उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक छोटे से गांव की एक बुजुर्ग सीमांत किसान श्रीमती कोइला देवी ने अपनी कृषि भूमि की पैदावार से पर्याप्त कमाई की उम्मीद छोड़ दी थी।
पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश और बिहार में हर साल तीन से चार महीने या उससे अधिक समय तक बाढ़ तथा उसके बाद होने वाले जल भराव ने अनेक किसानों की तरह ही उनकी कृषि उपज भी बुरी तरह से प्रभावित होती थी। इसके अलावा बीज, उर्वरक और कीटनाशकों की बढ़ती लागत ने उनकी आय को बीते वर्षों में काफी कम कर दिया। जब वह अपनी आय बढ़ाने के लिए वैकल्पिक आय स्रोतों को ढूंढ़ रही थीं, तब गोरखपुर उत्तर प्रदेश का ‘गोरखपुर एनवायर्नमेंटल एक्शन ग्रुप (जीईएजी)’ एक मददगार के रूप में उनके सामने आया। यह समूह तारा योजना के तहत कार्य करता है, जो कि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत इक्विटी, सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान (सीड) डिवीजन का एक भाग है।
जीईएजी ने उन्हें प्रभावी खेती की योजना जैसे ढाल-आधारित फसल प्रणाली, समय तथा स्थान प्रबंधन के साथ बहु-स्तरित खेती, उपयुक्त फसल संयोजन, कम लागत वाले लघु सुरंग आधारित बड़े पॉली हाउस और मौसम की जानकारी का उचित उपयोग करना सिखाया। प्रणालीगत स्तर पर इस तरह के समर्थन ने उन्हें एक ही वर्ष में 20 फसलों की खेती करने में मदद की और उन्हें सशक्त बनाया। इससे गोरखपुर जिले के जंगल कौड़िया ब्लॉक के रक्खोर गांव में रहने वाली 64 वर्ष की कोइला देवी की वार्षिक आय में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
अपने घर के बने जैविक खाद, बायोपेस्टीसाइड और अन्य तकनीकी तंत्रों का उपयोग करते हुए उन्होंने 266 वर्ग मीटर भूमि (82.52 क्विंटल / हेक्टेयर) में 220 किलोग्राम गेहूं काटा है। जो कि किसानों के बीच सबसे अधिक उपज है। इस दौरान उत्तर प्रदेश में प्रायोगिक तौर पर डीबी डब्ल्यू 187 के बीज प्रदान किए गए थे। इन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित प्रणालियों ने कोइला देवी की बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसी कृषि आवश्यकताओं पर बाजार निर्भरता को कम करने में मदद की है।
श्रीमती कोइला देवी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के कोर सपोर्ट प्रोजेक्ट – तारा योजना के तहत बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के कई मॉडल किसानों में से एक हैं, जो ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध प्रौद्योगिकियों और परिवर्तन के माध्यम से स्वयं तथा समुदायों को सशक्त बनाते हैं। गोरखपुर, उत्तर प्रदेश का जीईएजी समूह इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
कुल 36 मॉडल किसानों और 2200 से अधिक अन्य छोटे तथा सीमांत किसानों ने पिछले ढाई वर्षों के दौरान क्लस्टर स्तर पर 9 सामुदायिक संस्थानों के साथ विकसित खेती की बाढ़ के प्रति लचीली तकनीक अपनाई है और जीईएजी ने इस समर्थन योजना के तहत सहूलियत प्रदान की है तथा लोगों को मदद उपलब्ध कराई है। इसने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को परिवर्तन की एक नई दिशा दिखाई है और सामाजिक-आर्थिक लाभ के साथ बाढ़-जोखिमों को एक अवसर में बदल दिया है। 2018 में परियोजना की शुरुआत के बाद से कृषि प्रणाली में स्थानीय स्थितियों के अनुकूल इन लचीली खेती तकनीक पैकेजों को अपनाने के लिए उचित सुविधा और हाथों-हाथ मिले समर्थन ने इनपुट लागत (30-35 प्रतिशत) कम करके छोटे एवं सीमांत किसानों की औसत आय 37.5 प्रतिशत बढ़ा दी है।
जीईएजी ने आस-पास के शोध एवं अनुसंधान संस्थानों तथा लक्षित लाभार्थियों के बीच एक सेतु का काम किया है और कृषि समुदाय द्वारा बड़े पैमाने पर अनुकूलन, प्रदर्शन तथा सिद्ध तकनीकों को अपनाने के साथ ही वैज्ञानिक तरीके से प्रभावी खेती की योजना में स्थानीय क्षमता बढ़ाने में मदद की है।
इस तरह के विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप जैसे कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लचीली खेती प्रथाओं और संबंधित प्रौद्योगिकियों को स्थानीय स्तर पर परिवर्तनकारी बदलाव लाने का काम कर रहे हैं। श्रीमती कोइला देवी और अन्य स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए कृषक समुदाय को प्रेरित किया जा रहा है। यहां के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में समूह उद्यमों के रूप में बाजरा प्रसंस्करण इकाई के प्रबंधन जैसी अतिरिक्त गतिविधियों से इसे आगे बढ़ाया जा रहा है।
आजीविका के लिए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में समुदायों को सशक्त बनाने के लाभ: ढाल आधारित फसल प्रणाली, समय और स्थान प्रबंधन के साथ बहु-स्तरित खेती, उपयुक्त फसल संयोजन, कम लागत वाले लघु सुरंग आधारित बड़े पॉली हाउस और मौसम सलाह का उचित उपयोग जैसे प्रभावी खेती की योजना पर तकनीकी हस्तक्षेप।