नई दिल्ली: भारत में एक गीगावाट की प्रथम अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजना के लिए हाल ही में अभिरुचि पत्र (ईओआई) आमंत्रित किए हैं जिसमें देश-विदेश के उद्योग जगत ने काफी रुचि दिखाई है। अब पवन उद्योग का भरोसा बढ़ाने के लिए मंत्रालय ने अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता बढ़ाने हेतु मध्यम एवं दीर्घकालिक लक्ष्य घोषित कर दिए हैं। वर्ष 2022 तक 5 गीगावाट का मध्यमकालिक लक्ष्य और वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट का दीर्घकालिक लक्ष्य घोषित किया गया है। वैसे तो भारत में तय किए गए 60 गीगावाट के तटवर्ती पवन ऊर्जा लक्ष्य एवं 34 गीगावाट पवन ऊर्जा की प्राप्ति और वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट के सौर ऊर्जा लक्ष्य की तुलना में उपर्युक्त लक्ष्य मामूली नजर आता है, लेकिन खुले समुद्र में विशाल पवन ऊर्जा टर्बाइन लगाने में होने वाली भारी दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए इस सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति भी अत्यंत चुनौतीपूर्ण नजर आती है। उल्लेखनीय है कि तटवर्ती पवन ऊर्जा टर्बाइनों की तुलना में अपतटीय पवन ऊर्जा टर्बाइनों के आकार के साथ-साथ उनकी क्षमता भी बहुत ज्यादा होती है।
अपतटीय पवन ऊर्जा की बदौलत देश में नवीकरणीय ऊर्जा के पहले से ही मौजूद समूह (बास्केट) में एक नया अवयव शामिल होगा।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने अक्टूबर, 2015 में राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति अधिसूचित की थी, ताकि देश में अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लक्ष्य को पाया जा सके। प्राथमिक अध्ययनों से भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर और पश्चिमी तट पर अपतटीय पवन ऊर्जा के लिए बड़ी मात्रा में हवाएं होने की संभावनाओं के बारे में पता चला है। इसके लिए गुजरात और तमिलनाडु के अपतटीय क्षेत्रों में प्राथमिक अध्ययन कराए गए। पवन की गुणवत्ता को सटीक रूप से मापने के लिए गुजरात तट के निकट एक ‘लिडार’ लगाया गया है जो नवंबर, 2017 से ही अपतटीय क्षेत्रों में चलने वाली हवाओं की गुणवत्ता से जुड़े डेटा सृजित कर रहा है। अपतटीय हवाओं की बेहतर गुणवत्ता से प्रोत्साहित होकर निजी क्षेत्र की एक कंपनी ने भी अपतटीय पवन संसाधन को मापने के उद्देश्य से गुजरात में कच्छ की खाड़ी में एक लिडार लगाया है। तमिलनाडु एवं गुजरात में भी इसी तरह के कई और उपकरण लगाने की योजनाएं बनाई गई हैं। विश्व स्तर पर ब्रिटेन, जर्मनी, डेनमार्क, नीदरलैंड और चीन की अगुवाई में लगभग 17-18 गीगावाट की अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की गई है। हाल के वर्षों में इनमें से कुछ बाजारों में अपतटीय पवन ऊर्जा की दरों में कमी देखने को मिली है।