प्रदेश की नजूल नीति 2009 में कब्जेदारों के पक्ष में नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने की व्यवस्था वाले प्रावधान को निरस्त करने के हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। यह आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जून में दिया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट का स्थगनादेश याचिकाकर्ता सुनीता की अपील पर आया है।
हाईकोर्ट ने 2009 की नजूल नीति के उपर्युक्त प्रावधान को निरस्त करते हुए कहा था कि नजूल भूमि के अवैध कब्जेदारों की भूमि स्वत: ही सरकारी भूमि में समाहित मानी जाए। हाईकोर्ट में प्रदेश सरकार ने भी माना था कि नजूल भूमि पर प्रदेश में कई अवैध कब्जे हैं। इस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसी भूमि को खाली कराने के लिए किसी पृथक आदेश की जरूरत नहीं है तथा उनसे भूमि खाली करवा ली जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने इन दोनों ही बिंदुओं पर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने सरकार की नजूल नीति को असंवैधानिक व गैर कानूनी मानते हुए सरकार पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया था। कोर्ट ने कहा था कि नजूल भूमि सार्वजनिक संपत्ति है। इसको सरकार किसी अतिक्रमणकारी के पक्ष में फ्री होल्ड नहीं कर सकती और यह भूमि सार्वजनिक उपयोग की है। रुद्रपुर के पूर्व सभासद रामबाबू और उत्तराखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता रवि जोशी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार की एक मार्च 2009 की नजूल नीति के विभिन्न उपबंधों को चुनौती दी थी।
याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार नजूल भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर रह रहे लोगों के पक्ष में फ्री होल्ड कर रही है। हाईकोर्ट ने इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया था।
35 हजार लोगों को राहत की सांस
नजूल नीति 2009 को खारिज करने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद 35 हजार लोगों ने राहत की सांस ली है। ये वो लोग है, जिन्होंने 2009 की नीति के अनुसार, अपने कब्जे वाली नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थीं। मगर, 2009 की नजूल नीति खारिज हो जाने के बाद उनसे संबंधित फ्री होल्ड की प्रक्रिया रुक गई थी। राहत राज्य सरकार को भी कम नहीं है।
प्रभावित लोगों का सरकार पर दबाव था, कि वह उसके पक्ष में कानूनी लड़ाई लडे़। इस बीच, एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फ्री होल्ड की प्रक्रिया के फिर शुरू होने का रास्ता साफ माना जा रहा है।
दरअसल, इस पूरे मामले में हाईकोर्ट ने जून में एक आदेश दिया था, जिसमें 2009 की नजूल नीति को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को उचित माना था कि सार्वजनिक संपत्ति को कैसे मामूली नजराना देकर किसी के पक्ष में फ्री होल्ड किया जा सकता है। जिस वक्त यह आदेश आया, उस वक्त तक राज्य निर्माण के बाद 20 हजार एकड़ जमीन फ्री होल्ड की जा चुकी थी।
अकेले ऊधमसिंह नगर में ही 1900 एकड़ जमीन फ्री होल्ड की गई थी। नजूल की भूमि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में स्थित है। ऊधमसिंह नगर के अलावा हरिद्वार, नैनीताल, देहरादून जैसे जिलों में सबसे ज्यादा नजूल भूमि है। नजूल नीति 2009 खारिज हो जाने के बाद सबसे बड़ा संकट 35 हजार लोगों के फ्री होल्ड मसले को लेकर पैदा हो गया था। इन लोगों ने तय सर्किल रेट के हिसाब से फ्री होल्ड के लिए निश्चित धनराशि भी जमा करा दी थी।
फ्री होल्ड की प्रक्रिया पूरी न होने की स्थिति में ब्याज समेत पैसा वापस लौटाने का सरकार पर दबाव रहता। कोर्ट के नए आदेश के बाद राज्य सरकार भी इस ‘संकट’ से उबरती दिख रही है। हालांकि इस संबंध में जब आवास मंत्री मदन कौशिक से बात की गई, तो उन्होंने आदेश की जानकारी न होने की बात कही। उन्होंने कहा-सरकार प्रभावित लोगों के संबंध में विचार कर रही थी। इस क्रम में नई नजूल नीति में व्यवस्था करने का विचार भी चल रहा था। Source Amar Ujjala