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ऑनलाइन सूचना पारदर्शिता लाती है; “डिजिटल इण्डिया” कार्यक्रम आरटीआई का पूरक है : प्रधानमंत्री

देश-विदेश

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज सूचना के अधिकार को एक ऐसा हथियार बताया जिसका प्रयोग आम आदमी न केवल जानने के अधिकार के तौर पर करता है बल्कि सत्ता में बैठे लोगों से प्रश्न पूछने के तौर पर भी करता है।

केंद्रीय सूचना आयोग के दसवें वार्षिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार का डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम आरटीआई का पूरक है क्योंकि ऑनलाइन सूचना पारदर्शिता लाती है जिससे विश्वास की बहाली होती है।
प्रधानमंत्री ने सरकार में गोपनीय रखने की प्रवृत्ति को ख़त्म करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रशासकीय प्रक्रिया जनता पर विश्वास के आधार पर चले न कि उन पर संशय करके। प्रधानमंत्री ने कहा कि आरटीआई शासन प्रणाली में बेहतरी का हथियार बन गया है। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार प्रधानमंत्री कार्यालय में अग्रसक्रिय शासन प्रणाली एवं समयोचित कार्यान्वयन प्लेटफॉर्म (प्रगति) योजनाओं का क्रियान्वयन की निगरानी का उद्योगी मंच बन चुका है।
अपने संबोधन में केंद्रीय वित्त, कोर्पोरेट मामले और सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अरुण जेटली ने आरटीआई का एक दशक पूरा होने पर केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों को बधाई दी। आरटीआई को एक ‘अनुकरणीय/ आदर्श क़ानून’ बताते हुए उन्होंने कहा कि इसने समाज का रूपांतरण किया है और भारत ने ‘शिष्ट शासन प्रणाली’ का प्रथम चरण पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा कि तकनीक के उपयोग ने इसको और प्रभावी, सस्ता और समय बचाने वाला बना दिया है। आरटीआई क़ानून से जुड़ी शंकाओं और नियंत्रणों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कई बार बहुत खुलापन भी शासन प्रणाली के लिए बुरा माना जाता है। इन स्थितियों में इस क़ानून के प्रशासकों को अपने विवेक का प्रयोग कर सूचना के अधिकार और साथ ही इसके दुरुपयोग में संतुलन बनाना चाहिए। श्री जेटली ने कहा कि इस क़ानून के क्रियान्वयन में सार्वजनिक और निजता वाले मामलों के बीच एक रेखा खींचे जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि क़ानून समाज के लिए बेहद उपादेय है और परिपक्व एवं विकसित होता रहेगा।
डॉक्टर जीतेंद्र सिंह, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग राज्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि विशेषाधिकार, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, स्वतंत्रता और लोकतंत्र सूचना पाने की लोगों की तीव्र इच्छा की राह में सीखने वाले अनुभव हैं। उन्होंने कहा कि सरकार में पारदर्शिता, शासन प्रणाली में लचीलापन एवं नागरिक केंद्रित शासन प्रणाली मौजूदा सरकार के मुख्य स्तंभ हैं एवं प्रधानमंत्री के “अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार” वाले आदेशों के अनुरूप हैं।
अपने आरंभिक संबोधन में मुख्य सूचना आयुक्त श्री विजय शर्मा ने कहा कि आयोग आरटीआई को एक समयबद्ध, प्रासंगिक एवं उपयोगी क़ानून के तौर पर देखता है। उन्होंने कहा कि एक दशक बाद पूर्व में हुए अनुभवों का हिसाब-किताब लगाने का एवं भविष्य की रूपरेखा तय करने का समय आ गया है। श्री शर्मा ने कहा कि आरटीआई क़ानून के मूल्यांकन एवं पूर्व अनुभवों का विश्लेषण करने की तथा भविष्य के उपयोगकर्ताओं के लिए क़ानून को पारदर्शी एवं सुगम्य बनाने की आवश्यकता है। केंद्रीय सूचना आयुक्त ने आरटीआई क़ानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए स्वायत्तता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता की ज़रूरतों को भी चिह्नांकित किया।
मुख्य सूचना आयुक्त ने “नागरिक कल्याण हेतु आरटीआई का इस्तेमाल– डिजिटल इण्डिया का विस्तृत क्षितिज; क़ानून के स्वभाव एवं प्रयोजन की तर्कसंगत व्याख्या करना; कमियां; उपयोग एवं दुरुपयोग के निहितार्थ; व्यावहारिक शासन पद्धति आरटीआई की ज़रूरत; क्या हम शासन प्रणाली में पारदर्शिता हेतु पर्याप्त कदम उठा रहे हैं, आरटीआई के वक़्त में निजता एवं आरटीआई का प्रभावशाली प्रयोग पर राज्यों के अनुभव” जैसे प्रसंगों को भी चिह्नांकित किया जिन पर दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा होनी है।
सम्मेलन में पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला एवं सत्येंद्र मिश्रा, श्री यशोवर्द्धन आज़ाद एवं प्रोफेसर एम एस आचार्युलु, केंद्रीय सूचना आयुक्त, एनसीपीआरआई की श्रीमती अंजलि भारद्वाज, ट्राई के अध्यक्ष श्री रामसेवक शर्मा, राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिविजन के सचिव श्री जे एस दीपक समेत कई गणमान्य हस्तियों ने तकनीकी सत्रों में अपने-अपने विचार रखे।
आरटीआई के दस वर्ष पूरे होने पर भारत के प्रथम सीआईसी श्री वजाहत हबीबुल्ला ने कहा कि आरटीआई को महज़ जानने के अधिकार तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसके इस्तेमाल से शासन प्रणाली में जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

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