नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आज संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरातत्व संस्थान के नए भवन की प्लॉट नंबर 2, इंस्टीट्यूशनल एरिया,नॉलेज पार्क-द्वितीय, ग्रेटर नोएडा में आधारशिला रखी। इस अवसर पर संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ महेश शर्मा की गरिमामयी उपस्थिति रही।
इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय अपनी समृद्ध, सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं को संरक्षित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान के नये भवन का निर्माण 300 करोड़ रूपये की लागत से किया जा रहा है। उन्होंने मत व्यक्त किया कि भारतीय संस्कृति विश्व में सबसे पुरानी संस्कृति है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की जड़े तलाशने में मदद कर रहा है। उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव धर्म को पूरे संसार में मान्यता मिली है।
डॉक्टर महेश शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत सरकार इस वर्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्म शताब्दी मना रहे है, इसलिए इस नये भवन को इस महान नेता की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में समर्पित करने का निर्णय लिया गया है। मौजूदा 25 एकड़ भूमि में से 38,000 वर्ग मीटर क्षेत्र को प्रस्तावित संस्थान के लिए चुना गया है। नए भवन को अतिआधुनिक डिजाइन अवधारणा के साथ बनाया जाएगा। जिसमें 1000 लोगों की क्षमता का सम्मेलन हॉल और 14,000वर्ग मीटर क्षेत्र में पुरातात्विक संग्रहालय, आवासीय भवन छात्रों के लिए हॉस्टल सुविधाएं और कैफिटेरिया आदि बनाये जाएंगे।
अपने स्वागत समारोह में संस्कृति सचिव श्री एन.के. सिन्हा ने कहा कि इस संस्थान के लाल किला परिसर स्थित मौजूदा भवन में इसके पूरे कार्य करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इसलिए इस संस्थान को प्लॉट नंबर 2, इंस्टीट्यूशनल एरिया,नॉलेज पार्क-द्वितीय, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आधुनिक सुविधाओं से युक्त नई इमारत में लाने का फैसला किया गया है।
पुरातत्व संस्थान, संस्कृति मंत्रालय के अधीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की एक अकादमिक शाखा है। यह संस्थान पुरातत्व में अपने पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा के माध्यम से शैक्षिक अनुसंधान के लिए एक उत्कृष्ट वातावरण उपलब्ध कराता है। इसने इस क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि हासिल कर रखी है। यहां छात्रों को सहायक, उत्साही और चुनौतीपूर्ण शैक्षिक माहौल उपलब्ध कराया जाता है जो उन्हें अपनी पूरी क्षमता को हासिल करने में सक्षम बनाता है। यह संस्थान अपने दो वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा के साथ-साथ पुरातत्व के विभिन्न क्षेत्रों पर पेशेवर कार्यशालाओं का भी आयोजन करता है। इस संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों को अपने इच्छित पुरातत्व क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए अवसर उपलब्ध कराना है।
एएसआई के तत्कालीन महानिदेशक श्री अमलानंद घोष के प्रयासों के कारण श्री बी.बी. लाल के नेतृत्व में पुरातत्व स्कूल,1959 में स्थापना की गई थी। यह स्कूल आर.एन. मिर्धा समिति की रिपोर्ट के आधार पर 1983 में भारतीय पुरातत्व में तब्दील हुआ। भारतीय पुरातत्व एएसआई के महानिदेशक के मार्गदर्शन में कार्य करता है। भारतीय पुरातत्व में अपने अस्तित्व के 57 वर्षों में अनेक प्रख्यात पुरातत्वविदों और विद्वानों को सृजन किया। संस्थान ने पहले से ही भारत के बाहर भी मान्यता हासिल की है। इस संस्थान में बर्मा, नेपाल,श्रीलंका, अफगानिस्तान और थाईलैंड से छात्रों को इस संस्थान में दाखिला लिया गया है। अपनी यात्रा के 57 वर्षों में संस्थान ने पुरातत्व के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।