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हार्टफुलनेस संस्था ने ‘द ऑथेंटिक योग’ पुस्तक का लोकार्पण किया, और योग को सबके करीब ला दिया

उत्तराखंड

देहरादून: हार्टफुलनेस संस्था ने द ऑथेंटिक योग पुस्तक का लोकार्पण किया जो मूलतः श्री पी. वाई. देशपांडे द्वारा लिखी गई थी और इसमें हार्टफुलनेस संस्था के गाइड दृ दाजी के द्वारा अतिरिक्त सामग्री जोड़ी गयी है, जिसमें प्रस्तावना तथा हार्टफुलनेस के आलोक में योग के अभ्यास को प्रस्तुत करने के लिए एक नए अध्याय का समावेश किया गया है ताकि सभी लोग योग का प्रत्यक्ष लाभ ले सकें। यह पुस्तक शरीर, हृदय और आत्मा का पूर्ण एकत्व प्राप्त करने के लिए एक गहरी अन्तर्दृष्टि प्रदान करती है जो हमें ‘मनुष्य’ बनने के लिए उचित रूप से परिवर्तित कर सकता है।

यह उच्च कोटि की दार्शनिक पुस्तक है फिर भी यह सरल भाषा में लिखी गई है। इसे अंग्रेजी भाषा में लिखना श्री देशपांडे के लिए विचलन भी है क्योंकि वे मूलतः मराठी उपन्यासकार थे। 1961 में जे कृष्णमूर्ति से मिलने के बाद वे आध्यात्मिकता से जुड़ने लगे और उन्होंने अंग्रेजी में पुस्तकों की श्रृंखला लिखी जैसे एक भगवत गीता पर और यह पतंजलि के योग सूत्र पर है। और यह बाद वाली उन पुस्तकों में एक है जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक महान लेखक और अत्यधिक प्रशंसित दार्शनिक के तौर पर स्थापित कर दिया था। दाजी इसे पुनः मुद्रित कराना चाहते थे सिर्फ इसलिए नहीं कि यह अनुपलब्ध थी, बल्कि इसलिए भी कि वे देशपांडे जी के योग संबंधित मत को आधुनिक चेतना में लाना चाहते थे। इस पुस्तक में दाजी का अध्याय यह बताता है कि जो भी देशपांडे जी ने कहा है उसे किस तरह से ग्रहण करना है और उसे आधुनिक जीवन में व्यावहारिक तौर पर कैसे समझना है। इसे बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत भी किया गया है और जैसी यह 60 के दशक में थी उसकी अपेक्षा यह पढ़ने में भी आसान है।

दाजी कहते हैं, “योग के लाभों की शिक्षा बार-बार दी जाती रही है, लेकिन योग शारीरिक और मानसिक कल्याण से आगे और भी बहुत कुछ प्रदान करता है जिसे लोगों को समझना आवश्यक है। योग व्यक्ति के चरित्र निर्माण के साथ-साथ भावनात्मक और आध्यात्मिक पक्षों का उत्थान भी करता है और योग के इस पहलू को बहुत कम लोग जानते हैं। अपने स्व के अंतर्गत और विश्व के साथ एकत्व में होना सम्पूर्ण कल्याण के लिए सबसे ज़रूरी है और इस पुस्तक के माध्यम से मैंने इसी बात को उजागर करने की कोशिश की है। देशपांडे जी के योग संबंधी मत को आधुनिक चेतना में ले आने का विचार था। इस पुस्तक के अंत में जो एक अध्याय मैंने लिखा है उसमें न सिर्फ़ यह बताया गया है कि योग की सही पद्धति के तौर पर देशपांडे जी ने जो संस्तुति की है उसे कैसे ग्रहण किया जाए, बल्कि इसका उद्देश्य लोगों की सहायता भी करना है कि आधुनिक जीवन में व्यावहारिक तौर उसका अभ्यास किस प्रकार किया जाए। इस अध्याय के द्वारा जो कार्य मैंने किया है वह यह है कि योग की अवस्था को प्राप्त करने के लिए लोगों को जिन बाधाओं और अवरोधों का सामना करना पड़ता है उन्हें कैसे दूर किया जाए।”

जहाँ अन्य कई पुस्तकें आसनों और प्राणायाम के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं जिनका आमतौर पर सबसे अधिक अभ्यास किया जाता है, योग की शुरुआत नियम और यम से होती है- जो कि चरित्र निर्माण है और व्यक्ति को किस तरह अपनी जीवन शैली का निर्माण करना चाहिए। इसके बाद आसनों और प्राणायाम की बारी आती है जो शारीरिक भलाई और शारीरिक ऊर्जा के बारे में है, इसके बाद योग का सामयिक अभ्यास समाधि की ओर ले जाता है। देशपांडे जी ने इन सभी पक्षों को ठीक वैसे ही लिया है जैसे पतंजलि ने किया था, लेकिन उन्होंने पहले के योग गुरुओं और परंपराओं की अपेक्षा इसे बिल्कुल अलग तरीक़े से किया है। देशपांडे जी एक अद्भुत रचनात्मक उपन्यासकार थे, कृष्णमूर्ति से मिलने के बाद उनसे प्रभावित होकर उन्होंने योग की प्रत्यक्ष अनुभूति से लेकर योगिक अनुभूति तक का स्वयं अनुभव कर अपने रचनात्मक लेखन का उपयोग किया था। यही वजह है कि यह पुस्तक अत्यंत गहन है और योग वास्तव में क्या है उसे समझने का एक महान स्रोत है।

देशपांडे जी यह भी जानते थे कि हमें योग की अवस्था को प्राप्त करने से कौन सी चीज़ रोकती है। योग का अर्थ है एकता या आंतरिक रूप से एकत्व। वे सूत्रों के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करते हुए खूबसूरती से इसकी व्याख्या करते हैं कि हमें योग की अवस्था को प्राप्त करने से कौन सी चीज़ रोकती है उदाहरण के लिए, हमारी कामनाएं, पसंद, और नापसंद। वे उसी तरह से व्याख्या करने में समर्थ थे जैसे कोई भौतिक विज्ञानी पदार्थ में मौजूद अस्तित्व की भौतिक, ऊर्जा-संबंधित, अस्तित्व की परम अवस्था, ब्रह्माण्ड, और मनुष्यों की व्याख्या कर सकता है और हम अपने तंत्र में मौजूद बाधाओं, भावनाओं और जटिलताओं को कैसे समझ सकते हैं वे इसकी व्याख्या करने में सक्षम थे। 20वीं शताब्दी के इसी कालखण्ड में बाबूजी ने भी यह काम किया था, लेकिन इसे बहुत योगी समझ नहीं सके और इन्होंने यह अद्भुत तरीक़े से किया है।

जहाँ पतंजलि ने मानसिक असामंजस्य को उत्पन्न करने वाले तत्वों के विषय में छोटे-छोटे वाक्यों में सूत्रों के रूप में सार सहित बताया था, देशपांडे जी इसका विस्तार हमारे तंत्र में मौजूद जटिलताओं और उलझनों तक करते हैं। जो उन्होंने नहीं किया और जिसे दाजी ने इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में करते हैं वह उन अभ्यासों की संस्तुति करते हैं जो इन बाधाओं को तंत्र से साफ़ करने के लिए हैं।

देशपांडे जी और दाजी के द्वारा सुझाए गए योग के इस स्वरूप का अभ्यास बहुत आसान है। हार्टफुलनेस के एक मंच पर जिसे एकता के लिए योग के नाम से जाना जाता है, इसमें पूरी दुनिया के विशेषज्ञों के ऑनलाइन वीडियो मौजूद हैं इसलिए लोग अपने घर पर योग कर सकते हैं। यह सिर्फ़ ऐसे लोगों के लिए नहीं है जो अनुकूलनीय अथवा लचीले हैं, बल्कि इस मंच पर अनेक प्रकार के योग उन लोगों के लिए भी उपलब्ध है जो सभी लोगों के अनुकूल हैं चाहे वे शुरुआती स्तर पर हों अथवा वे लोग जो बहुत चुस्त-दुरुस्त नहीं हैं, और वहाँ पर श्वसन के अभ्यास और ध्यान के अभ्यास भी उपलब्ध हैं। इस मंच पर हार्टफुलनेस अकादमी के अलावा दूसरी शाखाएं भी सम्मिलित हैं जैसे आयंगर योग, कृष्णमाचार्य योग, शिवानंद योग, योग की बिहार शाखा, इत्यादि। ये सभी शाखाएँ अनेक अभ्यास उपलब्ध कराती हैं जिसे करने की बात देशपांडे जी इस पुस्तक द ऑथेंटिक योग में करते हैं ताकि समग्र कल्याण का सृजन किया जा सके।

सारांश प्रस्तुत करते हुए, द ऑथेंटिक योग पुस्तक स्वर्ण है और कल्याण का खजाना है। यह केवल विश्व भर में विख्यात ही नहीं है, बल्कि इस पुस्तक के माध्यम से योग के सार-तत्व तक पहुंच कर लोग इस चकित कर देने वाले दर्शन और जीवन के मनोविज्ञान को समझ सकते हैं।

इस पुस्तक के लिए इस वेबसाइट पर जाएँ –http://heartfulness.org/ 

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