबे समय के अनुसंधान और वर्षों के लिए कश्मीर मुद्दे से जुड़े रहने पर आधारित है।
डॉ. सिंह ने पेश की गई रिपोर्ट के बारे में कहा कि रिपोर्ट में दी गई जानकारी पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में कार्यान्वयन के लिए विभिन्न विभागों द्वारा कई नई योजनाएं तैयार की जा रही हैं, ताकि वह देश के किसी अन्य हिस्से की तुलना में विकास में पीछे न रहे।