एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा अपना गया रुख और दिए गए बयान दुर्भाग्यपूर्ण, अतिश्योक्तिपूर्ण और सच्चाई से परे हैं।
मामले से जुड़े तथ्य निम्नलिखित हैं :
एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के अंतर्गत सिर्फ एक बार और वह भी 20 साल पहले (19.12.2000) स्वीकृति दी गई थी। तब से अभी तक एमनेस्टी इंटरनेशनल के कई बार आवेदन करने के बावजूद पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा एफसीआरए स्वीकृति से इनकार किया जाता रहा है, क्योंकि कानून के तहत वह इस स्वीकृति को हासिल करने के लिए पात्र नहीं है।
हालांकि, एफसीआरए नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी यूके भारत में पंजीकृत चार इकाइयों से बड़ी मात्रा में धनराशि ले चुकी है और इसका वर्गीकरण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में किया गया। इसके अलावा एमनेस्टी को एफसीआरए के अंतर्गत एमएचए की मंजूरी के बिना बड़ी मात्रा में विदेशी धन प्रेषित किया गया। दुर्भावना से गलत रूट से धन लेकर कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया।
एमनेस्टी के इन अवैध कार्यों के चलते पिछली सरकार ने भी विदेश से धन प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा बार-बार किए गए आवेदनों को खारिज कर दिया था। इस कारण पहले भी एमनेस्टी के भारतीय परिचालन को निलंबित कर दिया गया था। विभिन्न सरकारों के अंतर्गत इस एक समान और पूर्ण रूप से कानूनी दृष्टिकोण अपनाने से यह स्पष्ट होता है कि एमनेस्टी ने अपने परिचालन के लिए धनराशि हासिल करने को पूर्ण रूप से संदिग्ध प्रक्रियाएं अपनाईं।
मानवीय कार्य और सत्य की ताकत के बारे में की जा रही बयानबाजी कुछ नहीं, सिर्फ अपनी गतिविधियों से ध्यान भटकाने की चाल है। एमनेस्टी स्पष्ट रूप से भारतीय कानूनों की अवहेलना में लिप्त रहा है। ऐसे बयान पिछले कुछ साल के दौरान की गईं अनियमितताओं और अवैध कार्यों की कई एजेंसियों द्वारा की गई जा रही जांच को प्रभावित करने के प्रयास भी हैं।
एमनेस्टी भारत में मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है, जिस तरह से अन्य संगठन कर रहे हैं। हालांकि, भारत के कानून विदेशी चंदे से वित्तपोषित इकाइयों को घरेलू राजनीतिक बहस में दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। यह कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और इसी तरह एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी लागू होगा।
भारत मुक्त प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और जीवंत घरेलू बहस के साथ संपन्न और बहुलतावादी लोकतांत्रिक संस्कृति वाला देश है। भारत के लोगों ने वर्तमान सरकार में अभूतपूर्व भरोसा दिखाया है। स्थानीय कानूनों के पालन में विफल रहने से एमनेस्टी को भारत के लोकतांत्रिक और बहुलतावादी स्वभाव पर टिप्पणियां करने का अधिकार नहीं मिल जाता है।