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भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्‍मेलन के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री के वक्‍तव्‍य का मूल पाठ

देश-विदेश

नई दिल्ली: अफ्रीकी संघ के अध्‍यक्ष, महामहिम रॉबर्ट मुगाबे, अफ्रीकी संघ आयोग की अध्‍यक्ष मैडम डेलामिनी-जुमा, महानुभावों, विश्‍व पटल आज बहुत समृद्ध है, क्‍योंकि अफ्रीका के 54 संप्रभु ध्‍वजों, उनके शानदार रंगों ने दिल्‍ली को दुनिया की सबसे खास जगह बना दिया है। 

41 राष्‍ट्राध्‍यक्षों और शासनाध्‍यक्षों तथा अन्‍य प्रमुख नेताओं, सैंकड़ों वरिष्‍ठ अधिकारियों, अफ्रीका के प्रमुख उद्योगपतियों और पत्रकारों से मैं कहना चाहता हूं: आज आपकी उपस्थिति से हम तहेदिल से गौरवान्वित हैं।

      उस धरती से आये हमारे आगंतुकों, जहां से इतिहास प्रारंभ हुआ, मानवता विकसित हुई और नई आशाओं का उदय हुआ,

      उत्‍तर के रेगिस्‍तानों से, जहां मानव सभ्‍यता का गौरव, समय की बदलती रेत के जरिये रोशन होता रहा,

      दक्षिण से, जहां हमारे युग की चेतना गढ़ी गई- महात्‍मा गांधी से लेकर अल्‍बर्ट लुथुली तक, नेल्‍सन मंडेला तक,

      अटलांटिक के किनारों से, जो इतिहास के त्रासद दोराहे रहे हैं और अब बहुत सी कामयाबियों की सीमाओं पर हैं, पुनरुत्थित पूर्वी तट के हमारे पड़ोसियों से, अफ्रीका के हृदय से, जहां प्रकृति उदार और संस्‍कृति समृद्ध है और द्वीपीय देशों की दमकती मणियों से,

भारत की ओर से बेहद गर्मजोशी से भरपूर और मैत्रीपूर्ण स्‍वागत। आज, यह महज भारत और अफ्रीका की बैठक भर नहीं है। आज, एक-तिहाई मानवता के सपने एक छत के नीचे एक साथ जमा हुए हैं। आज, 1.25 बिलियन भारतीयों और 1.25 बिलियन अफ्रीकियों के दिलों की धड़कनों की ताल एक है।

हम विश्‍व की प्राचीनतम सभ्‍यताओं में से हैं। हम में से हरेक भाषाओं, धर्मों और संस्‍कृतियों का जीवंत मोजैक है।

हमारे इतिहास युगों से परस्‍पर मिलते आए हैं। एक दौर था जब भौगोलिक रूप से हम एक थे, आज हमें हिंद महासागर ने जोड़ रखा है। श‍ताब्दियों से सर्वशक्तिमान महासागर की लहरे रिश्‍तों, वाणिज्‍य और संस्‍कृति के संबंधों का पोषण करती आयी हैं।

पीढि़यों से भारतीय और अफ्रीकी मुकद्दर की तलाश में या हालात से बाध्‍य होकर एक-दूसरे की धरती पर आते रहे हैं। हर रूप में, हमने एक-दूसरे को समृद्ध किया है और हमारे संबंधों को मजबूत बनाया है।

हमने लम्‍बा समय उपनिवेशवाद के साए तले बिताया है और हमने अपनी आजादी और अपने सम्‍मान की खातिर संघर्ष किया है। हमने अवसरों और न्‍याय के लिए संघर्ष किया है, जिसे अफ्रीकी ज्ञान मानवता की प्रमुख शर्त के रूप में वर्णित करता है।

     हमने दुनिया में एक स्‍वर में बात की है और हमने समृद्धि के लिए आपस में सहभागिता की है।

हम शांति कायम रखने के लिए नीले हैल्‍मेट्स में एक-साथ कदम से कदम मिलाकर चले हैं। और हमने भूख और बीमारी के खिलाफ एकजुट होकर जंग लड़ी है।

और जब हम भविष्‍य पर निगाह डालते हैं, तो वहां कुछ बेशकीमती है, जो हमें एकजुट करता है, यह हमारी युवाशक्ति है।

भारत की दो-तिहाई आबादी और अफ्रीका की दो-तिहाई आबादी की आयु 35 बरस से कम है। अगर आने वाला कल युवाओं का है, तो यह सदी हमारी है, जिसको हमें आकार देना है और जिसका हमें निर्माण करना है।

हम अफ्रीका की प्राचीन उपलब्धियों से परिचित हैं। अब उसकी आधुनिक उन्‍नति दुनिया का ध्‍यान अपनी ओर आकृष्‍ट कर रही है।

      यह महाद्वीप अब ज्‍यादा शांत और स्थिर है। अफ्रीकी देश अपने विकास, शांति और सुरक्षा का उत्‍तरदायित्‍व लेने के लिए एक साथ आ रहे हैं।

      अफ्रीकी संघर्ष और बलिदान लोकतंत्र को कायम रखे हुए हैं, उग्रवाद से मुकाबला कर रहे हैं और महिलाओं का सशक्‍तीकरण कर रहे हैं। अफ्रीका की संसद के निर्वाचित सदस्‍यों में महिलाएं करीब 20 प्रतिशत हैं।

      जिन्‍होंने इसमें भूमिका निभाई है, राष्‍ट्रपति सरलीफ, आज आपके जन्‍मदिन के अवसर पर मैं आपको अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

      अफ्रीका की आर्थिक वृद्धि रफ्तार पकड़ चुकी है और उसका आधार अब ज्‍यादा वैविद्यपूर्ण है। अफ्रीकी पहलें पुरानी फाल्‍ट लाइन्‍स को क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के नये पुलों से बदल रही हैं।

      हमने आर्थिक सुधारों, ढांचागत विकास और संसाधनों के धारणीय उपयोग के कई सफल उदाहरण देखे हैं। वे डांवाडोल अर्थव्‍यवस्‍थाओं को गतिशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं में तब्‍दील कर रहे हैं।

      वर्ष 2013 में अफ्रीका में चार लाख नये कारोबार पंजीकृत हुये, और मोबाइल फोन की पहुंच कई स्‍थानों पर 95 प्रतिशत आबादी तक हो चुकी है।

     अफ्रीका अब नवाचार की वैश्विक मुख्‍यधारा को जोड़ रहा है। एम-पैसा की मोबाइल बैंकिंग, मेड अफ्रीका का स्‍वास्‍थ्‍य की देखरेख संबंधी नवाचार अथवा एग्रीमानागर और किलिमो सलामा का कृषि संबंधी नवाचार अफ्रीका के लोगों की जिंदगियों को बदलने में मोबाइल और डिजिटल टैक्‍नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं।

      हमने वे सशक्‍त उपाय देखे हैं जो स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी देखरेख, शिक्षा और कृषि में  जड़ से  सुधार कर रहे हैं। अफ्रीका में अब प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन 90 प्रतिशत से अधिक हो गया है और अफ्रीका अपने भव्‍य परिदृश्‍य से वन्‍य जीव संरक्षण और पर्यावरणीय पर्यटन के क्षेत्र में मानक स्‍थापित कर रहा है।

अफ्रीका के खेल, कला और संगीत पूरे विश्‍व को आनंदित करते हैं।

    हां, अफ्रीका में शेष विकासशील देशों जैसी विकास संबंधी चुनौतियां हैं और विश्‍व के अन्‍य देशों की तरह विशेषकर आतंकवाद और उग्रवाद से उसकी सुरक्षा और स्‍थायित्‍व, संबंधी अपनी चिंतायें हैं।

लेकिन मुझे अफ्रीकी नेतृत्‍व और अफ्रीकी जनता पर भरोसा है कि वे उन चुनौतियों से पार पा लेंगे।

 महामहिमों, पिछले छह दशकों से, हमारी  स्‍वाधीनता की ज्‍यादातर यात्राएं एक साथ रही हैं।

      अब भारत की बहुत सी विकास संबंधी प्राथमिकताएं और भविष्‍य के लिए अफ्रीका की शानदार दृष्टि संबद्ध हैं।

   आज अफ्रीका और भारत वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में आशा और अवसरों के दो दमकते स्‍थान हैं।
भारत, अफ्रीका का विकास भागीदार बनकर गौरवान्वित है। ये भागीदारी कार्यनीतिक चिंताओं और आर्थिक फायदों से कहीं बढ़कर है। ये भागीदारी उन भावनात्‍मक संबंधों, जिन्‍हें हम साझा करते हैं और एकजुटता, जो हम एक-दूसरे के लिए महसूस करते हैं, से निर्मित हुई हैं।

      दशक से भी कम समय में, हमारा व्‍यापार दोगुना से ज्‍यादा बढ़कर 70 अरब डॉलर को पार कर गया है। भारत अब अफ्रीका में व्‍यापारिक निवेश का प्रमुख स्रोत है। आज 34 अफ्रीकी देशों को भारतीय बाजार में सीमा शुल्‍क मुक्‍त पहुंच प्राप्‍त है।

अफ्रीकी ऊर्जा, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के यंत्र के संचालन में सहायता करती है, उसके संसाधन हमारे उद्योगों को सामर्थ्‍य प्रदान कर रहे हैं और अफ्रीकी समृद्धि भारतीय उत्‍पादों के लिए बढ़ता बाजार है।

 भारत ने वर्ष 2008 में प्रथम भारत-अफ्रीका शिखर सम्‍मेलन के बाद से 7.4 बिलियन डॉलर रियायती ऋण और 1.2 बिलियन डॉलर अनुदान की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की है। वह अफ्रीका भर में 100 क्षमता निर्माण संस्‍थानों का सृजन कर रहा है और बुनियादी ढांचे, सार्वजनिक परिवहन, स्‍वच्‍छ ऊर्जा, सिंचाई, कृषि और विनिर्माण क्षमता का निर्माण कर रहा है।

   पिछले तीन वर्षों में ही, करीब 25,000 युवा अफ्रीकियों को भारत में प्रशिक्षित और शिक्षित किया गया है। वे हमारे बीच 25,000 नये संपर्क हैं।

एक समय ऐसा था जब हम उतना अच्‍छा नहीं कर पाये, जिसकी आपको हमसे अपेक्षा थी। ऐसे कई अवसर आये जब हम उतने सजग नहीं थे, जितना हमें होना चाहिए था। ऐसी प्रतिबद्धताएं हैं जिन्‍हें हम उतनी जल्दी पूरा नहीं कर पाये, जितनी जल्‍दी हमें उन्‍हें पूरा करना चाहिए था।

     लेकिन आपने हमेशा भारत को गर्मजोशी से और बिना किसी पूर्वाग्रह के गले से लगाया है। आप हमारी कामयाबियों से प्रसन्‍न और हमारी उपलब्धियों पर गौरवान्वित हुए हैं। और दुनिया में आप हमारे साथ खड़े हुए हैं।

     यह हमारी सहभागिता और हमारी दोस्‍ती की ताकत है।

और, अब जब हम आगे बढ़ रहे हैं, हम अपने अनुभवों के विवेक और आपके मार्गदर्शन से लाभान्वित होकर आगे बढेंगे।

    हम समृद्ध, एकीकृत और एकजुट अफ्रीका के आपके विजन के प्रति अपना समर्थन और पुष्‍ट करेंगे, जो विश्‍व का प्रमुख सहभागी है।

   हम अफ्रीका को काहिरा से केपटाउन तक, मार्केश से मोम्‍बासा तक जोड़ने में मदद करेंगे, आपके बुनियादी ढांचे के विकास में, बिजली और सिंचाई में मदद करेंगे, अफ्रीका में आपके संसाधनों का मूल्‍यवर्द्धन करेंगे और औद्योगिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी पार्कों की स्‍थापना करेंगे।

जैसा कि महान नाइजीरियाई नोबल विजेता वोल सोयइन्‍का ने कहा है कि समग्र विकास में मानव इकाई प्रमुख परिसंपत्ति बनी रहनी चाहिए।

     हमारा दृष्टिकोण भी उसी विश्‍वास पर आधारित है: सबसे बेहतरीन भागीदारी वो होती है, जो मानव पूंजी (या श्रम शक्ति) और संस्‍थाएं विकसित करें। किसी देश को इतना समर्थ और सशक्‍त बनाये कि वह अपनी मर्जी से विकल्‍प चुन सके और अपनी प्रगति का उत्‍तरदायित्‍व ग्रहण कर सके। वह युवाओं के लिए अवसरों के द्वार भी खोलती है।

    इस तरह जीवन के हर स्‍तर में मानव पूंजी का विकास हमारी भागीदारी के केंद्र में रहेगा। हम अपने द्वारों को और ज्‍यादा खोलेंगे, हम दूर-शिक्षा का विस्‍तार करेंगे और अफ्रीका मे संस्‍थायें बनाना जारी रखेंगे।

   मिस्र के नोबेल पुरस्‍कार विजेता लेखक नागुइब महफोज़ ने कहा है, ‘’विज्ञान अपने विचारों के आलोक में लोगों को एकसाथ लाता है …और हमें बेहतर भविष्‍य की दिशा में प्रेरित करता है।‘’

     लोगों को एकजुट करने और प्रगति को आगे बढ़ाने की विज्ञान की योग्‍यता को व्‍यक्‍त करने के लिए इससे बेहतर अभिव्‍यक्ति नहीं हो सकती।

     इसलिए प्रौद्योगिकी हमारी सहभागिता की मजबूत बुनियाद होगी।

     यह अफ्रीका के कृषि क्षेत्र के विकास में सहायक होगी। अफ्रीका में दुनिया की 60 प्रतिशत कृषि योग्‍य भूमि भंडार हैं और वैश्विक उत्‍पादन का मात्र 10 प्रतिशत है। कृषि,अफ्रीका महाद्वीप को समृद्धि दिला सकती है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी सहायता दे सकती है।

     स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी देखरेख और किफायती दवाइयों में भारत की विशेषज्ञता कई बीमारियों के खिलाफ जंग में आशा की नई किरण दिखा सकती है, और किसी नवजात को जीने का बेहतर अवसर दिला सकती है। हम परंपरागत ज्ञान और दवाइयों के भारतीय और अफ्रीकी खजानों के विकास में भी सहयोग देंगे।

    हम अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों और प्रौद्योगिकी को उपलब्‍ध करायेंगे। हम विकास, सार्वजनिक सेवाओं, शासन, आपदा से निपटने, संसाधन प्रबंधन और जीवन की गुणवत्‍ता में बदलाव लाने में डिजिटल प्रौद्योगिकी की संभावनाओं का उपयोग करेंगे।

हम, दिवंगत राष्‍ट्रपति ए पी जे अब्‍दुल कलाम द्वारा परिकल्पित 48 अफ्रीका देशों को भारत से और एक-दूसरे से जोड़ने वाले पेन अफ्रीका ई-नेटवर्क को व्‍यापक और विस्‍तृत बनायेंगे। इससे आपकी पेन अफ्रीका वर्चुअल यूनिवर्सिटी की स्‍थापना में भी सहायता मिलेगी।

     हम अफ्रीका के भीतर और अफ्रीका तथा शेष विश्‍व में डिजिटल भेद में कमी लाने की दिशा में भी काम करेंगे।

     हम ब्‍ल्‍यू इकोनॉमी के सतत विकास के लिए सहयोग करेंगे, जो हमारी समृद्धि के महत्‍वपूर्ण वाहकों मे से एक होगी।

अब जबकि हम स्‍वच्‍छ विकास के मार्ग पर चल रहे हैं, ऐसे में  ब्‍ल्‍यू इकोनॉमी, मेरे लिए हमारे नीले आसमान और नीले महासागर को प्राप्‍त करने की ब्‍ल्‍यू क्रांति का व्‍यापक हिस्‍सा है।

जब सूरज डूबता है, भारत और अफ्रीका के लाखों घर अंधेरे में डूब जाते हैं। हम अपने लोगों के जीवन में रोशनी करना चाहते हैं और उनके भविष्‍य को ऊर्जा देना चाहते हैं।

लेकिन यह काम हम इस तरीके से करना चाहते हैं कि किलिमंजारो की बर्फ न पिघले, गंगा का पोषण करने वाले हिमनद  न खिसकें और हमारे टापू न डूबें।

    भारत और अफ्रीका के अलावा जलवायु परिवर्तन में दूसरे देशों का योगदान कम नहीं है। जलवायु परिवर्तन के लिए भारतीयों और अफ्रीकियों से ज्‍यादा और कोई भी सजग नहीं हो सकता।

     ऐसा इसलिए है क्‍योंकि हम प्रकृति के सबसे कीमती उपहारों और परंपराओं के उत्‍तराधिकारी हैं, जो उनका बहुत सम्‍मान करते हैं और हमारे जीवन धरती मां से बहुत जुड़े रहते हैं।

     हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने  साधारण संसाधनों से बहुत अधिक प्रयास कर रहे हैं। भारत के लिए वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट अतिरिक्‍त नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता और वर्ष 2030 तक उत्‍सर्जन की गहनता में 33-35 प्रतिशत कमी हमारे प्रयासों के महज दो पहलु भर हैं।

हमने स्‍वच्‍छ ऊर्जा, धारणीय पर्यावास, सार्वजनिक परिवहन और जलवायु के अनुरूप कृषि के संबंध में भारत-अफ्रीकी भागीदारी भी बढ़ाई है।

लेकिन यह भी सच है कि कुछ का अतिरेक अनेक के लिए बोझ नहीं बन सकता। इसलिए दिसंबर में जब पेरिस में विश्‍व एकत्र होगा, हम जलवायु परिवर्तन पर संयुक्‍त राष्‍ट्र संधि के सुस्‍थापित सिद्धांतों पर आधारित व्‍यापक और ठोस निष्‍कर्ष की प्रतीक्षा करेंगे। हम इसके लिए भरसक प्रयास करेंगे, लेकिन हम वास्‍तविक वैश्‍विक भागीदारी भी देखना चाहते हैं, जो स्‍वच्‍छ ऊर्जा को किफायती बनाए, विकासशील देशों को उस तक पहुंच बनाने के लिए वित्‍त और प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन के लिए साधन उपलब्‍ध कराए।

मैं आपको सौर-समृद्ध देशों के गठबंधन में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित करता हूं, जिसे मैंने 30 नवंबर को पेरिस में सीओपी-21 की बैठक के समय प्रारंभ करने का प्रस्‍ताव रखा है।  हमारा लक्ष्‍य सौर ऊर्जा को हमारे जीवन का अभिन्‍न अंग बनाना और उसे बेहद अलग-थलग गांवों और समुदायों तक पहुंचाना है।

भारत और अफ्रीका ऐसी वैश्‍विक व्‍यापार व्‍यवस्‍था चाहते हैं जो हमारे विकास लक्ष्‍यों में योगदान दे और हमारी व्‍यापार की संभावनाओं में सुधार लाए।

जब हम दिसंबर में नैरोबी में डब्‍ल्‍यूटीओ की मंत्रीस्‍तरीय बैठक में मिलेंगे, हम यह अवश्‍य सुनिश्‍चित करेंगे कि इन बुनियादी उद्देश्‍यों की प्राप्‍ति के बिना 2001 के दोहा विकास एजेंडे का समापन नहीं हो सकता।

 हम विकासशील देशों के लिए खाद्य सुरक्षा और कृषि में विशेष सुरक्षा व्‍यवस्‍था के लिए सार्वजनिक भंडारण के बारे में स्‍थाई समाधान भी प्राप्‍त करेंगे।
ये एक महत्‍वपूर्ण वर्ष है जब हम अपने भविष्‍य का एजेंडा तय कर रहे हैं और संयुक्‍त राष्‍ट्र की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। विश्‍व इस समय इतने बड़े पैमाने पर और रफ्तार से ऐसे राजनीतिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और सुरक्षा संबंधी बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जो हाल के इतिहास में विरला ही देखा गया है। इसके बावजूद हमारी वैश्‍विक संस्‍थाएं उस सदी की परिस्‍थितियों को परिलक्षित कर रही हैं, जिन्‍हें हम पीछे छोड़ आए हैं, और वे परिस्‍थितियां आज नहीं हैं।

इन संस्‍थाओं ने हमारी बहुत अच्‍छी तरह से सेवा की है, लेकिन जब तक उन्‍हें बदलते विश्‍व के मुताबिक ढाला नहीं जाएगा, उनके अप्रासंगिक बनने का खतरा है। हम यह नहीं कह सकते कि किसी अनिश्‍चित भविष्‍य में कौन उनकी जगह लेगा।

लेकिन संभवत: हमारा विश्‍व ज्‍यादा विखंडित हो जो हमारे दौर की चुनौतियों से निपटने में ज्‍यादा सक्षम न हो। इसीलिए भारत वैश्‍विक संस्‍थाओं में सुधारों की वकालत कर रहा है।

ये स्‍वतंत्र राष्‍ट्रों और जागृत महत्‍वाकांक्षाओं की दुनिया है। हमारी संस्‍थाएं हमारे विश्‍व का प्रतिनिधि नहीं हो सकती, अगर वे संयुक्‍त राष्‍ट्र के एक-चौथाई से ज्‍यादा सदस्‍यों वाले अथवा मानवता के 1/6 भाग वाले विश्‍व के विशालतम लोकतंत्र अफ्रीका को आवाज न दे ।  इसीलिए भारत और अफ्रीका को संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद सहित संयुक्‍त राष्‍ट्र में सुधारों की बात एक स्‍वर से करनी चाहिए।

आज दुनिया के बहुत से हिस्‍सों में हिंसा और अस्‍थिरता के तूफान के बीच सुनहरे भविष्‍य की रोशनी झिलमिला रही है। जब अफ्रीका की सड़कों और तटों पर और मॉल्‍स और स्‍कूलों में आतंकवाद जिंदगियां छीनता है, उसका दर्द हम भी महसूस करते हैं। और हम उस  डोर को देखते हैं जिसने हमें इस खतरे के खिलाफ एकजुट कर रखा है।

हम यह भी देखते हैं कि जब हमारे महासागर व्‍यापार के लिए सुरक्षित नहीं रह जाएंगे तो हम सभी को उनका खामियाजा उठाना होगा।

     जब देश अपने भीतर के संघर्षों से जूझ रहे होंगे, तो आसपास कोई भी अछूता नहीं रहेगा।

 और हम जानते हैं कि अवसर प्रदान करने वाले हमारे साइबर नेटवर्क बहुत बड़े जोखिम भी लाते हैं।

     इसलिए, जब सुरक्षा की बात हो, तो फासला हमें एक-दूसरे से अलग नहीं रख सकता।

इसीलिए हम सामुद्रिक सुरक्षा और हाइड्रोग्राफी, और आतंकवाद व उग्रवाद से निपटने की दिशा में सहयोग बढ़ाने के इच्‍छुक हैं तथा इसीलिए हमें अनिवार्य तौर पर अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकवाद पर समग्र संयुक्‍त राष्‍ट्र संधि की आवश्‍यकता है।
हम अफ्रीका संघ के शांति कायम करने के प्रयासों में भी सहायता देंगे। हम अफ्रीकी शांति रक्षकों को यहां और अफ्रीका में प्रशिक्षण देंगे। संयुक्‍त राष्‍ट्र शांति मिशनों से संबंधित फैसलों पर हमारी आवाज और बुलंद होनी चाहिए।

जिंदगियों को जोड़ने से लेकर हमारी समृद्धि में सहयोग तक, अपने वैश्‍विक हितों को आगे बढ़ाते हुए अपनी जनता को सुरक्षित रखने से लेकर, हमारी सहभागिता का एजेंडा हमारी मिली हुई महत्‍वाकांक्षाओं के व्‍यापक दायरे में फैला है।

हमारी भागीदारी को बल प्रदान करने के लिए, भारत अगले 5 वर्षों में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रियायती ऋण की पेशकश करेगा। ये हमारे जारी ऋण कार्यक्रम के अतिरिक्‍त होगा।
हम 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता की भी पेशकश करेंगे। इसमें 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारत-अफ्रीका विकास कोष और 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारत-अफ्रीका स्‍वास्‍थ्‍य कोष शामिल होगा।

इसमें अगले 5 वर्षों में भारत में 50,000 छात्रवृत्‍तियां भी शामिल होंगी और यह पेन अफ्रीका ई-नेटवर्क और पूरे अफ्रीका में कौशल, प्रशिक्षण एवं अध्‍ययन के विस्‍तार में सहायता करेगा।

यदि इस सदी को ऐसा बनना है कि जहां सभी लोगों को जीने का अवसर मिले, जहां सभी सम्मान और बराबरी के साथ रह सकें, जहां सभी के लिए शांति हो और जहां सभी प्रकृति के साथ संतुलन कायम करके जी सकें, तो भारत और अफ्रीका को एक साथ उठना होगा।

    हम एक साथ काम करेंगे,

    हमारे संघर्षों की समृतियां साझा हैं, हमारी आशाएं एक सी हैं,

    हमारी विरासत समृद्ध है और इस ग्रह के लिए हमारी प्रतिबद्धताएं साझा हैं,

    लोगों के प्रति हमारी शपथ साझा है और भविष्य में हमारा विश्वास साझा है

     जैसा कि अफ्रीकी कहावत में कहा गया है कि एक छोटा सा घर सैकड़ों मित्रों को स्थान दे सकता है,

जैसा कि भारत का पारंपरिक विश्वास है : सन्तः स्वयं परहिते निहिताभियोगाः  यानि भले लोग सदैव दूसरे का भला ही करते हैं,

हमारे लिए मंडेला का आह्वान प्रेरणा दायक है इस तरह जियो कि दूसरों के सम्मान और दूसरों की आजादी में वृद्धि हो।

आज हम साथ चलने की शपथ लेते हैं, हमारा प्रत्येक कदम लयबद्ध हो और समरसता प्रकट करने वाला हो।

यह कोई नई यात्रा नहीं है, न नई शुरूआत है लेकिन प्राचीन संबंधों का उज्ज्वल भविष्य का नया संदेश इसमें सन्नहित है।

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