रायपुर: मध्य प्रदेश से अलग होकर 1 नवंबर, 2000 को छत्तीसगढ़ भारत का नया राज्य बना था। नक्सल प्रभावित इस राज्य में 2005 से अब तक माओवादी हमलो में एक हजार सुरक्षाकर्मी अपनी जा गंवा चुके हैं। केंद्र और राज्य सरकारो की काफी कोशिशों के बावजूद नक्सलियों पर अंकुश नहीं लग पाया है।
हाल ही में अर्घसैनिक बलो और पुलिसकर्मियों पर हाल ही मे हुए नक्सली हमले में यह बात सामने आई है कि नक्सली इलाकों में भारी मात्रा में बलों की तैनाती और काफी पैसा खर्च करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार, शुरूआत तौर पर, वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने नक्सलियों से निपटने के लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में 80 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात करने के फैसला किया। इनकी मदद के लिए भारतीय वायु सेना के 10 हेलीकॉप्टर भी तैनात किए गए। 2012 के मध्य में केंद्र ने नक्सल विरोधी अभियान के लिए बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और कोबरा दल के 1 लाख और सुरक्षाबलों को तैनात किया। 3 जनवरी 2013 को केंद्र ने बस्तर, ओडिशा और झारखंड के कुछ इलाकों में 10 हजार और सुरक्षाकर्मियों के तैनात करने की घोषणा की। मई 2013 तक नक्सलियों से निपटने के लिए 84 हजार और सुरक्षाबलों को रेड कॉरिडोर में तैनात किया गया। अर्घसैनिक बलों के अलावा, नक्सलियो से निपटने के लिए एसएपीएफ कर्मियों की संख्या 2 लाख के करीब है।
रेड कोरिडोर में भारतीय सेना को भी तैनात किया हुआ है। हालांकि, सेना के सूत्रों का कहना है कि वह सिर्फ अर्घसैनिक बलों को ट्रेनिंग देने के लिए ही तैनात किया गया है। उसका नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में सीधा कोई रोल नहीं है। सेना प्रमुख और 7 सैन्य कमांडरों ने 2011 के मध्य में कहा था कि नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सलियों से लड़ने के लिए भारतीय सेना के 60 से 65 हजार सैनिकों को तैनात करना पड़ेगा। भारतीय वायु सेना भी नक्सल विरोधी अभियान मे एमआई-17 और हाल ही में शामिल किए गए एमआई-17 वी5 हेलीकॉप्टरों के जरिए अभियान चला रही है।
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