नई दिल्ली: बैंकों द्वारा घोटालों की संख्या में वृद्धि के आरबीआई के आंकड़ों को मीडिया के कुछ हिस्सों में हाल के वर्षों में बैंकों में बढ़ते घोटालों की एक तस्वीर के रूप में चित्रित किया गया है। तथ्य यह है कि यह आंकड़ा रिपोर्टिंग के वर्ष का है न कि घोटालों के होने या ऋण मंजूर होने, वचन-पत्र इत्यादि के वर्ष का, जो कि कई मामलों में पुरानी अवधि का है। घोटाले होने की वजह वित्तीय प्रणाली में ढिलाई थी जिसका प्रणालीगत तरीके से समाधान सरकार द्वारा गठित व्यापक बैंकिंग सुधारों द्वारा किया गया है जिससे कि अंतर्निहित कारणों पर ध्यान दिया जा सके और घोटालों का पता लगाने के लिए सक्रिय जांच कराई जा सके। इस संबंध में उठाए गए प्रमुख कदमों में शामिल हैं-
- सरकार ने निर्देश जारी किया है कि 50 करोड़ रुपये से अधिक के सभी खातों, अगर उन्हें एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया गया है, की जांच बैंकों द्वारा संभावित घोटाले के दृष्टिकोण से की जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को भी सुझाव दिया गया है कि अगर कोई खाता एनपीए में बदल जाता है तो वे केन्द्रीय आर्थिक खुफिया ब्यूरो से उधारकर्ता पर एक रिपोर्ट मांगे।
- जानबूझ कर घोटाला करने वालों के खिलाफ सक्रिय कदम उठाया गया है और पीएसबी द्वारा 2,881 जानबूझ कर घोटाला करने वालों के खिलाफ एफआईआर कराया गया है।
- लेखा परीक्षा मानकों को लागू करने तथा लेखा परीक्षाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने एक स्वतंत्र नियामक के रूप में राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण की स्थापना की है।
- आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने के द्वारा भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने की घटनाओं को रोकने के लिए भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 लागू किया गया है।
- पीएसबी को दिए गए सरकार के सुझावों के अनुरूप, वे 50 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण सुविधाओं का लाभ उठाने वाली कम्पनियों के प्रवर्तकों/निदेशकों तथा अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं के पासपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त कर रहे है और संवेदनशील स्थानों पर अधिकारियों/कर्मचारियों का चक्रीय स्थानांतरण सुनिश्चित कर रहे है।
राज्यसभा के तारांकित प्रश्न संख्या 198, जिसका उत्तर 01.01.2019 को दिया गया था, के प्रत्युत्तर में उपरोक्त स्थिति स्पष्ट की गई है, जिसकी प्रति संलग्न है।