उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने आज कहा कि भारत का वैश्विक दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुंबकम’ मानवता के सामने उत्पन्न हो रही वर्तमान समस्याओं को रास्ता दिखाने का काम कर सकता है। उन्होंने अवलोकन किया कि वैश्विक संदर्भ में, जहां कई देशों और समुदायों के सामाजिक ताने-बाने को घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद और अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों द्वारा मिटाया जा रहा है, ‘सार्वभौमिक एकता’ वाली सदियों पुरानी भारतीय दर्शन की अपनी एक विशेष प्रासंगिकता है।
श्री नायडू ने कहा कि भारतीय जीवन पद्धति में एक लोकतांत्रिक लोकाचार व्याप्त है, जहां पर हम प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे के समान ही महत्वपूर्ण समझते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे सभ्यतागत मूल्य मनुष्यों की जीवंत विविधता को पहचानते हैं और इस विविधता में कोई अंतर्निहित संघर्ष उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि हम उसी ‘देवत्व’ का हिस्सा हैं। उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि इस प्रकार के वैश्विक दृष्टिकोण पारस्परिक सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहयोगात्मक प्रयास से प्राप्त होते हैं, जिससे सतत और समावेशी प्रगति प्राप्त की जाती है।
श्री नायडू प्रो. जी. के. शशिधरन द्वारा श्री नारायण गुरुदेव की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद “नॉट मेनी, बट वन” (दो संस्करण) के वर्चुअल पुस्तक विमोचन के दौरान ये टिप्पणियां कर रहे थे। आधुनिक भारत में संत के विस्तृत प्रभाव को याद करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायण गुरु “एक बहुआयामी प्रतिभा, एक महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के एक प्रबल प्रस्तावक, एक प्रतिभाशाली कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे” ।
उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु की एक समाज सुधारक के रूप में उल्लेखनीय भूमिका पर प्रकाश डाला। वे मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे। कट्टरपंथियों के विरोध के बीच एक शिव मूर्ति का अभिषेक करते हुए, उन्होंने वैकोम आंदोलन को गति प्रदान की और राष्ट्र का ध्यान अपनी ओर खींचा और महात्मा गांधी से प्रशंसा प्राप्त की। श्री नारायण गुरु ने शिवागिरी तीर्थयात्रा के एक भाग के रूप में स्वच्छता, शिक्षा को बढ़ावा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण के आदर्श अभ्यासों पर बल दिया।
उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी किया कि संत गुरु का मानना था कि दुनिया एक सार्वभौमिक आत्मा, एक सामान्य दिव्य ऊर्जा है जो कि इस ब्रह्मांड में प्रत्येक इंसान और प्राणी में निवास करती है। उन्होंने भारतीयता के इस सार को अपनी कविताओं में समाहित किया और दुनिया की स्पष्ट विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया। श्री नायडू ने कहा कि नारायण गुरुदेव के अनुसार “सभी के लिए केवल एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर है”(ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु)। इस दर्शन ने उनके सुधार आंदोलनों का आधार तैयार किया, जिसमें असमानताओं और सामाजिक विकृतियों को दूर करने की कोशिश की गई।
उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु को आधुनिक भारत का सबसे प्रभावशाली संतों में से एक बताया, जिन्होंने भारत के सद्भाव, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विविधता के प्रति सम्मान के अनूठे दृष्टिकोण का प्रचार किया। श्री नायडू ने उनके विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की क्षमता को सहजता से जानने वाली प्रतिभा के बारे में भी बताया। उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विचार करने वाले एक रहस्यवादी के रूप में तत्वमीमांसा के लिए उनके योगदान को बताया और उनके रहस्यमयी अंतर्दृष्टि के कुछ उदाहरणों को उद्धृत किया।
दो संस्करणों का निर्माण करने में लेखक और प्रकाशक द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि इन जैसी पुस्तकें भारत के सभ्यतागत मूल्यों की जड़ों की गहरी समझ प्राप्त करने में योगदान दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि इसमें भारत के साथ-साथ दुनिया के पाठकों को असाधारण सार्वभौमिकता और भारतीय दृष्टिकोण के व्यापकता की झलक मिलेगी।
श्री नायडू ने यह सुझाव दिया कि हमें सांस्कृतिक इतिहास के अपने समृद्ध खजाने में प्रवेश करके ऐसे असंख्य रत्नों की खोज और पुनर्खोज करनी होगी। उन्होंने देश के युवाओं से आग्रह किया कि वे इस प्रकार के प्रकाशनों को पढ़ें और इनमें अंतर्निहित संदेशों को समझें। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि इस प्रक्रिया में युवा पीढ़ी इसके माध्यम से भारत की आत्मा की सराहना करेगी और एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करेगी जो ‘अपनी विरासत के प्रति अधिक जागरूक’ हैं। उपराष्ट्रपति ने याद दिलाया कि कोई भी राष्ट्र अपनी संस्कृति और विरासत को भूलाकर आगे नहीं बढ़ सकता है।
इस वर्चुअल आयोजन के अवसर पर पुस्तक के लेखक, प्रो. जी. के. शशिधरन, टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी, श्री आर. के. कृष्ण कुमार, टाटा ट्रस्ट के सीईओ, श्री एन श्रीनाथ, पेंगुइन रैंडम हाउस के अनिल धारकर सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।