केन्द्रीय पर्यटन, संस्कृति और उत्तर पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री (डोनर) श्री जी. किशन रेड्डी ने आज बोरीवली के नजदीक संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित कन्हेरी गुफाओं में पर्यटकों के लिए विभिन्न सुविधाओं का उद्घाटन किया।
संस्कृति मंत्री ने कहा, “कन्हेरी गुफाएं हमारी प्राचीन विरासत का हिस्सा हैं क्योंकि वे हमारे उद्भव और अतीत का प्रमाण प्रदान करती हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर किए गए कार्यों का उद्घाटन करना सौभाग्य की बात है। बुद्ध का संदेश संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आज भी महत्वपूर्ण है।”
श्री रेड्डी ने कहा कि हमारी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण में रुचि दिखाना और उसकी जिम्मेदारी लेना प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है।
संस्कृति मंत्री ने कहा कि हमारी विरासत की रक्षा, संरक्षण और प्रचार-प्रसार में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, कॉरपोरेट और सिविल सोसाइटी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इन खजानों तक पहुंच सकें।
इंडियन ऑयल फाउंडेशन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के हिस्से के रूप में कन्हेरी में उन्नत पर्यटक बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के कार्य में शामिल है।
वर्तमान इमारत में आगन्तुक मंडप, रखवाली करने वालों के आवास, बुकिंग ऑफिस को अपग्रेड करने के साथ उनका नवीनीकरण किया गया है। बुकिंग काउंटर से लेकर कस्टोडियन क्वार्टर तक के क्षेत्र को प्राकृतिक दश्यों से सुशोभित किया गया है।
चूंकि गुफाएं जंगल के मुख्य क्षेत्र में आती हैं, बिजली और पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसके बावजूद सौर ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से बिजली की व्यवस्था की गई है।
आगंतुकों की रुचि बनाए रखने के लिए सरल और सुविधाजनक विवेचना केन्द्र की स्थापना की गई है जिसमें ग्यारह व्याख्यात्मक पैनलों की मदद से प्रमुख गुफाओं की उत्कृष्ट विशेषताओं और अद्वितीयता को उजागर किया गया है। कन्हेरी का ट्रेल मैप यानी रास्ता दिखाने वाला नक्शा एक और महत्वपूर्ण विशेषता है जो आगंतुकों का समय बचाने में मदद करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पूरे मठ परिसर के 3डी वर्चुअल टूर पर भी काम कर रहा है।
कन्हेरी गुफाएं मुंबई के पश्चिमी बाहरी इलाके में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में बड़े पैमाने पर बेसाल्ट आउटक्रॉप में गुफाओं का समूह और कटी हुई चट्टानों से बने स्मारकों का एक समूह है।
इनमें बौद्ध मूर्तियां और राहत नक्काशी, पेंटिंग और शिलालेख हैं, जो पहली शताब्दी सीई से 10वीं शताब्दी सीई तक की हैं। पानी के अनेक जलाशयों के साथ खुदाई की सतह और क्षेत्र, शिलालेख, एक सबसे पुराना बांध, एक स्तूप दफन गैलरी और उत्कृष्ट वर्षा जल संचयन प्रणाली इसकी एक आश्रम और तीर्थ केन्द्र के रूप में लोकप्रियता का संकेत देती है।
कन्हेरी सातवाहन, त्रिकुटक, वाकाटक और सिलहारा के संरक्षण में और क्षेत्र के धनी व्यापारियों द्वारा किए गए दान के माध्यम से फला-फूला।