देहरादून: द इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइसीए इंडिया) ने ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टंडर्ड्स (बीआइएस) के सहयोग में आज देहरादून में एक सेमिनार का आयोजन किया। इस सेमिनार को इंडियन ट्रांसफॉर्मर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईटीएमए) का समर्थन प्राप्त था। इस सेमिनार का विषय था ‘‘डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स का डिजाइन, सक्रिय मरम्मत, प्रमाणीकरण, परीक्षण और विश्वसनीयता तथा अन्य संबद्ध मुद्दे’’। इस सेमिनार का उद्देश्य विद्युत कंपनियों और ट्रांसफॉर्मर उत्पादकों के बीच उच्च मापदंड अपनाने और अपने ट्रांसफॉर्मर्स की तकनीकी विशिष्टताओं को अद्यतन करने की जागरूकता फैलाकर भारत में स्थायी विकास को बढ़ावा देना था।
डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स (डीटी) किसी भी डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क की महत्वपूर्ण संपदा हैं। उनके विश्वसनीय और क्षमतावान परिचालन से विद्युत वितरण कंपनियों को दीर्घकाल में लाभ हो सकता है। उत्तराखंड पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल), स्टेट पॉवर डिस्ट्रिब्यूशन यूटिलिटी और सेवा प्रदाता, उत्तराखंड के 13 जिलों में बिजली के लगभग 1.89 मिलियन उपभोक्ताओं को विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण विद्युत की आपूर्ति करते हैं। यूपीसीएल ने हाल ही में सभी बीपीएल परिवारों को निशुल्क विद्युत प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई है। इसमें लगभग 3,52,000 परिवार आते हैं, जिनकी पहचान दिसंबर 2018 तक प्रधानमंत्री की ‘‘सौभाग्य योजना’’ के अंतर्गत की जाएगी।
हालांकि सिस्टम में सुधार के लिये अपर्याप्त निवेश और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के योजना रहित विस्तार से तकनीकी हानि होती है। डीटी में इन हानियों का प्रमुख कारण है असंतुलित लोडिंग स्थितियों के कारण कमजोर क्षमता। भारत में डीटी के खराब होने की दर 12-15 प्रतिशत (राज्यों में) है, जबकि इसका वैश्विक औसत 1 प्रतिशत से कम है और रूड़की, हरिद्वार, काशीपुर, देहरादून, उधम सिंह जिलों में यह दर 5-6 प्रतिशत है। डीटी की मरम्मत के लिये कोई पूर्व सक्रिय व्यवस्था नहीं है, क्योंकि खराब डीटी ही मरम्मत के लिये भेजे जाते हैं। रिऐक्टिव रिपेयर की तुलना में ऐक्टिव रिपेयर (सक्रिय मरम्मत) की अप्रोच को प्राथमिकता दी जानी चाहिये जिससे फेलियर की दर कम होगी और उन्नत विश्वसनीयता के कारण तकनीकी हानि भी कम होगी।
आइसीए इंडिया ने वर्तमान में डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स (डीटी) के लिये मौजूद रिएक्टिव रिपेयर के बजाय ऐक्टिव रिपेयर को अपनाकर तकनीकी हानि को कम करने के उपाय खोजे हैं। इस प्रस्तावित डीटी एक्टिव रिपेयर से विद्युत प्रदाता नो-लोड और लोड की हानियों से बच सकते हैं। यदि एल्युमिनियम वाइंडिंग की जगह कॉपर वाइंडिंग का उपयोग किया जाए तो नो-लोड की हानि 75 प्रतिशत कम हो सकती है और लोड की हानि 40 प्रतिशत कम हो सकती है। यह देश में अपनी तरह का पहला कॉन्सेप्ट है और भारतीय वितरण कंपनियों को इस अप्रोच को अपनाने पर विचार करना चाहिये।
आइसीए इंडिया के निदेशक श्री मानस कुंडु ने कहा, ‘‘डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स में तकनीकी नुकसान से 10,800 करोड़ रू. से लेकर 14,500 करोड़ रू. तक खप जाते हैं। इन नुकसानों को कम करने के लिए उल्लेखनीय सामर्थ्य मौजूद है। इसके लिये डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स के लिये ऊर्जा में दक्ष मानक अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे उपभोक्ताओं का खर्च बचेगा और ऊर्जा की खपत कम होगी। आइसीए इंडिया में हम उपभोक्ताओं को लगातार गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति के राष्ट्रीय लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसे सेमिनारों से हमारा लक्ष्य उद्योग को जागरूक करना और उन्हें नई तकनीक अपनाने के लिये प्रेरित करना है, जिससे कुशलता भी बढ़ेगी। हमें उम्मीद है कि ऐसे मंचों से कंपनियों, ओईएम, परीक्षण अभिकरणों और मानक निर्माता निकायों के बीच संवाद होता है और मामलों को मिलकर सुलझाया जाता है, ताकि आपूर्ति में गुणवत्ता और विश्वसनीयता के लिये देश के डीटी इकोसिस्टम को बेहतर बनाया जा सके।‘‘
इस इवेंट के वक्ताओं में बीआइएस, सीईए, एएससीआइ, यूपीसीएल, ओईएम, आइटीएमए और टेस्टिंग एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल थे। इस कार्यक्रम को प्रतिभागियों, ट्रांसफॉर्मर मैन्यूफैक्चर्स, पावर यूटीलिटीज और डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स का इस्तेमाल करने वाले सामान्य उद्योगों ने काफी पसंद किया। इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन इंडिया ने बेहतर तकनीकी विकल्पों (ईई डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स) के लिये समर्थन देकर स्थिति में सुधार लाने हेतु इस परियोजना का बीड़ा उठाया है। आइसीए इंडिया द्वारा कोर और वाइंडिंग के लिये लो-लॉस, हाइ-ग्रेड मैटेरियल्स के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है, परिणामस्वरूप उच्च दक्षता और एनर्जी एफिशिएंट डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर्स (ईई डीटीएस) को बनाया जा सके।
आइसीए इंडिया के विषय में :
इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन इंडिया (आइसीए इंडिया) कॉपर अलायंस का सदस्य और इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन, एक गैर-लाभकारी संगठन, जो विश्व स्तर पर तांबे का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए काम करता है, की भारतीय शाखा है। आइसीए इंडिया अपने अभिभावक संगठन के समान उद्देश्यों से प्रेरित है, इसका लक्ष्य ‘तांबे की उन्नत तकनीकी कार्यक्षमता और विश्वव्यापी स्तर पर जीवन को बेहतर बनाने में योगदान के आधार पर इसके बाजारों की रक्षा और विकास करना‘ है। आइसीए इंडिया मुख्य रुप से अपनी उत्प्रेरक भूमिका के जरिए योगदान करता है, यह विद्युतीय सुरक्षा व ऊर्जा सक्षमता जैसी अपनी प्रमुख पहलों के जरिए एक स्थायित्वपूर्ण तरीके से तांबे के लिए दीर्घ-कालिक बाजारों में परिवर्तन और रुपांतरण को गति प्रदान करता है। आइसीए इंडिया की गतिविधियां अंतिम उपयोक्ताओं को तांबे के सकारात्मक महत्व को बेहतर तरीके से समझने एवं प्रशंसा करने पर संकेंद्रित रही हैं।