लखनऊ: उ0प्र0 कृषि अनुसंधान परिषद के फसल मौसम सतर्कता समूह के कृषि विशेषज्ञों तथा कृषि वैज्ञानिकों ने खरीफ तथा जायद की फसलों का भरपूर लाभ लेने के लिए उपयोगी सुझाव दिए है। किसान भाई गेहूॅं की कटाई के बाद फसल अवशेष को खेतों में कदापि न जलायंे बल्कि इसे खेत में सड़ाकर मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ायें।
गेहॅूं के अवशेष को सड़ाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर 5 टन/हे0 की दर से गोबर की खाद डालें। गोबर की खाद उपलब्ध न हो तो 20 किग्रा./हे. अतिरिक्त नत्रजन अथवा 2.5 किग्रा./हे. ट्राईकोडरमा बिरडी को मिट्टी या बालू में मिलाकर जुताई से पहले खेत में डालकर मिला दें।
भूमि जनित रोगों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. अथवा ट्राइकोडर्मा हरजियेनम 2 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2.5 किग्रा. प्रति हे. 60-75 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से शीथ ब्लाईट, मिथ्या कण्डुआ आदि रोगों से बचाव किया जा सकता है। उर्द, मूॅंग, सूरजमुखी की फसलों एवं लीची व आम के बागों में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
धान की रोपाई वाले प्रक्षेत्रों में हरी खाद के लिए सनई एवं ढैं़चा की बुआई करें। सभी जनपदों में कृषि विभाग के गोदामों पर ढेैंचा का बीज उपलब्ध है। ब्लाक स्तर पर खरीफ फसलों के संकर बीजों की खरीददारी हेतु मेले का आयोजन किया जा रहा है जिसमें सभी बीज विक्रेता अपने स्टाॅल लगाएंगे। कृषक फसलों के बीज यहाॅं प्राप्त कर सकते हैं। बीज की सब्सिडी हेतु कृषक को रसीद के साथ जिला कृषि अधिकारी से अनुरोध करना होगा। सब्सिडी की रकम 10 दिनों में खातों में स्थानान्तरित होगी। कृषकों द्वारा इस मेले के लिए 26 मई तक पंजीकरण कराया जा सकता है।
खरीफ फसल 2015 के लिए फसलों के बीमा कराने की अवधि संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में 1 अप्रैल से 31 जुलाई व मौसम आधारित फसल बीमा योजना में 1 अप्रैल से 30 जून, 2015 तक है। अतः मौसम की अनिश्चितताओं को देखते हुए कृषकों से अनुरोध है कि अपनी फसलों का बीमा अपने नजदीकी सहकारी या व्यावसायिक बैंकों के माध्यम से अवश्य करायें। कृषि विभाग द्वारा चलायी जा रही पारदर्शी किसान योजना के अंतर्गत कृषि निवेश, कृषि यंत्र, बीज, कृषि रसायनों को प्राप्त करने हेतु अपना रजिस्ट्रेशन कराएॅं। लम्बी अवधि की धान की प्रजातियों की नर्सरी पहले डालें।
धान की खेती में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपदों में लम्बी अवधि की धान की प्रजातियों स्वर्णा, सांॅभा महसूरी व महसूरी की पौधशाला में 20-30 मई तक बुआई करें। अधिक जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जहां एक मीटर से अधिक पानी लगा रहता है, धान की संस्तुत प्रजातियों यथा जलनिधि एवं जलमग्न की सीधी बुआई का उचित समय है, बुआई करें। नर्सरी डालने के लिए शोधित बीज का ही प्रयोग करें। यदि बीज पूर्व शोधित न हो तो धान की नर्सरी डालने से पूर्व बीज शोधन सुनिश्चित करें। यदि जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो तो 25 किग्रा0 बीज के लिए 4 ग्राम स्टेप्टोमाइसीन सल्फेट या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन को पानी में मिलाकर रात भर भिगो दें। दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें। जिन क्षेत्रों में शाकाणु झुलसा की समस्या है तथा बीज शोधित न हो, ऐसी दशा में उनमें 25 किग्रा0 बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन अतिरिक्त पानी निकाल देने के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोलकर बीज में मिला दिया जाये इसके बाद छाया में अंकुरित करके नर्सरी डाली जायें। बीज शोधन हेतु 5 ग्राम प्रति किग्रा. ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाये।
मक्का की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए मक्का की देर से पकने वाली संकर प्रजातियों गंगा-11, सरताज, एच.क्यू.पी.एम.-5, प्रो-316 (4640), बायो-9681, वाई-1402 तथा संकुल किस्म प्रभात आदि की बुआई 15 मई से करें। यदि बीज शोधित न हो तो बीज बोने से पूर्व 1 किग्रा0 बीज को 2.5 ग्रा. थीरम से शोधित करना चाहिये/बीज को इमिडाक्लोप्रिड 2 ग्रा./किग्रा. से बीज को शोधित करना चाहिए।
जायद फसलों की खेती में उर्द/मूॅंग में कीटों से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 40 ई.सी. या डाईमेथोएट 30 ई.सी. का संस्तुति अनुसार छिड़काव करेें। सूरजमुखी में बीज पड़ने हेतु परसेंचन क्रिया नितान्त आवश्यक है। परसेंचन हेतु अच्छी तरह फूल आ जाने पर हाथ में दस्ताने पहन कर या किसी मुलायम रोयेंदार कपड़े को लेकर सूरजमुखी के मुण्डकों पर चारों ओर धीरे से घुमा दें। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर, फिर मध्य के भाग पर यह क्रिया प्रातः काल 7.30 बजे तक करनी चाहिये।
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