लखनऊ: वरिष्ठ फिजीशियन डा0 डी0के0 कटियार के अनुसार रक्त मानव शरीर में रक्त वाहिनयों के जरिए लगातार बहता रहता है। लगातार बहते हुए यह खून दिल तक जाता है जहाँ पंपिंग के जरिए साफ होने के बाद यह शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों और कोशिकाओं तक पहुँचता रहता है। यही खून फिर से धमनियों द्वारा दिल की ओर वापस भेज दिया जाता है। इसे दिल तक भेजने की प्रक्रिया में धमनियाँ सिकुड़ती हैं, क्योंकि शरीर की कोशिकाएं खून को वापस भेजने में ताकत लगाती हैं। इसी बहते खून में कभी-कभी क्लाॅट यानी थक्के बन जाते हैं।
ब्लड क्लाॅट यानि खून का थक्का अपने आप बनता है। सामान्य प्रक्रिया में यह क्षतिग्रस्त नलिकाओं की मरम्मत करने का भी काम करता है। यदि ऐसा न हो तो चोट लगने पर शरीर में खून का बहाव रोकना कठिन हो जाए। हमारे प्लाजा में मौजूद प्लेटलेट्स और प्रोटीन, चोट की जगह पर रक्त के थक्के का निर्माण करके रक्त के बहाव को रोकते हैं। आमतौर पर चोट के ठीक होने पर रक्त का थक्का अपने आप धुल जाता है। रक्त के थक्के का न घुलना और लम्बे समय तक बने रह जाना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है, जिसके लिए सही जांच और उपचार की आवश्यकता होती है।
बिना उपचार लम्बे समय तक रक्त के थक्के रहने पर यह धमनियों या नसों में चले जाते हैं और शरीर के किसी भी भाग जैसे आँख, हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े और गुर्दे आदि में पहुँचकर उन अंगो के सुचारू काम को बाधित कर देते हैं।