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यह भारतीय लोकतंत्र की शक्ति है जिसने किसान पवार में जन्में धरती के पुत्र के परिश्रम और निष्ठा का सम्मान किया: उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

नई दिल्ली: भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय श्री भैंरो सिंह शेखावत जी की स्मृति में आयोजित दूसरे व्याख्यान के अवसर पर उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि “यह भारतीय लोकतंत्र की शक्ति ही है जिसने एक किसान परिवार में जन्मे इस धरती के पुत्र के परिश्रम और निष्ठा का सम्मान किया तथा सर्वोच्च पद और प्रतिष्ठा अर्जित करने के अवसर दिये।”उपराष्ट्रपति ने कहा कि भैरों सिंह जी शेखावत भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, वे राजस्थान के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक थे। वे गरीबों और दुर्बल वर्ग के मसीहा थे जिन्होंने सदैव ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी क्योंकि उनका विश्वास था कि ग्रामीण शहरी अंतर को समाप्त किया जाना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि शेखावत जी ने कृषि विकास को प्राथमिकता दी और किसानों के सशक्तिकरण के लिए अथक प्रयास किया। किसानों के हितों के प्रति उनकी चिंता ने ही मुझे भी अपने शुरुआती दिनों में प्रभावित किया।

श्री नायडु ने कहा कि श्री शेखावत जी का मानना था कि हमारे संघीय लोकतांत्रित ढांचे में, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों के समक्ष अनुकरणीय लोकतांत्रिक आदर्श रखने का उत्तरदायित्व संसद के दोनों सदनों का है। इस संदर्भ मैं उपराष्ट्रपति ने राजनीति में बढ़ती कटुता और विचारधारा के प्रति घटती निष्ठा को लेकर चिंता जताई।

शेखावत जी के साथ अपने निकट संपर्क के संस्मरण याद करते हुए श्री नायडू ने कहा कि राज्य सभा के सदस्य के रूप में मुझे भैंरो सिंह जी के सभापतित्व में कार्य करने का सौभाग्य मिला।राजनीति के प्रारंभिक दिनों से ही वे मेरे प्रति स्नेह रखते थे। शेखावत जी महान राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने राष्ट्रहित को सदैव सर्वोपरि रखा। उन्होंने कहा कियह मेरा सौभाग्य था कि भाजपा के अध्यक्ष के रूप में मेरे कार्यकाल में ही भैरोंसिंह जी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने। मुझे स्मरण है कि पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में वे भावुक हो गए और बोले कि  संवैधानिक उत्तरदायित्व के लिए मैं उन्हें उस पार्टी से बाहर भेज रहा हूं जिसके कि वे संस्थापक सदस्य थे। श्री नायडू ने कहा किजब मुझे भी उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था, मैं स्वयं उस भावनात्मक अनुभव से गुज़रा हूं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि श्री शेखावत जी ने उपराष्ट्रपति के रूप में जिन उच्च आदर्शों और मर्यादाओं और मानदंडों को स्थापित किया,वे उन्हीं आदर्शों और मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक अनुसरण और समृद्ध करने का प्रयास करते रहे हैं ।

वर्तमान राजनैतिक संस्कृति की तुलना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजनीतिक सौहार्द होना लोकतांत्रिक विमर्श की एक आवश्यक शर्त है। यह शेखावत जी की उदार राजनीति और मिलनसार व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि अपने सामयिक सभी वरिष्ठ नेताओं से उनके व्यक्तिगत आत्मीय संबंध थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भैंरो सिंह जी गरीबी की वेदना को समझते थे और गरीबी के विरूद्ध अभियान में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते थे। उनके विचार में गरीबों की आशाओं अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करना ही लोकतांत्रिक संस्थाओं की सफलता की कसौटी था। इस अवसर पर श्री नायडु ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में शेखावत जी द्वारा शुरू की गई अन्योदय योजना, ‘काम के बदल अनाज’ कार्यक्रम का उल्लेख किया जो बाद में केन्द्र और अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाई गई।इस योजना के लिए विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष राबर्ट मैकनामारा ने शेखावत जी को Rockefeller of India की उपाधि दी थी।

श्री नायडु ने बताया कि सभापति के रूप में शेखावत जी सुनिश्चित करते थे कि सदन में प्रश्नकाल के दौरान या बहस में सदस्यों के प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर सरकार द्वारा दिया जाय। लोक हित के विषयों पर वह स्वयं भी टिप्पणी करते या सरकार से प्रश्न पूछते थे। इस प्रकार सदन की पीठ से शेखावत जी ने एक स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा डाली।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनभागीदारी को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री नायडू ने कहा कि हमें भविष्य में भी शेखावत जी जैसे कार्यकताओं, मेधावी युवाओं, युवा उद्यमियों को राष्ट्रीय जीवन में प्रोत्साहित करना है तो हमें अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता को बनाये रखना होगा, जिससे जनता का विश्वास हमारे लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं में बना रहे। उन्होंने कहा कि चुनाव लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ है फिर भी जातिवाद, धर्म, बाहुबल, धनबल, अपराधीकरण ने इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता को कलंकित किया है। चुनावों की प्रक्रिया की शुचिता को बरकरार रखने के लिए आवश्यक है कि चुनाव विकासवादी ऐजेंडें पर लड़े जायें जहां उम्मीदवार के आचरण, चरित्र, क्षमता, समाज और राष्ट्र केनिष्ठा, प्रामाणिकता के आधार पर चुनाव हो।

उन्होंने राजनैतिक दलों से आग्रह किया कि वे अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता बनायें।

इस अवसर पर राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष श्री सी.पी. जोशी, सांसद श्री ओमप्रकाश माथुर, राजस्थान विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष, श्री गुलाबचंद कटारिया, विधायक, श्री नरपत सिंह राजवी सहित बड़ी संख्या में गणमान्य अतिथि सम्मिलित हुए।

उपराष्ट्रपति का पूरा भाषण निम्नोक्त है:

“मेरे सम्मानीय पूर्ववर्ती भारत के यशस्वी उपराष्ट्रपति स्वर्गीय श्री भैंरो सिंह शेखावत जी की स्मृति में आयोजित इस दूसरे व्याख्यान में सम्मिलित होने का अवसर पा कर अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूं। यह अवसर देने के लिए मैं, इस व्याख्यान माला के आयोजकों का हृदय से आभारी हूं कि उन्हें मुझे भैंरो सिंह जी के विराट व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर अपने विचार साझा करने का सुअवसर दिया।

राज्य सभा के सदस्य के रूप में मुझे भैंरो सिंह जी के सभापतित्व में कार्य करने का सौभाग्य मिला। उन्होंने उपराष्ट्रपति तथा राज्य सभा के सभापति के रूप में जिन उच्च आदर्शों और मर्यादाओं और मानदंडों को स्थापित किया, उन्हीं आदर्शों और मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक अनुसरण और समृद्ध करने का प्रयास करता हूं।

भैंरो सिंह जी का यशस्वी सार्वजनिक जीवन, स्वाधीन भारत के पहले ही विधान सभा चुनावों में प्रारंभ हो गया था। 60 वर्ष से अधिक के अपने सार्वजनिक जीवन में आपने 11 चुनावों में से 10 चुनावों में विजय प्राप्त की। कुछ वर्षों के लिए 1973 में आप मध्य प्रदेश से राज्य सभा के सांसद के रूप में निर्वाचित हुए, लेकिन प्राय: राजस्थान ही भैंरो सिंह जी की कर्मभूमि रहा।

भैंरो सिंह जी, श्रद्धेय अटल जी, आडवाणी जी के समकालीन निकट सहयोगी थे। इन तीनों महानुभावों ने मिल कर, भारतीय राजनीति को जनसंघ के रुप में एक वैचारिक विकल्प दिया। ये उस पीढ़ी के राजनेता थे जब दलीय राजनीति से ऊपर उठकर राजेताओं में आत्मीय संबंध होते थे। राजनैतिक स्पर्धा, वैचारिक बहस में व्यक्तिगत विद्वेष सोचा भी नहीं जा सकता था। राजनीतिक सौहार्द होना लोकतांत्रिक विमर्श की एक आवश्यक शर्त है। ऐसे कम ही नेता रहे हैं जिनका प्राथमिक कर्मक्षेत्र प्रदेश राजनीति रही हो फिर भी उन्हें देशव्यापी यश और स्वीकार्यता मिली हो जितनी कि शेखावत जी को मिली थी। यह उनकी उदार राजनीति और मिलनसार व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि अपने सामयिक सभी वरिष्ठ नेताओं से उनके व्यक्तिगत आत्मीय संबंध थे।

भैंरो सिंह जी हमारे देश की आदर्श लोकतांत्रिक राजनीति के प्रतिनिधि हस्ताक्षर थे। एक किसान परिवार में जन्मे शेखावत जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक नहीं थी। फिर भी वे पुलिस की नौकरी से उठ कर राजनीति के शिखर तक पहुंचे। इसके लिए वे स्वयं ही देश की लोकतांत्रिक राजनीति को श्रेय देते थे – “अगर लोकतंत्र न होता तो मेरे जीवन में खेती करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प ही नहीं था”। वे कहते भी थे कि पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर तो वे सरपंच भी नहीं बन सकते थे उपराष्ट्रपति तो उनके लिए दूर स्वप्न था। मैं स्वयं अपने जीवन में उन अनुभवों से गुजरा हूँ ओर लोकतंत्र की शक्ति का आदर करता हूं।

यह भारतीय लोकतंत्र की शक्ति ही है जिसने एक किसान परिवार में जन्मे इस धरती के पुत्र के परिश्रम और निष्ठा का सम्मान किया तथा सर्वोच्च पद और प्रतिष्ठा अर्जित करने के अवसर दिये। तभी तो अटल जी ने उपराष्ट्रपति के रूप में उनका अभिनंदन करते हुए कहा था “माटी का पुत्र मिट्टी से उठकर माथे पर चंदन का तिलक बन गया है” और भैंरो सिंह जी ने भी अपने सार्वजनिक जीवन में लोकतंत्र की समर्पण भाव से सेवा की, उसको समर्पण भाव से समृद्ध किया, उसकी मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक पालन किया। सभापति के रुप में सदन में व्यवधान से वे नाराज होते थे।

सदन में व्यवधानों पर टिप्पणी करते हुए, राज्य सभा के सभापति के रूप में उनके विचार, संसदीय लोकतंत्र के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाते हैं, उन्होंनें कहा था – “संसद, लोकतंत्र की मर्यादा का स्तंभ है। लोकतंत्र की मर्यादा तभी तक सुरक्षित रह सकती है जब तक संसद की मर्यादा अक्षुण्ण रहे।”

उनका मानना था कि हमारे संघीय लोकतांत्रित ढांचे में, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों के समक्ष अनुकरणीय लोकतांत्रिक आदर्श रखने का उत्तरदायित्व संसद के दोनों सदनों का है।

भैंरो सिंह जी गरीबी की वेदना को समझते थे और गरीबी के विरूद्ध अभियान में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते थे। वे गरीब जनता को लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ मानते थे। उनके विचार में गरीबों की आशाओं अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करना ही लोकतांत्रिक संस्थाओं की सफलता की कसौटी था। उनका मानना था कि विकास प्रक्रिया पर पहला अधिकार गरीब जनता का होना चाहिए। इसी के तहत आपने 1952 में ही Jagirdari Abolition Bill का समर्थन किया। राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में उनके द्वारा शुरू की गई ‘अन्योदय योजना’, ‘काम के बदल अनाज’ कार्यक्रम ने बड़ी संख्या में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही जनता का उद्धार किया। यह योजना केन्द्र और अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाई गई।

इस योजना के लिए विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष राबर्ट मैकनामारा ने शेखावत जी को Rockfeller of India की उपाधि दी थी। आपके मुख्यमंत्रित्व काल में लागू जनकल्याणकारी योजनाओं से, राजस्थान BIMARU राज्यों की श्रेणी से बाहर आ पाया। जनशिक्षा में उनके प्रयासों के कारण साक्षरता दर 38% से बढ़कर 62% तक पहुंच गई। एक दशक में साक्षरता में इतनी वृद्धि का यह रिकार्ड आज भी कायम है।

शेखावत जी के मन में गरीबों के प्रति स्वाभाविक आत्मीय सहानुभूति थी। सदन के सभापति के रूप में भी गरीबों के विषय पर वे स्वयं सरकार से सवाल पूछते थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को अनाज न मिलने के सवाल पर उन्होंने स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री से आश्वासन मांगा। इसी प्रकर देश के विभिन्न भागों में किसानों द्वारा आत्महत्या विषय पर बहस पर मंत्री के उत्तर के दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि Warehousing Act के तहत, जमा किये गये अनाज के मूल्य का 70% किसान को उसी समय दिया जाना चाहिए।

सभापति के रूप में शेखावत जी सुनिश्चित करते थे कि सदन में प्रश्नकाल के दौरान या बहस में सदस्यों के प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर सरकार द्वारा दिया जाय। सरकार से उत्तर पाना, सदस्यों का अधिकार है। लोक हित के विषयों पर वह स्वयं भी टिप्पणी करते या सरकार से प्रश्न पूछते थे। इस प्रकार सदन की पीठ से उन्होंने एक स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा डाली।

भैंरो सिंह जी की संविधान के आदर्शों के प्रति अगाध निष्ठा थी। वे राजस्थान की सौहार्दपूर्ण सामाजिक संस्कृति के मूर्धन्य प्रतिनिधि थे। आपने अजमेर की दरगाह शरीफ के निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए आवश्यक सहायता प्रदान की। टोंक जिले में फारसी और अरबी भाषा संस्थान स्थापित किया। मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्ग को भी, अन्य पिछड़े वर्गों की भांति ही लाभ सुनिश्चित किये।

शेखावत जी स्थानीय परंपराओं, विश्वासों के प्रति आस्थावान थे, परंतु रुढ़िवादी नहीं। उन्होंने अपने समाज के विरूद्ध जाकर भी सता प्रथा के महिमामंडन का घोर विरोध किया।

कम लोगों को ज्ञात होगा कि स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने वाला राजस्थान पहला राज्य, शेखावत जी की समावेशी दृष्टि के कारण बना। प्रशासन में पारदर्शिता के प्रति उनके आग्रह के कारण ही राजस्थान सूचना का अधिकार लागू करने वाला पहला राज्य बना।

ऐसी कई योजनाऐं जो हम आज लागू कर रहे हैं-शेखावत जी ने उनकी आवश्यकता पहले ही महसूस की। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में आपने राजस्थान में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा को प्रोत्साहित किया। राजस्थान के लिए यमुना और नर्मदा नदियों का पानी लाने का गंभीर प्रयास किया।

शेखावत जी मूलत: सुधारवादी नेता थे। सामाजिक एकता, सौहार्द और सुधार उनकी राजनीति के सूत्र थे। आज जब हम लोक सभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनावों पर विचार कर रहे हैं, शेखावत जी ने देश में राजनैतिक स्थायित्व, सुशासन और चुनावों पर हो रहे खर्च को कम करने के लिए, साथ चुनाव कराने की तभी वकालत की थी।

चुनाव लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ है फिर भी जातिवाद, धर्म बाहुबल, धनबल, अपराधीकरण ने इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता को कलंकित किया है। चुनावों की प्रक्रिया की शुचिता को बरकरार रखने के लिए आवश्यक है कि चुनाव विकासवादी ऐजेंडें पर लड़े जायें जहां उम्मीदवार के आचरण, चरित्र, क्षमता, समाज और राष्ट्रनिष्ठा, प्रामाणिकता के आधार पर चुनाव हो। मेरा राजनैतिक दलों से यह आग्रह रहा है कि हमारे लोकतंत्र की मर्यादा अक्षुण्ण रखने के लिए वे अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता बनायें। हमारे लोकतंत्र ने भैरों सिंह जी जैसे जमीन से जुड़े कार्यकताओं को अवसर प्रदान किया है जिनके पास कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नही थी सिर्फ राष्ट्रनिष्ठा और कर्मठ आत्मविश्वास था। यदि हमें भविष्य में भी ऐसे कार्यकताओं हमारे मेधावी युवाओं, युवा उद्यमियों को राष्ट्रीय जीवन में प्रोत्साहित करना है तो हमें अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता को बनाये रखना होगा। जिससे जनता का विश्वास हमारे लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं में बना रहे। शेखावत जी जैसे बहुआयामी विराट व्यक्तित्व वाले जननायक को यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

इन्ही शब्दों के साथ में एक बार पुन: अपने श्रद्धेय पूर्ववर्ती स्वर्गीय भैंरो सिंह जी शेखावत की पुण्य स्मृति में सविनय वंदन करता हूं और इस अवसर के आयोजनकर्ताओं का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने मुझे विचार साझा करने का अवसर दिया।

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