नई दिल्लीः भारतीय कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ बढ़ती हुई आबादी के खाद्य सामाग्री की आपूर्ति की चुनौतियां हैं, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग और कृषि भूमि पर बढ़ते हुए दबाव का सामना हमारे अधिकांश किसान भाईयों को करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन एवं इससे फलस्वरूप जो विपरित परिस्थितियां पैदा हो रहीं हैं उन सब का प्रभाव हम देख ही रहे हैं। बावजूद इसके मोदी सरकार ने आगामी 6 वर्षों किसानों की आय को दुगुना करने का लक्ष्य रखा है, तो निश्चित रूप से हमारे पास बड़ी जिम्मेवारी है, और हम इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। उपरोक्त बातें आज केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने भारतीय हरित कृषि परियोजना द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रारंभिक कार्यशाला के उद्घाटन के दौरान कही। इस कार्यशाला का आयोजन, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। एक दिवसीय कार्यशाला में सचिव, DAC& FW,श्री एस के पट्टनायक, DG ICAR एंड सचिव DARE, डॉ त्रिलोचन मोहापात्रा, संयुक्त सचिव, श्री एस बी सिन्हा और संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के भारतीय प्रतिनिधि डॉ श्याम खड़का उपस्थित थे।
श्री सिंह ने कहा कि भारत द्वारा जैव विविधता सम्मेलन को प्रस्तुत 5 वीं राष्ट्रीय रिपोर्ट इस बात को इंगित करती है कि कृषि के विस्तार और कृषि तीव्रता में वृद्धि के कारण भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण देश के कई भागों में अत्यधिक दबाव पैदा हुआ है। यह दबाव मुख्य रूप से वन क्षेत्रों में कमी और वन क्षेत्रों के विखंडित, वेट लैंड समाप्त होने एवं चारागाह मैदानों को कृषि क्षेत्र में परिवर्तित होने के कारण हुआ है। इससे खाद्यान्न की समस्या में तो कुछ हद तक निदान हुआ है, लेकिन इसकी वजह से जैव विविधता में कमी आई है। वन्य जीवों एवं मनुष्यों के लिए संघर्ष बढ़ा है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत सरकार इन समस्याओं के निदान हेतु विभिन्न योजनाएं जैसे जलवायु स्मार्ट कृषि, सतत भूमि उपयोग एवं प्रबंधन, जैविक उत्पादन, स्थानीय और पारांपरिक ज्ञान का उपयोग तथा कृषि जैव विविधता सरंक्षण जैसी युक्तियों का उपयोग कर रहा है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर भी कई कार्यक्रम जैसे कि कृषि के सतत विकास के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए), समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच), राष्ट्रीय पशु विकास मिशन और परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीबाई) इत्यादि का कार्यान्वयन किया जा रहा है। लेकिन चुनौतियां विद्यमान हैं। इन्हीं सब चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए यह कार्यशाला रखी गयी है। इन्हीं सब चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए यह कार्यशाला रखी गयी है। कार्यशाला में चर्चा और विचार विमर्शों के आधार पर भारत में सतत कृषि हेतु नीति और पद्धतियों में रूपांतकारी परिवर्तन प्राप्त करने पर पूर्ण परियोजना दस्तावेज को भारत में कार्यान्वयन के लिए अंतिम रूप दिया जाएगा।
भारत में वर्ष 1991 में वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा (जीईएफ) प्रारंभ हुई,जो वैश्विक पर्यावरणीय मामलों का समाधान करती है। जीईएफ वैश्विक पर्यावरणीय लाभों हेतु लगातार वित्तपोषण प्रदान करके नवाचारों हेतु वित्तीय समर्थन देता है। जीईएफ का 6 चक्र 5 वर्ष की अवधि के लिए है और इसने सतत कृषि विकास, भूमि अवक्रमण, जैव विविधता और सतत वन प्रबंधन को लक्षित किया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के साथ इसका सीधा संपर्क है। पहली बार वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा (जीईएफ) ने 5 राज्यों उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओड़िशा और मिजोरम में विभिन्न कार्यों के क्रियान्वयन के लिए ‘’ भारत में सतत कृषि हेतु नीति और पद्धतियों में रूपांतकारी परिवर्तन प्राप्त करना’’ पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की परियोजना का अनुमोदन किया है। इस परियोजना पर लगभग 37 मिलियन डालर (250 करोड़ रूपए) है जो भारत को अनुदान के रूप में प्राप्त हुआ है। इस परियोजना को 7 वर्षों की अवधि में राज्य के कृषि विभागों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के अनुपालन के लिए वित्त मंत्रालय, भारत सरकार का आर्थिक कार्य विभाग भारत के जीईएफ का राजनैतिक फोकल प्वाइंट है जो नीति तथा अभिशासन संबंधी मामलों के लिए जिम्मेवार है जबकि पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत के जीईएफ का कार्यात्मक फोकल प्वाइंट है जिसके उपर जीईएफ कार्यक्रमों के सम्न्वयन की जिम्मेवारी है। गौरतलब है कि इस कार्यशाला में संबंधित विभागों के सचिव, केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठन, एवं संबंधित राज्यों के प्रगतिशील किसानों सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।