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लेखक के शब्दों से समाज में बौद्धिक विमर्श की शुरुआत होनी चाहिए, न कि अनावश्यक विवाद: उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि हर किसी को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए ताकि दूसरों की आस्था या भावनाओं आहत न हो। श्री नायडु ने हर किसी से अपने सार्वजनिक भाषणों में भाषा की शालीनता का पालन करने की अपील की और कहा कि लेखकों एवं विचारकों से समाज में बौद्धिक विमर्श पैदा करने की अपेक्षा की जाती है, न कि विवाद।

उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में साहित्य अकादमी सभागार में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा आयोजित 33वें मूर्तिदेवी पुरस्कार समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। प्रख्यात हिंदी लेखक, श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को उनकी उत्कृष्ट कृति, ’अस्ति और भवती’ के लिए इस वर्ष का मूर्तिदेवी पुरस्कार प्रदान किया गया।

श्री नायडू ने इस अवसर पर लेखकों और विचारकों को राष्ट्र की बौद्धिक पूंजी बताया जो इसे अपने सृजनात्मक विचारों और साहित्य से समृद्ध करते हैं। ’शब्द’ और ’भाषा’ को मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार बताते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य समाज की विचार-परंपरा का जीवंत वाहक है। उन्होंने कहा, ’कोई समाज जितना सुसंस्कृत होगा, उसकी भाषा उतनी ही परिष्कृत होगी। समाज जितना जागृत होगा, उसका साहित्य उतना ही व्यापक होगा।’’

देश की समृद्ध भाषाई विविधता की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे भारत की राष्ट्रीय शक्ति बताया जिसने हमारी सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच संवाद बढ़ाने की आवश्यकता बताई और यह सुझाव दिया कि सभी को अन्य भारतीय भाषाओं में कुछ शब्द, मुहावरे और अभिवादन करना सीखना चाहिए। उन्होंने इसे देश की भाषाई और भावनात्मक एकता के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य बताया। प्रत्येक भारतीय भाषा को राष्ट्रभाषा बताते हुए उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय मीडिया से सभी भारतीय भाषाओं और उनके साहित्य को पर्याप्त स्थान देने का आग्रह किया।

भारतीय भाषाओं में साहित्य के अनुवाद और प्रचार के लिए साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं के प्रयासों की सराहना करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि इस दिशा में और अधिक प्रयत्न की आवश्यकता है और इसके लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं से अनूदित साहित्यिक कृतियों को हमारे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विश्वविद्यालय के शोधकार्य से बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने शोध कार्यों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की आवश्यकता बताई। पिछले कुछ वर्षों में कई शहरों में आयोजित साहित्यिक उत्सवों या लिट फेस्ट का उल्लेख करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि इन लिट फेस्ट ने युवा लेखकों को अपनी रचनाओं को समाज और मीडिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए एक मंच प्रदान किया है।

इस अवसर पर भारतीय ज्ञानपीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति विजेन्द्र जैन और प्रबंध न्यासी श्री साहू अखिलेश जैन व अन्य उपस्थित थे।

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