नई दिल्ली: मंगलयान का 6 महीने का मिशन 24 मार्च को पूरा होने जा रहा है। हालांकि यह इसके बाद भी काम करता रहेगा, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसका कार्यकाल खत्म हो रहा है।
मंगलयान को पिछले साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंचने में कामयाबी मिली थी। सूत्रों का कहना है कि इसरो 24 मार्च के बाद भी मंगल ग्रह की तस्वीरें भेजता रहेगा। यह अब तक मंगल की कई तस्वीरें भेज चुका है।
यह भारत का पहला मंगल मिशन है। 2013 में शुरू हुई थी यात्रा मंगलयान को 5 नवंबर 2013 को इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से रवाना किया गया था। इसे पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया था।
अमेरिका और रूस ने अपने मंगलयान छोड़ने के लिए इससे बड़े और खासे महंगे रॉकेटों का प्रयोग किया था। इस पर 450 करोड़ रुपये की लागत आई थी। इस यान का वजन 1350 किलो है।
क्या था मकसद
भारत इस मिशन से स्पेस साइंस के क्षेत्र में अपना रुतबा कायम करना चाहता था। इस मिशन की कामयाबी से भारत को स्पेस साइंस के मामले में एक नया मुकाम हासिल हुआ। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता था। वह यह भी पता लगाना चाहता था कि इस लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं।
मीथेन गैस की मौजूदगी जैविक गतिविधियों का संकेत देती है। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया। इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल थे। मंगल पर मीथेन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए मंगलयान पर सेंसर भी लगे हैं। इसके साथ ही भारत मंगल पर मौजूद खनिजों के बारे में भी पता लगाना चाहता था। इसरो के साइंटिस्ट्स मंगलयान द्वारा भेजे गए चित्रों और डेटा की स्टडी कर रहे हैं।
मंगल मिशन की खास बातें
कब मिली मंजूरी : 3 अगस्त 2012 को
कितना खर्च : 450 करोड़ रुपये
और देशों ने खर्च किया : इसका कम से कम 4 गुना ज्यादा। अमेरिका ने किया 10 गुना ज्यादा खर्च
कब रवाना हुआ : 5 नवंबर 2013 को
मंगलयान का वजन : 1350 किलो
कैसे छोड़ा : पीएसएलवी, सी-25 की मदद से
पृथ्वी से मंगल की औसत दूरी : करीब 22 करोड़ 50 लाख किलोमीटर