मथुरा: उत्तर प्रदेश के मथुरा में देश विदेश से आए लाखों पर्यटकों ने गुरुवार को यहां जमकर ब्रज में इन्द्रधनुषी होली खेली। ब्रज की प्रेमभरी होली को देखकर तीर्थयात्री एक ओर भावविभोर हो गए वहीं दूसरी ओर मथुरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर फालेन गांव की अनूठी होली देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए।
क्या कलयुग में भी तप संभव है इसका जवाब हजारों होली प्रेमियों को आज तड़के साढ़े चार बजे उस समय मिला जब कि इस गांव की विशाल धधकती होली से बाबूलाल पण्डा पलक झपकते ही तालियों की गड़गड़ाहट में निकल गया।
इस कार्यक्रम के संयोजक महंत बालकदास ने बताया कि इसके पहले उसने बुधवार की शाम से हवन करना शुरू किया जो 12 घंटे से अधिक देर तक चला। बाबूलाल पण्डे को जब जलते दीपक की लौ शीतल महसूस होने लगी तभी उसने होली में आग लगाने का संकेत दिया तथा पास के प्रहलाद कुड में स्नानकर तेजी से होली की ओर आया।
इसके पहले उसकी बहन ने करूए से अपने भाई के लिए होली से निकलने का मार्ग होली से बाहर का बनाया जिस पर चलकर ही पंडा होली में प्रवेश किया। बाबूलाल पण्डा इससे पूर्व लगाता पांच बार की होली से निकल चुका है।
80 वर्षीय बालकदास ने बड़े दुःखी मन से कहा कि आज आध्यात्मिकता पर संकट आया है तथा जिस प्रकार से त्यौहारों पर आधुनिकता हावी होती जा रही है उससे भविष्य में इतना अधिक तप करने वाले मिल सकेंगे इसमें संदेह है। उन्होंने बताया कि वसंत से ही पंण्डा प्रहलाद मंदिर में आ जाता है तथा यहीं पर वह होली तक रहकर तप करता है। अन्न का परित्याग कर फल और दूध पर आश्रित होता है।
उधर, मथुरा हो या वृन्दावन, बरसाना हो या नन्दगांव, गोकुल हो या बल्देव सभी जगह ब्रज की सतरंगी होली की धूमधाम से खेली गई। तीर्थयात्रियों का सबसे अधिक जमावड़ा मंदिरों में था।
द्वारकाधीश मंदिर में तो द्वापर के समय जैसी होली खेली गई। मंदिर के मुखिया पिचकारी से टेसू का गुनगुना रंग तीर्थयात्रियों पर डाल रहे थे और तीर्थयात्री प्रसादस्वरूप इसे ग्रहणकर आनंदित हो रहे थे। यहां पर गुनगुना रंग इसलिए प्रयोग होता है कि बालस्वरूप की सेवा होने के कारण लाला को होली खेलने में कहीं ठंढ न लग जाय इसीलिए मां यशोदा लाला के होली खेलने के लिए गुनगुना टेसू का रंग तैयार कराती हैं।