केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार देश भर में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में मुकदमों के तेजी से निपटान में आने वाली बाधाओं को निरंतर हटा रही है।
आज नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के सदस्यों के लिए दो दिवसीय अनुकूलन कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह, जो आईआईपीए कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि सरकार ने पिछले आठ वर्षों में अप्रचलित हो चुके लगभग 2 हजार कानूनों को निरस्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भविष्य को देखते हुए प्रक्रियाओं को सरल बनाने और बाधाओं को दूर करने के माध्यम से न्यायपालिका के बोझ को कम करने के लिए प्रयास किया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर नमामि गंगे कैलेंडर का भी अनावरण किया। इस अवसर पर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजीत वसंतराव मोरे, डीओपीटी की अपर सचिव श्रीमती रश्मिी चौधरी, आईआईपीए के श्री एस एन त्रिपाठी तथा कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) के विचार की संकल्पना का निर्माण करते समय ऐसी उम्मीद की गई थी कि विशिष्ट रूप से सेवा मामलों से निपटने के लिए ऐसे प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के गठन से न केवल विभिन्न न्यायालयों के बोझ को घटाने में दीर्घकालिक सहायता मिलेगी और इसके जरिये उन्हें अन्य मामलों से तेजी से निपटने के लिए और अधिक समय प्राप्त होगा बल्कि इससे प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को उनकी शिकायतों के संबंध में त्वरित राहत भी उपलब्ध हो सकेगी। उन्होंने कहा कि संसद ने दो आधारों पर सेवा मामलों जैसे विशिष्ट मामलों की सुनवाई के प्रयोजन से विशेष न्यायाधिकरण उपलब्ध कराने के लिए अनुच्छेद 323ए को लागू किया था। पहला आधार यह था कि उच्च न्यायालय पर दूसरे तरह के कार्यों का इतना अधिक बोझ है और इसलिए सेवा मामलों का त्वरित निपटान करना इसके लिए संभव नहीं हो पाता है। और दूसरा आधार यह कि सेवा मामलों के लिए एक विशिष्ट प्रकार की विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और इसलिए सेवा मामलों के अनुभव का एक तत्व आवश्यक है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उच्च न्यायालय के सामने मुकदमों की बढ़ती लंबित संख्या के साथ, प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के गठन का बचाव करने के लिए ‘वैकल्पिक संस्थागत तंत्र‘ के सिद्धांत का भी प्रतिपादन किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के उच्च न्यायालयों के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में कार्य करने की उम्मीद की जाती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अपने अधिकार क्षेत्र तथा प्रक्रिया के संबंध में सामान्य न्यायालयों से अलग हैं क्योंकि वे केवल अधिनियम द्वारा कवर किए गए वादियों के सेवा मामलों के संबंध में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण सामान्य न्यायालयों की प्रक्रियागत पारिभाषिकी से भी मुक्त होते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण में अब न्यायपालिका तथा प्रशासन में व्यापक अनुभव रखने वाले लोग हैं, जिसके परिणामस्वरूप न केवल मामलों का त्वरित निपटान होता है बल्कि उससे गुणवत्तापूर्ण निर्णय भी प्राप्त होते हैं। उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि ये सदस्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन उसी प्रकार से कर रहे हैं जिस प्रकार सरकारी हस्तक्षेत्र से स्वतंत्र, देश में उच्चतर न्यायपालिका द्वारा किया जा रहा है और न्यायाधिकरण के अध्यक्ष को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान अधिकार दिए जा सकते हैं।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) का गठन 01.11.1985 को पांच स्थानों पर बेंचों के साथ की गई थी। वर्तमान में, इसके पास 19 नियमित बेंच हैं जिनमें से 17 उच्च न्यायालयों की प्रमुख सीटों पर तथा शेष दो जयपुर एवं लखनऊ में प्रचालन करते हैं। जम्मू एवं कश्मीर में नवगठित दोनों ही बेंचों को कार्यशील बना दिया गया है। जम्मू बेंच को 08.06.2020 से कार्यशील बनाया गया जबकि श्रीनगर बेंच को हाल ही में अर्थात 23.11.2021 से कार्यशील बनाया गया है। डॉ. सिंह ने संतोष के साथ बताया कि 1985 में इसे गठन के बाद से और 31.11.2022 तक 8,93,705 मामले अधिनिर्णय के लिए प्राप्त हुए हैं ( उच्च न्यायालयों से हस्तांतरित मामलों समेत ) जिनमें से 8,12,806 मामलों का निपटान कर दिया गया है और अब 80,899 मामले विचाराधीन रह गए हैं। उन्होंने कहा कि सीएटी द्वारा निपटान दर औसतन 90 प्रतिशत से अधिक रही है। उन्होंने बतया कि इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने एक लंबा रास्ता तया किया है और अपने अधिकार क्षेत्र तथा प्रक्रिया में अपने अनूठेपन को देखते हुए यह उचित भी है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक चलने वाली अनिवार्य प्रक्रियागत शब्दावलियों से मुक्ति ने इसे एक अद्वितीय निपटान दर अर्जित करने में सक्षम बनाया है।
सेवा विवादों के समाधान के मामले में प्रणाली को निरंतर प्रभावित करने वाली देरी के मुद्दे पर डॉ. सिंह ने कहा कि आम तौर पर यह देखा गया है कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण के सामने आवेदनों का निपटान सदैव त्वरित गति से होता है और अधिकांश बेंचों में मुश्किल से पुराने मामलों में कोई विचाराधीनता बचती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रौद्योगिकीय युक्तियों ने कोविड-19 के असर को कम करने तथा लोगों को सेवाओं की प्रदायगी करने में मुख्य भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि न्याय की प्रदायगी और न्यायालय का कामकाज भी ई- न्यायालय की सुविधा तथा वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधाओं, जिसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत अच्छी तरह से की थी, के कारण एक खास सीमा तक अर्जित कर लिया गया। उन्होंने कहा कि मामलों के प्रबंधन एवं निपटान में प्रौद्योगिकीय युक्ति (ई- फाइलिंग, ई-इविडेंस, वीडियो कांफ्रेंसिंग तथा ऑनलाइन केस मैनेजमेंट सिस्टम) को अपनाये जाने तथा सख्ती से अमल में लाये जाने की आवश्यकता है।