नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट के बड़े फैसले ने उत्तराखंड की सियासत ने फिर हलचल मचा दी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि
विधानसभा में 31 मार्च को सरकार बनाने के लिए मतदान होगा। कोर्ट ने सभी 70 विधायकों को आगामी 31 मार्च को विधानसभा में मौजूद रहने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने डीजीपी को विधानसभा की सुरक्षा का ध्यान रखने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई आगामी चार अप्रैल को होगी। कांग्रेस के नौ बागी विधायक भी इस मतदान में शामिल हो सकेंगे। इसके लिए नैनीताल हाईकोर्ट ऑब्जर्वर की नियक्ति करेगा। सुनवाई के बाद अभिषेक मनुसिंघवी ने बताया कि हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन के बावजूद राज्यपाल के आदेश को कार्यांवित करते हुए तिथि बदली है।
अब हरीश रावत को 28 की जगह 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा। उन्होंने बताया कि कांग्रेस की निलंबित विधायकों का निलंबन जारी रहेगा, लेकिन वह मतदान करेंगे और उनके मतदानों को अलग रखा जाएगा। उत्तराखंड के पूर्व सीएम रावत की याचिका पर मंगलवार को दूसरे दिन भी नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। उधर, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले में जनहित याचिका दायर कर दी गई है। इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी। याचिका उत्तराखंड विधायकों के खरीद फरोख्त के मामले में सीबीआई जांच की मांग की है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने हाईकोर्ट में सोमवार को याचिका दायर कर 27 मार्च को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने को चुनौती दी और उसे खत्म करने की भी गुजारिश की। इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता राकेश थपलियाल ने कहा कि इस पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी पक्ष रखेंगे। इस आधार पर कोर्ट ने उन्हें एक दिन का समय देते हुए मंगलवार को सुनवाई के लिए तिथि नियत की।
सोमवार को न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। पूर्व सीएम हरीश रावत ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 27 मार्च 2016 को राष्ट्रपति शासन लागू करने को चुनौती देते हुए उसे समाप्त करने की मांग की। याचिकाकर्ता की ओर से विश्वासमत हासिल करने के लिए पूर्व में निर्धारित तिथि 28 मार्च को बहुमत सिद्ध करने की याचना की गई। राज्यपाल तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से की गई संस्तुति को निरस्त करने की मांग गई। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति शासन राजनैतिक आधारों पर नहीं लगाया जा सकता है, जबकि सत्ताधारी पार्टी का सदन में बहुमत है। कहा कि भाजपा कुछ असंतुष्टों की मदद को लेकर स्वयं सरकार बनाने का षड्यंत्र कर रही है।
राज्यपाल ने पहले 28 मार्च को सदन में बहुमत सिद्घ करने को कहा था, लेकिन बिना बहुमत साबित करने का अवसर दिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया तथा बिना सुनवाई व जांच के रातों रात अधिसूचना जारी कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया, जो गलत है। याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा को निरस्त किया जाए और केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का पूरा रिकार्ड तलब किया जाए तथा प्रदेश की सरकार को बहाल किया जाए। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि संविधान की धारा 356 तभी लगाई जा सकती है, जब कोई इमरजेंसी आ जाए, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट से पैरवी करने आए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से राष्ट्रपति शासन को राजनीति से प्रेरित बताया और निरस्त करने की मांग की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से झारखंड, उत्तराखंड आदि राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया गया, जिसमें एसआर बाम्बे, रघुवर प्रसाद, जगदंबिका पाल सहित कई निर्णयों की कॉपी कोर्ट में पेश की। केंद्र सरकार के अधिवक्ता राकेश थपिल्याल की ओर से सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यदिकोई परिस्थितियां पैदा होती हैं, तो केंद्र राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। इसके अलावा उनके द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा गया। जिसके बाद उन्होंने कहा कि इस प्रकरण पर आगे की सुनवाई एडिशनल सॉलिसिटर जनरल करेंगे।
इस आधार पर कोर्ट ने उन्हें कुछ घंटों का समय दिया। इस प्रकरण पर मंगलवार को 10.15 बजे से मामले की सुनवाई जारी हो जाएगी। बता दें कि हाईकोर्ट में इस पर सोमवार को सुबह 11 बजे से सुनवाई हुई और शाम सवा तीन बजे तक जारी रही।