पटना: बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड पटना से जुड़े मौलवी वेतनमान की मांग को लेकर लगातार राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं। जब्कि राज्य सरकार ने खुद ही पत्र जारी कर स्कूल के शिक्षकों की तरह ही मदरसा शिक्षकों को भी वेतनमान का लाभ देने का वादा किया था लेकिन कई सालों से ऐसा लगता है कि बिहार सरकार और उसके मुखिया नीतीश कुमार अपने किए गए वादे से भागते नजर आ रहे हैं। आॅल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवां लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र के माध्यम एवं आंदोलन के द्वारा यह मांग करता रहा है कि सरकार अगर अल्पंख्यकों की बेहतरी और विकास के बारे में सोचती है तो अल्पसंख्यकों के हित में फैसला ले और रोजगार के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के लिए कुछ ठोस कदम उठाए।
अपने पटना दौरा पर आॅल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवां के अध्यक्ष श्री नजरे आलम ने मिडिया को बताते हुए कहा कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के विकास और उन्के हक में बहुत काम करने का दावा करती है लेकिन हकीकत है कि आज देश में अगर सबसे अधिक कोई पिछड़ा हुआ है तो वह है बिहार का अल्पंख्यक समुदाय, जो शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सबसे पीछे है। सरकार अगर वाकई अल्पसंख्यकों की हितैषी है और कुछ करना चाहती है तो सबसे पहले कई वर्षों से लगातार वेतनमान की मांग को लेकर जो मदरसा शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं उन्की मांगों को 24 घंटे के अन्दर पूरा करे। अगर सरकार इस मामले पर गंभीर नहीं होती है तो आने वाले सभी चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय नीतीश सरकार को वोट नहीं करने के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी और अल्पसंख्यकों के हित में कड़ा फैसला लेगी।
वहीं दूसरी ओर श्री आलम ने बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड पटना में सरकार की ओर से नियुक्त किए गए नए चेयरमैन अब्दुल कयूम की लगातार बोर्ड के अन्दर मनमानी, मुख्यमंत्री से उपर फैसले लेने, मौलवी और मदरसा की समस्या का निदान करने की जगह उसे मजीद समस्या में उलझाने, मदरसा शिक्षक की पिटाई एवं बोर्ड के सभी नियम कानून की धज्जियां उड़ाने के खिलाफ बोलते हुए कहा कि सरकार ऐसा लगता है कि वह मदरसा बोर्ड को बंद करने के लिए ऐसे गैर जिम्मेदार और भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को बोर्ड की जिम्मेदारी सौंपा है।
अब्दुल कयूम एक बदनाम जमाना आदमी है और इसपर कई प्रकार के भ्रष्टाचार का भी आरोप है साथ ही बोर्ड के चेयरमैन के पद के लिए जो भी नियम कानून है उसपर भी अब्दुल कयूम खड़ा उतरते हैं तो फिर राज्य सरकार की आखिर किया मजबूरी थी जो ऐसे भ्रष्ट एवं नाकारा व्यक्ति को बोर्ड की जिम्मेदारी सौंप दिया। सरकार अब्दुल कयूम की अविलंब नियुक्ति को रद् करे और किसी अच्छे और षिक्षा के विद्वान को बोर्ड की जिम्मेदारी सौंपे, अन्यथा राज्य भर में सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत की जायगी।