नई दिल्ली: जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और शहरी मामलों का राष्ट्रीय संस्थान (एनआईयूए) ने “नदी प्रबंधन का भविष्य” पर एक आइडियाथॉन का आयोजन किया, जिससे पता लगाया जा सके कि कोविड-19 का संकट कैसे भविष्य में प्रबंधन के लिए रणनीतियों को आकार दे सकता है। कोविड-19 के संकट से निपटना दुनिया भर के अधिकांश देशों के लिए एक चुनौती बनी हुई है, जिसके कारण अधिकांश स्थानों पर लॉकडाउन जैसी स्थिति देखी जा रही है। हालांकि, इस संकट के इर्द-गिर्द आम चिंता और व्यग्रता रही है, लेकिन इस संकट ने कुछ सकारात्मक घटनाक्रमों को भी सामने लेकर आया है। इन्हीं में से एक है प्राकृतिक पर्यावरण में दिखाई देने वाला सुधार। नदियां स्वच्छ हो गई हैं। हवाएं साफ हो गई है। जीएचजी उत्सर्जन में काफी गिरावट दर्ज की गई है। पशु-पक्षी वापस लौट रहे हैं और अपने आवासों का आनंद ले रहे हैं। विशुद्ध रूप से नदी प्रबंधन के दृष्टिकोण से, भारत में पिछले कुछ सप्ताहों में गंगा और यमुना में जल की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पिछले वर्ष के दौरान, गंगा डॉल्फिन, एक संकेतक प्रजाति, को नदी के कई हिस्सों में देखा जाने लगा है, जो कि सुधार को दिखा रहा है। गंगा और उसकी सहायक नदियों में लॉकडाउन के दौरान इसका ज्यादा झलक देखने को मिल रहा है। वेनिस की प्रसिद्ध प्रदूषित नहरें साफ हो गई हैं क्योंकि उसके पास पर्यटक नहीं आ रहे हैं। हाल के इतिहास में पहली बार, डॉल्फ़िन इटली के जलमार्ग में वापस आ गई हैं क्योंकि वहां नेविगेशन बंद हो गया है।
सवाल सिर्फ इतना है कि इनमें लंबे समय तक कितना बदलाव आएगा। आइडियाथॉन में इस बात की जांच की गई है कि संकटों से निपटने के लिए नदियों की सामाजिक दृष्टिकोण का लाभ कैसे उठाया जा सकता है? महामारी ने हमें नदी प्रबंधन के लिए क्या-क्या सबक सिखाया है? और नदी संकट की स्थिति में किस प्रतिक्रिया वाले तंत्र की आवश्यकता है?
कल आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में लगभग 500 प्रतिभागी एक साथ आए। पैनलिस्ट विशेषज्ञ, विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से आए हुए लोग थे।
नदी प्रबंधन की ओर ज्यादा ध्यान आकर्षित करने और नदी के साथ शहरों की इंटरकनेक्टिविटी को उजागर करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा इस आइडियाथॉन की शुरुआत की गई। शहरी नियोजन की पारंपरिक विधियों की तुलना में एक अलग दृष्टिकोण, अगर ठीक से योजना बनाई जाए तो नदी वाले शहरों को न केवल नदी के सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व का लाभ उठाने के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है बल्कि पारिस्थितिक महत्व और आर्थिक क्षमता का भी लाभ उठाने की जरूरत है, जो कि शहर के लिए मददगार साबित हो सकती है।
शहर के लिए शहरी नियोजन रूपरेखा में नदी प्रबंधन को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से एनएमसीजी, राष्ट्रीय शहरी मामलों का संस्थान के साथ मिलकर शहरी नदी प्रबंधन योजना के लिए एक नमूना विकसित कर रहा है। आइडियाथॉन ने कोविड-19 महामारी, उसके कारण हुए लॉकडाउन और नदी प्रबंधन पर इसके प्रभाव से सीखी गई बातों पर मंथन करने की मांग की है। एनआईयूए के डॉ विक्टर शिंदे ने इस वेबिनार की शुरुआत की और ऊपर दिए गए संदर्भ को निर्धारित किया और शहरी नदी प्रबंधन योजना आदि का विकास करने के लिए एनआईयूए और एनएमसीजी के सहयोग की शुरूआत की।
राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी ने वक्ताओं और उपस्थित लोगों से नमामि गंगे पहल का परिचय कराया। नमामि गंगे, नदी के लिए सबसे बड़े कायाकल्प कार्यक्रमों में से एक है जिसका उद्देश्य प्रदूषण का प्रभावी रूप से उन्मूलन और गंगा बेसिन के कायाकल्प के लिए एकीकृत नदी बेसिन का दृष्टिकोण अपनाना, व्यापक योजना और प्रबंधन के लिए अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देना है।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान, नदी आगंतुकों द्वारा अपने तटों पर फेंके जानेवाले ठोस कचरे की समस्याओं से मुक्त है और उद्योगों और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों से भी बहिस्त्राव बंद है। नगर निगम द्वारा सीवेज उत्पादन और प्रशोधन का कारक लगभग एक समान ही होता है और अभी तक चालू किए गए एसटीपी भी पूरी तरह से काम कर रहे हैं। लॉकडाउन के बाद नदी को इसी स्थिति में रखना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा जो कि आधारभूत संरचना के निर्माण के पूरक के लिए व्यवहारिक परिवर्तन के साथ ही संभव हो सकता है। कोविड-19 और लॉकडाउन से पता चलता है कि अगर हम सब मिलकर अच्छा काम करते हैं तो नदियों का कायाकल्प किया जा सकता है।
उन्होंने नदी के प्रति संवेदनशील होने के लिए शहरी नियोजन मापदंडों के महत्व पर बल दिया। कोविड-19 से सीख, केवल भूमि आधारित शहरी नियोजन को मानव और पारिस्थितिकी उन्मुखीकरण की ओर स्थानांतरित भी किया जा सकता है। लोगों को आपस में जोड़ने के लिए भी नदियों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। नागरिक सहभागिता कार्यक्रमों को एक व्यवहारिक परिवर्तन लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, अपने जल संसाधनों के लिए लोगों के प्रयासों को कारगर बनाना समय की जरूरत है। श्री मिश्रा ने गंगा नदी के बारे में जानकारी प्राप्त लोगों को शामिल करने वाले पहलों में से एक ‘गंगा क्वेस्ट’ (gangaquest.com पर एक ऑनलाइन क्विज़) की शुरुआत की, जिसको एक बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है, लॉकडाउन के मद्देनजर, अभी इसमें 6,00,000 से ज्यादा छात्र और अन्य लोग शामिल हो रहे हैं।
सतत विकास लक्ष्य, जिनका एक निश्चित दृष्टिकोण जल संचालन के लिए है, सरकारों को क्या लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए उसके लिए है, विशेष रूप से भारत के लिए नदी बेसिन प्रबंधन के महत्व को देखते हुए। इसमें बहु-हितधारकों और अंतर-मंत्रालयी दृष्टिकोणों के साथ-साथ एकीकृत सूचना प्रणालियों की ओर एक बदलाव करने की भी आवश्यकता है। एनएमसीजी, जीआईजेड के साथ मिलकर नदी बेसिन संगठन, नदी बेसिन योजना और प्रबंधन चक्र के विकास की दिशा में भी काम कर रहा है जिससे गंगा नदी बेसिन प्रबंधन के लिए नमामि गंगे के अंतर्गत अनुकूल ढांचा विकसित किया जा सके।
विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अधिग्रहीत और संचित डेटा, प्रणालियों का आधारभूत एकीकरण, कार्य योजनाओं का बेहतर प्रबंधन करने और कार्यान्वयन करने में सहायक होगा। भविष्य में जल गवर्नेंस के लिए, न केवल सरकारी अवसंरचना के भीतर, बल्कि समुदायों, समाजों, गैर सरकारी संगठनों, कार्रवाई समूहों, स्टार्टअप और व्यक्तियों के प्रयासों को भी एकीकृत करना होगा। यद्यपि, अमूर्त चीजों के आर्थिक मूल्यों की गणना करना बहुत कठिन है लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का आर्थिक मूल्यांकन भी उन क्षेत्रों में से एक है जहां पर प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है। आगे बताते हुए, श्री मिश्रा ने प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय गंगा परिषद की अध्यक्षता करते हुए ‘अर्थ गंगा’ की अवधारणा के बारे में बात की। सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, बांध, जैविक खेती को बढ़ावा, मत्स्य पालन, औषध वृक्षारोपण, पर्यटन,परिवहन और जैव विविधता वाले पार्कों पर किए जाने वाले सरकारी खर्च, ‘अर्थ गंगा’ के लिए कुछ प्रमाणिक मॉडल हैं।
कोविड-19 परिदृश्य से उनकी महत्वपूर्ण सीख यह थी कि अब यह, “उपयोज्यता का अस्तित्व नहीं, बल्कि सबसे अनुकूल का अस्तित्व” बन गया है, उन्होंने अनुकूलनीय गवर्नेंस के विचार पर बल दिया, जहां पर सहयोगी साझेदारी के साथ भविष्य की चुनौतियों को समाविष्ट करने के लिए नदी प्रबंधन को कैसे देखा जाए।
आइडियाथॉन के प्रमुख वक्ताओं में डॉ पीटर राजा, वरिष्ठ नीति सलाहकार, इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एनवारमेंटल स्टडीज, बैंकॉक, थाईलैंड शामिल थे। डॉ किंग एशियाई पर्यावरण अनुपालन और प्रवर्तन नेटवर्क सचिवालय के प्रमुख हैं, जलवायु परिवर्तन एशिया समन्वय समूह के सदस्य है और यूएसएड अनुकूलन एशिया-प्रशांत परियोजना पर अनुकूलन परियोजना तैयारी और वित्त के टीम लीडर हैं। डॉ किंग ने किसी भी नदी बेसिन प्रबंधन योजना के लिए प्रमुख चालकों को प्रस्तुत किया है, जिससे निकट भविष्य में कुछ विशेष प्रभाव पड़ेगा।
इन प्रमुख चालकों में शामिल है, भविष्य की योजना बनाने में नदी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, यह जल प्रणाली को कैसे प्रभावित करेगा और उस प्रभाव को कम करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है। उन्होंने नदी के ऊर्ध्वप्रवाह और अनुप्रवाह की ओर देखने की आवश्यकता पर बल दिया, जहां पर अधिकांशतः ऊर्ध्वप्रवाह में होने वाली गतिविधियों के प्रभाव को अनुप्रवाह द्वारा झेलना पड़ता है। एक शहर की सीमा में प्रवेश करने वाली नदी को कम से कम उसी गुणवत्ता के साथ आगे बढ़ने देना चाहिए जिस गुणवत्ता के साथ वह शहर में प्रवेश हुई थी। नदियों पर विकसित की जा रही पनबिजली परियोजनाओं का अध्ययन, उनके प्रभावों जैसे बाढ़, ई-प्रवाह में कमी, अवसादन आदि के साथ किया जाना चाहिए। भविष्य में नदी पर बनने वाली सभी नई बड़ी परियोजनाओं के लिए सीमा-पार पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन का प्रावधान किया जाना चाहिए। एक नदी प्रबंधन योजना के लिए मुख्य पहलू वित्तीय सहायता और जनभागीदारी हैं। नदी प्रबंधन योजना तैयार करने के लिए डाटा बेस बनाना और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करना बहुत आवश्यक है। डॉ किंग, कोविड-19 संकट को ‘प्रकृति से सीखें’ प्रक्रिया के रूप में देखने के लिए एक अभिनव विचार सामने लेकर आए हैं। उन्होंने प्रतिभागियों से उपरोक्त पहलुओं का अध्ययन प्रकृति के नजरिए से करने और इस संकट के दौरान प्रकृति ने हमें क्या-क्या सिखाया है, उससे ज्ञान प्राप्त करने का आग्रह किया।
श्री माइकल एफिल्ड्ट, प्रमुख, लॉस एंजिल्स रिवर वर्क्स अथॉरिटी, लॉस एंजिल्स, संयुक्त राज्य अमेरिका भी इस आइडियाथॉन में एक वक्ता थे। माइकल एफिल्ड्ट, मेयर एरिक गार्सेटीज् ऑफ सिटी सर्विसेज के कार्यालय में लॉस एंजिल्स रिवर वर्क्स टीम के निदेशक हैं। लॉस एंजिल्स रिवाइटलाइजेशन मास्टर प्लान और लॉस एंजिल्स- संबंधित प्रयासों के लिए लॉस एंजिल्स रिवर वर्क्स परियोजना समन्वय, नीति विकास और सहभागिता का काम करता है। उन्होंने लॉस एंजिल्स रिवर मास्टर प्लान पर काम करने के दौरान प्राप्त हुई सीख और अपने अनुभव को साझा किया। लॉस एंजिल्स शहर को लॉस एंजिल्स नदी के तट पर बसाया गया था, लेकिन शहर बड़ा हो गया और नदी के साथ लोगों के जोड़ने के लिए नदी के उपयोग में सुधार और इसके साथ पार्कों और सार्वजनिक स्थानों और प्राकृतिक विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता को महसूस किया गया। किसी भी नदी प्रबंधन योजना के लिए प्रकृति की जरूरतों को पहले संबोधित करना होगा और फिर नदी को उसके आसपास के आवासों और लोगों के साथ जोड़ना होगा।
डॉ. एलेक्स स्मजल, प्रबंध निदेशक, मेकॉन्ग फ्यूचर्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, बैंकॉक, थाईलैंड ने हितधारकों की भागीदारी को उचित महत्व नहीं देने के कारण विभिन्न नीतियों और वैज्ञानिक अनुसंधानों के कार्यान्वयन में विफलता के बारे में बात कही। किसी भी प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए पॉलिसी-साइंस इंटरफेस होना चाहिए। भागीदारी की रूपरेखा को तैयार किया जाना चाहिए जो कि परियोजना में हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा देगा। नदी कायाकल्प योजना तैयार करने से पहले जिन बातें को ध्यान में रखा जाना चाहिए, उनमें बहु-स्तरीय, बहु-क्षेत्रिय या क्रॉस-लेवल वर्किंग ग्रुप शामिल हैं, एक साझा विजन, जो राजनीतिक जोखिम को समझने, अनुभवों और तथ्यों से सीखने के लिए, हितधारकों को परियोजना का अधिकारी बनाएगा। डॉ. एलेक्स स्मजल पर्यावरण अर्थशास्त्र में एक विशेषज्ञ है, जिनका मुख्य ध्यान प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, विकास, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन प्रणालियों के संदर्भ में ट्रांस-डिसिप्लिनरी मॉडलिंग पर केंद्रित है।
डॉ. क्रिस डिकेंस, अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान में पारिस्थितिकी तंत्र के प्रधान अनुसंधानकर्ता हैं, वे एक जलीय पारिस्थितिकीविज्ञानी भी है और उन्हें तीन मुख्य क्षेत्रों में काम करने का 30 वर्षों का अनुभव भी प्राप्त है, वे तीन क्षेत्र हैं: जलीय पारिस्थितिक तंत्र स्वास्थ्य, जल संसाधन प्रबंधन जिसमें पर्यावरण आवश्यकताएं और संसाधन गुणवत्ता उद्देश्य भी शामिल और जल संसाधन प्रबंधन और शासन। डॉ डिकेंस ने नदी प्रबंधन योजना में जैव विविधता के महत्व पर प्रकाश डाला। शहर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नदियों और जल निकायों और उसके आसपास मौजूद पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करते हैं। स्वच्छ नदियां और जल निकाय इस बात का प्रतीक हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र काम कर रहा है। विभिन्न पोषक तत्वों, शैवाल का विकास और अन्य भारी धातुओं के लिए नदी के जल की गुणवत्ता की निगरानी करना महत्वपूर्ण है जिससे नदी का पारिस्थितिकी तंत्र अस्तव्यस्त या नष्ट न हो सके। नदी की विभिन्न माइक्रोबियल विविधता पर डेटा संग्रह करने की आवश्यकता है। नदी और जल निकाय का इसके पारिस्थितिकी तंत्र से महत्वपूर्ण संबंध है जिसको समझा जाना चाहिए।
आइडियाथॉन में नदी प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर बहुत संवादात्मक चर्चाएं हुई। उपस्थित लोगों ने समानांतर वोटों में भी हिस्सा लिया जो आइडियाथॉन के दौरान चलाए जा रहे थे। उपस्थित लोगों से कई सवाल भी पूछे गए।
महानिदेशक, एनएमसीजी ने सभी पैनलिस्टों को उनकी भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें अपने प्रकाशनों, अनुभवों आदि को साझा करने का प्रस्ताव दिया। विभिन्न विषयगत क्षेत्रों में सहयोग करने की दिशा में काम किया जाएगा और भविष्य में एनआईयूए और अन्य संस्थानों की मदद से विषयगत वेबिनारों/ गोलमेज बैठकों का आयोजन किया जाएगा। इससे गंगा ज्ञान केंद्र के विकास में और ज्यादा मदद मिलेगी।
आइडियाथॉन में हुए विचार-विमर्श के आधार पर नमामि गंगे और एनआईयूए द्वारा एक पॉलिसी पेपर लाने की योजना तैयार की गई है। सभी लोगों को सत्र की कार्यवाही जल्द ही एनएमसीजी वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध करा दी जाएगी।