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कड़ी मेहनत के बदौलत तेज गेंदबाजी में मजबूत हुआ भारत: सौरव गांगुली

खेल समाचार

पूर्व कप्तान और भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के वर्तमान अध्यक्ष सौरव गांगुली ने कहा कि वर्तमान में भारत के तेज गेंदबाजी विभाग के मजबूत बनने के मुख्य कारण सांस्कृतिक बदलाव और फिटनेस के बढ़ते मानक हैं। युवा जसप्रीत बुमराह और अनुभवी इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, उमेश यादव और भुवनेश्वर कुमार की उपस्थिति में भारतीय तेज गेंदबाजी विश्व में सबसे मजबूत आक्रमण के रूप में उभरा है। गांगुली ने कहा, ”मैं इसमें इन सभी का योगदान मानता हूं, कोच, फिटनेस ट्रेनर और मुझे लगता है कि सांस्कृतिक बदलाव भी। ” उन्होंने कहा, ”भारत में अब यह धारणा बन गयी है कि हम अच्छे तेज गेंदबाज तैयार कर सकते हैं। केवल तेज गेंदबाज ही नहीं बल्कि बल्लेबाज भी फिटनेस के प्रति जागरूक हुए हैं। जवागल श्रीनाथ, जहीर खान और आशीष नेहरा जैसे अच्छे तेज गेंदबाजों की अगुवाई करने वाले गांगुली ने कहा कि वर्तमान गेंदबाजों में यह विश्वास आ गया है कि वे रफ्तार के सौदागर बन सकते हैं।उन्होंने कहा, ”और इससे सभी की समझ में यह बात आ गयी कि अगर वे फिट है, अगर वे दमदार हैं तो फिर हम भी दूसरों की तरह तेज गेंदबाजी कर सकते हैं। ” गांगुली ने कहा, ”मेरी पीढ़ी के या उससे पहले के वेस्टइंडीज के खिलाड़ी नैसर्गिक तौर पर मजबूत और दमदार थे। हम भारतीय कभी नैसर्गिक रूप से इतने मजबूत और दमदार नहीं रहे, इसलिए हमने मजबूत बनने के लिये कड़ी मेहनत की।

इसलिए मुझे लगता है कि यह संस्कृति में बदलाव है जो कि बेहद महत्वपूर्ण है। ” गांगुली से पूछा गया कि जब उनकी और तेंदुलकर की जोड़ी एकदिवसीय क्रिकेट की मशहूर सलामी जोड़ी हुआ करती थी तो क्या तब सचिन उन्हें पहली गेंद खेलने के लिये स्ट्राइक लेने के लिये मजबूर करते थे, उन्होंने कहा, ”वह हमेशा ऐसा करते थे और इसके लिये उनके पास जवाब भी होता था। ” पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि पहली गेंद से बचने के लिये तेंदुलकर के पास हमेशा दो जवाब होते थे। गांगुली ने कहा, ”और अगर उनकी फार्म अच्छी नहीं है तो वह कहते, ”मुझे नान स्ट्राइकर छोर पर ही खेलना चाहिए’ क्योंकि इससे उन पर से दबाव कम हो जाएगा। ” उन्होंने कहा, ”उनके पास अच्छी फार्म और बुरी फार्म के जवाब होते थे जब तक कि किसी दिन आप उनसे आगे निकलकर नानस्ट्राइकर छोर पर खड़े न हो जाओ। टीवी पर सब कुछ आ रहा होता है और ऐसे में उन्हें पहली गेंद का सामना करने के लिये मजबूर होना पड़ता था।

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