नई दिल्ली: भारत सरकार ने फैसला लिया है कि वह भ्रष्टाचार के आरोप में पूछताछ किए जा रहे या उन कर्मचारियों को पासपोर्ट नहीं देगी, जिनके खिलाफ सरकारी संस्था ने शुरुआती जांच के बाद एफआईआर दर्ज करवाई हो। ऐसे अधिकारियों को पासपोर्ट देने के लिए जरूरी सतर्कता विभाग से मंजूरी नहीं मिलेगी। सतर्कता विभाग उन अधिकारियों को भी मंजूरी देने से मना कर सकता है जो निलंबित हो या उन अधिकारियों के खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्रवाई में चार्जशीट दाखिल की गई हो।
कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी किए नए दिशा निर्देशों में कहा गया है कि संबंधित प्राधिकरण उस मामले में फैसले ले सकते हैं जिसमें ऐसे अधिकारियों को मेडिकल इमरजेंसी जैसे कारणों से विदेश जाने की जरूरत हो। जहां सतर्कता विभाग द्वारा लंबित आपराधिक मामलों में पासपोर्ट देने से मना करना नया नहीं है। वहीं सरकारी अधिकारियों को अब उनकी जांच पूरी होने तक के मामले में या फिर अभियोजन पक्ष द्वारा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम मामले में केस दर्ज हो तो उन्हें पासपोर्ट नहीं दिया जाएगा।
मंत्रालय ने जारी किए दिशा निर्देशों में कहा है कि निजी शिकायत के आधार पर दर्ज प्राथमिकी के मामले में सतर्कता मंजूरी को रोका नहीं जाएगा। इसमें कहा गया है कि पासपोर्ट कार्यालय के पास प्राथमिकी के संबंध में सूचना होनी चाहिए। साथ ही कहा गया है कि मामले पर अंतिम फैसला पासपोर्ट जारी करने वाला प्राधिकरण लेगा। सिविल सेवा अधिकारियों को भारतीय पासपोर्ट हासिल करने के लिए सतर्कता विभाग से मंजूरी की जरूरत होती है।
जहां भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले अधिकारियों के लिए सतर्कता विभाग की मंजूरी पाने के लिए मानदंडों को कठोर बना दिया गया है। वहीं नए निर्देशों में कहा गया है कि अधिकारियों के विदेशों में रह रहे परिजनों को मेडिकल इमरजेंसी हो सकती है या कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो सकता है। ऐसे मामलों पर विचार किया जा सकता है। (अमर उजाला)