नई दिल्ली: मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली से भेंट कर बाह्य सहायतित परियोजनाओं में वित्तीय प्राविधान 90ः10 के अनुपात में करने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड का 65 फीसदी भाग वनाच्छादित है। वन संबंधी बाध्यताओं व अन्य कारणों से हाईड्रोपावर व पर्यटन के सम्भावित राजस्व से राज्य को वंचित होना पड़ रहा है। राज्य में लगभग 30 हजार मेगावाट जलविद्युत की सम्भावना मौजूद है। परंतु पर्यावरण व अन्य कारणों से नई जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक से राज्य को लगभग 1700 करोड़ रूपए के राजस्व की प्रति वर्ष हानि हो रही है। सामरिक दृष्टि से संवदेनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के कारण भी पर्यटन की सम्भावनाओं का पूरा उपयोग नही हो पा रहा है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने केंद्रीय मंत्री का ध्यान बीके चतुर्वेदी कमेटी की उस संस्तुति की ओर आकृष्ट किया जिसमें कहा गया था कि सकल बजटीय सहायता का 2 प्रतिशत 11 हिमालयी राज्यों के लिए प्राविधानित किया जाए।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए इसे विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था। बाह्य सहायतित परियोजनाओं में 90ः10 के अनुपात में फंडिंग की जा रही थी। साथ ही अनेक केंद्र प्रवर्तीत स्किमें भी राज्य को उपलब्ध थीं। केंद्र की नई व्यवस्था में ब्लाॅक ग्रान्ट रोकने से वर्तमान वित्तीय वर्ष में कुल 2800 करोड़ रूपए की राज्य को हानि हुई है। केंद्रीय करों मेें राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रत्शित किया गया है। इसको शामिल करने के बावजूद राज्य को वर्तमान वित्तीय वर्ष में 1500 करोड़ का विशुद्ध नुकसान हो रहा है। इकोनोमिक सर्वे में कहा गया है कि उत्तराखण्ड एकमात्र राज्य है जिसे नई व्यवस्था में राज्य को केंद्रीय सहायता(सीएएस) में नुकसान हुआ है। जहां अन्य राज्यों को सीएएस में प्रति व्यक्ति एक हजार रूपए का लाभ हो रहा है वहीं उत्तराखण्ड को 48 रूपए प्रति व्यक्ति नुकसान हुआ है। यहां तक कि अरूणाचल प्रदेश को 33 हजार रूपए प्रति व्यक्ति व मिजोरम को 17900 रूपए प्रति व्यक्ति लाभ हुआ है।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य की जिन कठिन परिस्थितियों के कारण विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था, वे परिस्थितियां अभी भी बनी हुई हैं। उन्होंने इस बात का आभार व्यक्त किया कि केंद्र द्वारा उत्तराखण्ड के लिए कोर केंद्र प्रवर्तीत योजनाओं में 90:10 व वैकल्पिक केंद्र प्रवर्तीत योजनाओं में 80:20 का अनुपात फिर से किए जाने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य के विकास में बाह्य सहायतित योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कार्यशैली को अपनाने में सहायता मिलने व अनुभव व कार्यकुशलता से राज्य के विकास में सहायता मिलती है। विगत में बाह्य सहायतित योजनाओं में उत्तराखण्ड के कार्य निष्पादन की केंद्र द्वारा प्रशंसा की गई है। वित्त मंत्रालय द्वारा बी.आर.आई.सी.एस.-एन.डी.बी., एआईआईबी व जीआईसीए के तहत परियोजनाओं के प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा भी लगभग 2 हजार करोड़ रूपए के अनेक प्रस्ताव भेजे गए हैं। इनमें पेयजल, शिक्षा, आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित हैं। राज्य सरकार के पास इन परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की कमी है। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से अनुरोध किया कि बाह्य सहायतित परियोजनाओं में फंडिंग पैटर्न 90ः10 के आधार पर किया जाए।