25 मई को आयरलैंड में गर्भपात क़ानून को लेकर कराए गए ऐतिहासिक जनमत संग्रह में लोगों ने गर्भपात क़ानूनों में बदलाव के समर्थन में वोट किया है और अब यहां की महिलाएं भी गर्भपात करा सकेंगी.
जनमत संग्रह के शुरुआती नतीजों के मुताबिक 66 प्रतिशत से अधिक लोगों ने गर्भपात पर प्रतिबंध हटाने के लिए संविधान में संशोधन के पक्ष में वोट किया है. आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वरदकर ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि इसी साल नया गर्भपात क़ानून पारित हो जाएगा.
वरदकर ने कहा कि यह नतीजे बदलाव के लिए है. उन्होंने कहा, “यह लोकतंत्र की परीक्षा है जिसमें लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है. कई चीज़ें हुईं. साहसी महिलाओं और पुरुषों ने अपनी निजी कहानियां बताईं कि कैसे 8वें संशोधन ने उनके जीवन पर गंभीर नकारात्मक असर डाला. न केवल पिछले कुछ हफ़्तों, महीनों बल्कि कुछ सालों में उन कहानियों को सुनकर आयरलैंड के लोगों ने गर्भपात को लेकर अपना एक नज़रिया बनाया है.”
फिलहाल, आयरलैंड में केवल उस परिस्थिति में ही महिलाओं को गर्भपात (बच्चा गिराने) की इजाज़त है जब उनकी ज़िंदगी ख़तरे में हो. बलात्कार, सगे-संबंधियों के साथ यौन संबंध या भ्रूण संबंधी घातक असामान्य स्थिति में गर्भपात की इजाज़त नहीं है.
दरअसल, आयरलैंड में यह जनमत-संग्रह गर्भपात पर दशकों तक चली बहस का नतीजा है. गर्भपात न होने की वजह से मौत को कई मामले भी हुए और उन कई मामलों में से एक अहम किरदार उस भारतीय महिला का भी है जिसकी मौत आज से छह साल पहले आयरलैंड में गर्भपात की इजाज़त नहीं दिए जाने के कारण हो गई थी.
गर्भपात जनमत संग्रह का इंडियन कनेक्शन
आयरलैंड में भारतीय मूल की सविता हलप्पनवार का छह साल पहले मिसकैरेज हो गया था. हालांकि कड़े कैथोलिक क़ानून के चलते गर्भपात कराने की कई बार मांग कर चुकी सविता को इसकी इजाज़त नहीं दी गई. इस वजह से उनकी मौत हो गई थी. तब उनके पति ने बीबीसी को बताया था कि डॉक्टरों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया था क्योंकि सविता का भ्रूण जीवित था.
सविता के पति प्रवीण ने तब बीबीसी से कहा था, “पहले तो वो मां बनने को लेकर बहुत खुश थी लेकिन बाद में उसे बहुत तेज़ दर्द होने लगा और ऐसे में वह गर्भपात कराने को कह रही थी लेकिन गॉलवे के अस्पताल वालों ने यह कह मना कर दिया कि कैथोलिक देश में उसे गर्भपात नहीं कराना चाहिए.”
प्रवीण के मुताबिक सविता ने चिकित्सकों से कहा भी कि वह हिंदू है, कैथोलिक नहीं तो उन पर यह क़ानून क्यों थोपा जा रहा है. ऐसे में चिकित्सक ने माफ़ी मांगते हुए कहा- दुर्भाग्य से यह एक कैथोलिक देश है और यहां के क़ानून के मुताबिक हम जीवित भ्रूण का गर्भपात नहीं करेंगे.
प्रवीण ने कहा, “मेरे पास बुधवार (24 अक्तूबर 2012) की देर रात साढ़े बारह बजे फ़ोन आया कि सविता के हृदय की गति तेज़ी से बढ़ रही है और हम उन्हें आईसीयू में ले जा रहे हैं. इसके बाद हालात ख़राब होते गए. शुक्रवार (26 अक्तूबर 2012) को मुझे बताया गया कि सविता की तबीयत बेहद ख़राब है. प्रवीण के मुताबिक सविता के कुछ अंगों ने तब तक काम करना बंद कर दिया था. 28 अक्तूबर यानी रविवार को सविता की मौत हो गई.
सविता की मौत पर तब आयरलैंड में भारतीय मूल के डॉक्टर सीवीआर प्रसाद ने बीबीसी को बताया था, “यह एक गंभीर समस्या है, यहाँ माँ की जान से भ्रूण की जान को अधिक अहमियत दी जा रही है, जब सबसे पहले यही लिखा हो गर्भपात करना अपराध है तो फिर कौन डॉक्टर मुसीबत मोल लेगा.” सविता की मौत के बाद आयरलैंड के गर्भपात क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे.
जिसके बाद वहां की सरकार ने गर्भपात के मुद्दे पर क़ानूनी स्पष्टता लाने की घोषणा की और कहा कि वो एक ऐसा क़ानून बनाएगी जिसमें मां को जान का जोखिम होने पर गर्भपात का प्रावधान होगा. तब वहां के डॉक्टरों के लिए ऐसे कोई दिशा-निर्देश नहीं थे कि उन्हें किन स्थितियों में गर्भपात करना है और किनमें नहीं. इसके बाद ही मां की ज़िंदगी ख़तरे में होने पर गर्भपात की मंजूरी के लिए 2013 में इस क़ानून में बदलाव किया गया था.
सविता हलप्पनवार की मौत उनके शादी के चार साल 28 अक्तूबर 2012 को हुई थी. कर्नाटक के हुबली ज़िले के मूल निवासी उनके वैज्ञानिक पति प्रवीण हलप्पनवार आयरलैंड में छह सालों से रह रहे थे. सविता खुद दातों की डॉक्टर थीं.
उनकी मौत का मामला वहां की अदालत में गया जहां ज्यूरी ने उसे ‘चिकित्सकीय हादसा’ करार दिया. लेकिन उनके परिवार का कहना है कि अगर गर्भपात की अनुमति दी जाती तो सविता की जान बचाई जा सकती थी.
बीबीसी संवाददाता इमरान कुरैशी ने सविता हलप्पनवार के पिता अंदानेप्पा यालागिसे बात की और उनसे तब सविता की तबियत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “21 अक्तूबर 2012 को अस्पताल में भर्ती करवाया था. तब उसकी हालत ठीक थी. उसने कहा था कि पापा आप आराम से जाइये. हमें भी लगा कि उसकी तबीयत ठीक है तो हम 24 तारीख को डबलिन से बैंगलोर आ गए थे. लेकिन इसके दो-तीन दिन बाद उसकी तबीयत बिगड़ गई और 28 अक्तूबर को उसकी मौत हो गई.”
उन्होंने कहा, ‘मेरी बेटी की मौत हुए छह साल हो गए हैं. हमारी मांग है कि आयरलैंड के क़ानून से गर्भपात पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाए. जो हालत हमारी हुई है वो दूसरों की न हो.’ सविता के पिता ने बताया कि उनके पति दूसरी शादी कर चुके हैं और फिलहाल अमरीका में हैं.
क़ानून में बदलाव क्यों नहीं हो रहा था?
आयरलैंड के क़ानून में परिवर्तन के लिए महिला संगठन लंबे समय से आवाज़ उठाते रहे हैं मगर बहुसंख्यक कैथोलिक समुदाय में ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो हर हाल में गर्भपात के विरोधी हैं.
गॉलवे यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफ़ेसर रह चुकीं डॉक्टर नाटा डूवेरी ने तब बीबीसी को बताया, “यह विशुद्ध रूप से वोट की राजनीति है. कोई भी राजनीतिक दल कैथोलिक समुदाय को नाराज़ नहीं करना चाहता. सभी इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाते हैं. ये दोहरे मानदंड हैं. वे अच्छी तरह जानते हैं कि लड़कियां गर्भपात के लिए ब्रिटेन जाएंगी मगर वे इस बारे में कुछ नहीं करते.” BBC