लखनऊः उ0प्र0 गोसेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम नन्दन सिंह ने आज यहां इन्दिरा भवन स्थित आयोग के सभाकक्ष में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि इस बार गोमय से बनी लक्ष्मी-गणेश व हनुमान जी की मूर्तियों के साथ गोमय से बने दिये भी दीपावली में घरों की शोभा बढ़ायेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि उ0प्र0 गोसेवा आयोग एवं नगर निगम, लखनऊ द्वारा मिलकर लखनऊ में हनुमान सेतु के निकट झूलेलाल वाटिका पार्क में एक लाख गोमय के दियों को आगामी 13 नवम्बर को छोटी दीपावली के अवसर पर प्रज्जवलित किया जायेगा।
आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि अयोध्या, मथुरा, काशी व चित्रकूट जैसेे विश्व प्रसिद्ध राष्ट्रीय व सांस्कृतिक क्षेत्र भी गोमय से बने दियों से जगमगायेंगे। इन सभी कार्यों में स्वयं सहायता समूह के सहयोग से एक लाख महिलाओं को रोजगार की प्राप्ति हुई है जो 300 से लेकर 500 रूपये प्रतिदिन की आय अर्जित कर रही हैं। इसके अतिरिक्त गोमय से बनने वाली जैविक खाद से कृषक अच्छी फसल पैदा करके अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं।
श्री सिंह ने यह भी बताया कि अब तक 35000 परिवारों को लगभग 65000 बेसहारा निराश्रित गोवंश सुपुर्द किये जा चुके हैं, जिससे वे गोमय की खाद बनाकर अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं। साथ ही गोमय से बायोगैस, लट्ठे, गमले, धूपबत्ती, अगरबत्ती, हवन सामग्री, राखी व विभिन्न प्रकार की हस्त शिल्प से सजावटी वस्तुएं बनाई जा रही है। इन सभी कार्यों से प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। साथ ही सजावटी वस्तुओं को निर्यात करने का अवसर भी मिलेगा। आयोग यह भी प्रयत्न कर रहा है कि गोशालाओं में प्रयोग होने वाले यन्त्रों पर कृषि यन्त्रों के समान सब्सिडी मिले।
आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि गोमूत्र का शोधन करके गो अर्क व विभिन्न प्रकार की औषधियां बनाई जा रही है। इसके अतिरिक्त गोमूत्र से फिनायल भी बन रहा है जिसे गोनाइल कहा जाता है। इन सभी कार्यों से गोशालाओं की आय भी बढ़ेगी और वह आत्मनिर्भर बनेंगी। उन्होंने बताया कि गत वर्ष पंजीकृत गोशालाओं को आयोग के द्वारा 28 करोड़ 42 लाख रूपये भरण पोषण सहायता अनुदान दिया गया, जबकि इससे पूर्व के वर्ष में मात्र 07 करोड़ 50 लाख रूपये दिया गया।
श्री सिंह ने बताया कि तहसील मलिहाबाद के विकास खण्ड माल में ग्रामसभा करेन्द को समग्र विकास के लिये चयनित किया गया है, जिसमें सभी विभागों के सहयोग से विकास के कार्य किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि गोशालायें अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं। गोमय (गोबर) व पंचगव्य से बने उत्पाद से व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को सुधारने में भी सहयोग मिलेगा।